Thursday 14 December 2017

अवसरों के नए द्वार भी खोल रहा इंटरनेट (अलका आर्य )


सीरियाई अरब गणराज्य में जारी हिंसा से बचकर परिवार के साथ निकल भागी एक बच्ची जातारी कैंप में एक शिक्षक के मार्गदर्शन में डिजिटल टैबलेट का इस्तेमाल कर अपने भविष्य को फिर से संवार रही है। कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में एक युवा ब्लॉगर इंटरनेट का इस्तेमाल अपने समुदाय में सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता संबंधी मुद्दों को उठाने के लिए कर रहा है। 14 साल की एक लड़की के एक पूर्व दोस्त ने पहले नग्न तस्वीरें लेने के लिए मजबूर किया और फिर सोशल मीडिया पर डाल दिया। डिजिटल तकनीक के ऐसे उजले व स्याह पक्ष को सामने रखने वाली ये आवाजें हाल ही में आई यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में दर्ज हैं। ऐसी आवाजों और अनुभवों के बीच डिजिटल दुनिया में बच्चों को लेकर कई तरह के सवाल और चिंताओं के ईद-गिर्द एक बड़ी बहस चारों तरफ छिड़ी हुई है।
हाल ही में यूनिसेफ की जारी ‘विश्व बाल स्थिति 2017 : डिजिटल दुनिया में बच्चे’ नामक रिपोर्ट डिजिटल तकनीक किसी तरह से बच्चों की जिंदगियों को और जीवन के मौकों को प्रभावित करती है, के बारे में बताती है। यूनिसेफ ने पहली बार बच्चों पर डिजिटल तकनीक के इस्तेमाल को लेकर रिपोर्ट तैयार की है। यह रिपोर्ट खतरों के साथ-साथ अवसरों को भी रेखांकित कर रही है। यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक एंथोनी लेक का कहना है कि अच्छा हो या बुरा डिजिटल तकनीक हमारी जिंदगी की अब एक अपरिवर्त्य हकीकत है। डिजिटल दुनिया में हमारे सामने दोहरी चुनौती है-एक तरफ नुकसानों को कम करना व दूसरी तरफ हर बच्चे के लिए इंटरनेट के फायदों को अधिक से अधिक करना।
इंटरनेट बच्चों के लिए नहीं है और इंटरनेट ने बच्चों को बिगाड़ दिया है आदि सवाल सर्वव्यापी हैं। हकीकत यह है कि दुनियाभर में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों में हर तीन व्यक्ति में एक बच्चा है। इंटरनेट पर बच्चों की विशाल उपस्थिति के बावजूद उन्हें डिजिटल दुनिया के खतरों से संरक्षण प्रदान करने व सुरक्षित ऑनलाइन सामग्री तक उनकी पहुंच को बढ़ाने के लिए बहुत ही कम काम किए गए हैं। दरअसल इंटरनेट व्यस्कों के लिए डिजाइन किया गया था, लेकिन बच्चों तथा युवाओं द्वारा इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है। इस डिजिटल तकनीक द्वारा उनकी जिंदगी और भविष्य तेजी से प्रभावित हो रहे हैं। लिहाजा डिजिटल नीतियों, उत्पादों और उपयोगों में बच्चों की जरूरतें, उनके परिप्रेक्ष्य और उनकी आवाज बेहतर परिलक्षित होनी चाहिए। ध्यान देने वाली बात यह है कि युवा इंटरनेट से सबसे ज्यादा जुड़ा हुआ वर्ग है। दुनियाभर में 71 प्रतिशत युवा ऑनलाइन हैं, जबकि सामान्य आबादी में इस्तेमाल करने वालों की संख्या 48 फीसद है।
इंटरनेट से अफ्रीकी युवा सबसे कम जुड़ा हुआ है। पांच में से करीब तीन युवा ऑफलाइन हैं, जबकि यूरोप में 25 में से सिर्फ एक युवा ऑफलाइन है। हालांकि लाखों बच्चे अभी भी इंटरनेट से नदारद हैं। दुनिया के करीब एक तिहाई युवा यानी 34.6 करोड़ ऑनलाइन नहीं हैं। इसके चलते गैरबराबरी तेजी से बढ़ रही है। इस प्रकार यह बढ़ रही डिजिटल अर्थव्यवस्था में बच्चों की भागीदारी की क्षमता को भी कम कर रही है।
