Monday 11 December 2017

येरुशलम पर फैसले को पूर्व राजदूतों ने खतरनाक बताया (©The New York Times ) (सीवेल चान)(अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ)

जब किसी देश का मामला पेचीदा हो जाता है, तो सरकार वहां स्थित अपने राजदूतों और उच्चायुक्त से बात करती है, सलाह लेती है। अमेरिका में ऐसा नहीं होता। वहां के ट्रम्प प्रशासन में सलाह-मशविरे की संस्कृति नहीं दिखती। हाल ही में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने येरुशलम को इजरायल की राजधानी घोषित करने का फैसला किया है, जिसका अमेरिका समेत कई देशों में विरोध हो रहा है। इस बारे में इजरायल में पदस्थ रहे 11 पूर्व अमेरिकी राजदूतों से पूछा गया कि क्या ट्रम्प ने सही फैसला किया है? 11 में से 9 ने कहा कि यह बहुत गलत फैसला है, इसमें खतरा अधिक है। शेष 2 राजदूतों ने अलग बातें कही हैं।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के फैसले में यह किसी को नहीं पता कि उन्हें इससे क्या मिलेगा। पूर्व 11 अमेरिकी राजदूत इस घटनाक्रम पर निगाह रखे हैं। ट्रम्प के प्लान में यह भी शामिल है कि तेल अवीव (इजरायल की मौजूदा राजधानी) स्थित अमेरिकी दूतावास को येरुशलम स्थानांतरित किया जाए। पूर्व राजनयिक मानते हैं कि यह अलग तरह का संकट है।
1959 से 1961 तक आइज़नहावर के शासनकाल में इजराइल में अमेरिकी राजदूत रहे ऑग्डेन आर रेड उन अपवादों में हैं, जो ट्रम्प के फैसले को उचित ठहराते हैं। वे कहते हैं, मेरे ख्याल से यह उचित है। दूसरे अपवाड एडवर्ड एस वाकर जूनियर हैं। वे 1997 से 1999 तक बिल क्लिंटन के शासनकाल में इजराल में राजदूत रहे हैं। उन्होंने कहा, यह समय की बात है। उन्होंने (ट्रम्प ने) उस वास्तविकता को पहचाना है, जो हम नहीं कर पाए थे। सभी जानते हैं कि इजराइल की राजधानी है, जिसे येरुशलम कहते हैं। मध्य-पूर्व में मेरे 35 वर्षों के कार्यकाल में इस बारे में किसी ने सवाल नहीं उठाया। अमेरिका ने 1948 की पॉलिसी का दायरा तोड़ा है। पॉलिसी यह थी कि 'येरुशलम का क्या स्टेटस होगा', यह मसला इजरायल और फिलिस्तीन के बीच सुलह-समझौते का है। एडवर्ड वाकर कहते हैं, लाइनों और सीमाओं को देखना चाहिए। आप देखिए इजराइल के आसपास कौन-सी लाइन है और फिलिस्तीन की कौन सी।
इन्होंनेफैसले को खतरनाक बताया-
2001से 2005 तक इजराइल में राजदूत रहे डेनियल कर्टजर ने कहा- फैसले में दृष्टिकोण नहीं है, ढलान ही ढलान है। राजनयिक एवं मध्य-पूर्व में शांति के स्तर पर भी, इसमें कुछ हासिल नहीं होने वाला। हम एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ रहे हैं। हमें ऐसे राष्ट्रपति से अलग चलना होगा जो खुद को शांति भंग करने वाला कहते हों। यह प्रक्रिया बिल्कुल सही नहीं है।
2005 से 2009 तक राजदूत रहे रिचर्ड एच. जोन्स कहते हैं- यह फैसला हमास और आईएस को भड़काने वाला साबित हो सकता है। वे अधिक हिंसा को अंजाम दे सकते हैं। संभव है कि फिलिस्तीन सरकार अंतरराष्ट्रीय सहयोग जुटाकर इजरायल की आलोचना और उसका बहिष्कार करने में सफल हो जाए। यह जोखिम भरा कदम है।