भारत में ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों में बीते एक साल में तेजी से वृद्धि हुई है। यूनिसेफ की डिजिटल दुनिया में बच्चे नामक रिपोर्ट के मुताबिक यह वृद्धि 21 प्रतिशत है। इसमें कोई दो राय नहीं कि शहरों में इंटरनेट की पैठ ज्यादा है और यह भी गौरतलब है कि यहां अभी भी इंटरनेट पुरुषों का विशिष्ट क्षेत्र माना जाता है। आंकड़ें इसकी तस्दीक करते हैं। तीन इंटरनेट इस्तेमालकर्ताओं में से एक ही लड़की होती है। लड़कियों के साथ भेदभाव उनके लिंग के कारण भी होता है। इसी के चलते वे ऑनलाइन सेवाओं तक पहुंच बनाने, अपनी स्वास्थ्य संबंधी सूचनाएं पाने और अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने में असमर्थ हैं। वे 21वीं सदी की वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुरक्षित शिरकत करने में भी पिछड़ रही हैं। यूनिसेफ में भारत की प्रतिनिधि डॉ. यासमिन अली हक का कहना है कि भारत आइटी हब के रूप में मशहूर है। यहां लड़कियों और लड़कों के पास कनेक्टिेविटी से लाभान्वित होने के ढेरों मौके हैं। और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कहां रहते हैं, प्रत्येक लड़की या लड़के को डिजिटल लाभ मिलना चाहिए।
बहरहाल डिजिटलाइजेशन ने दुनिया को बदल दिया है। कहा जा रहा है कि इसने लोगों के लिए एक नया दरवाजा खोल दिया है। खासतौर पर दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए या गरीबी, भेदभाव और आपात स्थिति से पीड़ित होकर अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए बच्चों के लिए डिजिटल तकनीक उनके बेहतर भाविष्य के लिए एक नया दरवाजा खोल सकती है। इससे उन्हें सीखने, अपने हित की चीजों को देखने और सेवाओं, बाजार तथा अपनी क्षमता को पूरा करने वाले दूसरे लाभों से जुड़ने का मौका मिलता है, जो उनके गरीबी के चक्र को तोड़ता है। पर इसके साथ-साथ यह भी नहीं भूलना चाहिए कि लाखों बच्चे अभी भी इंटरनेट तक पहुंच का लाभ नहीं ले पा रहे हैं या उनकी पहुंच सीमित और निम्न स्तरीय गुणवत्ता की है। अक्सर ये वही बच्चे होते हैं जो पहले से ही वंचित होते हैं। यह एक तरह से उनके अभाव को और बढ़ाता है। 1इससे उनके वे कौशल और ज्ञान धरे के धरे रह जाते हैं जो उनकी क्षमताओं को उभारने और निखारने तथा गरीबी के चक्र से उनको बाहर निकलने में मददगार हो सकते हैं। यह रिपोर्ट बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाले संसाधनों तक पहुंच को बढ़ाने की वकालत करती है। देखा जाए तो आज इसकी दरकार भी है। डिजिटल युग ने बच्चों के सामने मौजूद खतरों को तो बढ़ाया ही है, साथ ही नए खतरे भी पैदा कर दिए हैं।
इंटरनेट की दुनिया में बच्चों की निजता और पहचान की सुरक्षा भी एक बहुत बड़ी चिंता है। बच्चे इंटरनेट पर सुरक्षित रहें, सबसे वंचित बच्चे की इंटरनेट तक अधिक से अधिक पहुंच हो, इसके लिए डिजिटल नीति के केंद्र में बच्चों को रखना होगा। इतना ही नहीं, बल्कि इन नीतियों को अंतरराष्ट्रीय पैमानों से निर्देशित होना चाहिए और बच्चों के अधिकार तथा स्वतंत्रता की रक्षा तथा भेदभाव से सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए।(दैनिक जागरण से आभार सहित )
(लेखिका सामाजिक मामलों की जानकार हैं)

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