बिल क्लिंटन के शासनकाल में इजरायल में दो बार राजदूत रहे मार्टिन इन्डिक ने ट्रम्प के शपथ लेने से पहले एर लेख में कहा था वे ऐसा कर सकते हैं। इन्डिक कहते हैं- मुझे लगता है कि उन्होंने नुकसान कम करने के लिए ऐसा किया है। लेकिन, इसमें दोनों पक्षों को नुकसान उठाना होगा। कुछ राजदूत मानते हैं कि पश्चिमी येरुशलम को इजरायल की राजधानी घोषित करना चाहिए और पूर्वी येरुशलम को भविष्य के फिलिस्तीन की राजधानी बताना चाहिए।
रोनाल्ड रीगन के कार्यकाल में राजदूत रहे थॉमस पिकरिंग ने इसे ट्रम्प की विदेश नीति की बड़ी गलती बताया। कहा, उन्होंने या तो अहंकार की संतुष्टि के लिए ऐसा किया या फिर 'रूसी संपंर्कों' से ध्यान भटकाने के लिए।
1988 से 1992 तक राजदूत रहे एवं क्लिंटन के कार्यकाल में मिशन प्रमुख बनकर फिर इजरायल लौटे विलियम ब्राउन कहते हैं- मैंने खुद जॉर्ज बुश (सीनियर बुश) से कहा था कि अमेरिकी दूतावास येरुशलम में स्थानांतरित करना चाहिए। मेरा उद्देश्य मेड्रिड शांति वार्ता के लिए इजराइल को प्रोत्साहित करना था। हालांकि, बाद में वह आइडिया खारिज कर दिया गया था। अगर सीनियर बुश उस पर रजामंदी देते, तो बहुत सावधानी के साथ आगे बढ़ते। मुझे नहीं लगता कि ट्रम्प ऐसा कर पाएंगे।
1992 से 1993 तक राजदूत रहे विलियम काल्डवेल हैरोप ने ट्रम्प के फैसले को लापरवाही से पूर्ण और दिमागी चाल बताया। उनके अनुसार, ट्रम्प ने खुद को कमजोर करने वाला काम किया है। अगर वे चाहते तो इजराइल और फिलिस्तीन केबीच बातचीत के जरिये शांति स्थापित करके 'बड़ी डील' कर सकते थे। इसकी बजाय वे कह सकते थे कि वे अमेरिकी दूतावास को पश्चिमी येरुशलम में स्थापित करना चाहते हैं। किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि फिलिस्तीन ने खुद को एक राष्ट्र के तौर पर पहचान हासिल करने में बहुत संघर्ष किया है।
1993 से 1994 तक राजदूत रहे एडवर्ड जेरेजियान ने कहा कि ट्रम्प का फैसला असंतोष बढ़ाने वाला है। उन्होंने अपने फैसले को ऐसे बताया जैसे वे जमीनी हकीकत से वाकिफ हैं। जबकि, वे कुछ कदम उठा सकते थे। वे येरुशलम की सीमाओं और इजरायल की संप्रभुता का उल्लेख करके नई बात कह सकते थे। रीगन के कार्यकाल में व्हाइट हाउस प्रवक्ता रहे जेरेजियान ने कहा कि ट्रम्प के फैसला चीजों को स्पष्ट करने की बजाय भ्रम बढ़ाने वाला है।
जॉर्ज डब्ल्यू बुश एवं बराक ओबामा के शासन में राजदूत रहे जेम्स बी कनिंघम ने ट्रम्प के फैसले को 'बहुत गंभीर गलती' करार दिया। वे कहते हैं, दूतावास को येरुशलम में स्थानांतरित करना किसी रणनीति का हिस्सा हो सकता था, लेकिन कुछ अलग करने की कोशिश में यह प्रदर्शन गलत हो गया। इससे तो इजराइल सुरक्षित होगा, अमेरिका और उस क्षेत्र में स्थायित्व आएगा।
हाल के वर्षों में बराक ओबामा के दौर में इजराइल में राजदूत रहे डेनियल शेपिरो ने ट्रम्प के फैसले से सहानुभूति जताते हुए कहा कि अगर उसका क्रियान्वयन नहीं हुआ तो क्या स्थिति बनेगी? येरुशलम को इजरायल की राजधानी घोषित करने का उनका तरीका आपत्तिजनक था। वे बड़ा अवसर चूक गए। अगर रणनीति अपनाई गई होती तो दोनों देशों (इजरायल-फिलिस्तीन) के बीच किसी समझौते से यह हो सकता था। इसमें अरब देशों की भी भूमिका होती। इसमें यह पता चलता कि येरुशलम को लेकर फिलिस्तीन की क्या आकांक्षाएं हैं।
पूर्व कई राजनयिकों ने ट्रम्प पर कहने से इंकार कर दिया, लेकिन इतना कहा कि इससे ट्रम्प अमेरिका में उन लोगों का समर्थन पा लेंगे, जो इजरायल के समर्थक हैं।(dainik bhaskar )

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