Sunday 17 December 2017

स्वयं पर नियंत्रण के इन छह स्तंभों पर टिकी है हमारी अच्छी जिंदगी (नथानियल ब्रैंडन )


ब्रैंडन कहते हैं कि अहंकार और आत्मसम्मान में बहुत फर्क है। हालांकि पहली नजर में यह एक जैसे दिखते हैं। अहंकार दूसरों से अपनी तुलना पर आधारित होता है, इसलिए अक्सर आत्मसम्मान की भावना में कमी का कारण बन जाता है। जबकि आत्मसम्मान किसी से भी अपनी तुलना किए बिना जीवन को अपने तरीके से जीने की खुशी देता है। आत्मसम्मान आपको किसी के सामने कुछ साबित करने के लिए प्रेरित नहीं करता। किताब में ब्रैंडन ने सेल्फ एस्टीम के छह पिलर बताएं हैं।
पहला पिलर है: लिवकॉॅन्शियसली। जीवन को बेहतर बनाने के लिए सबसे पहली जरूरत है सजगाता। जब तक आप अपने व्यवहार के प्रति सजग नहीं होंगे तब तक उसमें किसी भी तरह का सुधार संभव नहीं है। क्योंकि अक्सर किसी मामले में व्यक्ति की प्रतिक्रिया उसके स्वभाव के अनुसार होती है। लेकिन हाे सकता है यह प्रतिक्रिया परिस्थिति के अनुसार ठीक नहीं हो। इसलिए अपने स्वभाव के प्रति सजगता लाना जरूरी है। जीवन को अपने मूल्यों के साथ जीने से यह सजगता अपने आप जाती है।
दूसरा पिलर है: सेल्फएक्सेप्टेंस। ब्रैंडन लिखते हैं कि आत्मविश्वास का भाव तब आता है जब हम अपने कंफर्ट जोन में होते हैं। यानी हम वह काम कर रहे होते हैं, जो हमें पसंद है। जैसे एक प्रोफेशनल फुटबॉलर उस समय पूरे आत्मविश्वास से खेलता है, जब फील्ड में होता है। लेकिन जब वह सेल्स निगोसिएशन कर रहा होता है तब उसमें स्वाभाविक सजगता नहीं होती। तब उसकी कमियां सामने आती हैं। इन कमियों को अगर पहचान लिया जाए और उन्हें स्वीकार कर लिया जाए तो हमें दूसरों की स्वीकृति की जरूरत नहीं होगी।
तीसरा पिलर है: सेल्फरिस्पॉन्सिबिलिटी। अपने भीतर विश्वास पैदा करना चाहते हैं तो स्वयं को पीड़ित मानने से बचना जरूरी है। पीड़ित होने के भाव का मतलब है कि हमारा स्वयं पर नियंत्रण नहीं है। हम दूसरों पर निर्भर हैं। अगर हमारी अपनी इच्छाएं दूसरों के हाथ में हैं तो इसका मतलब है कि हम आत्मनियंत्रण की ओर नहीं बढ़ रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि कुछ नई जिम्मेदारियां लें। कोई अन्य संपूर्ण बनने में हमारी मदद नहीं कर पाएगा।
चौथा पिलर है: सेल्फअसरटिवनेस। पहले हम अपने व्यवहार के प्रति सजग बनते हैं। फिर अपने स्वभाव को पहचानते हैं उसे स्वीकार करते हैं। इसके बाद जिम्मेदारी लेते हैं। इसके बाद आता है अपनी जरूरतों का सम्मान करना और अपने मूल्यों के अनुसार जीवन जीना। साथ ही दूसरों से बात करते समय अपनी इच्छाअों और मूल्यों को जाहिर करना। ऐसा करना इसलिए जरूरी है क्योंकि अधिकतर लोग अपनी इच्छाओं छोड़ देते हैं।
पांचवां पिलर है: उद्देश्यके साथ जीना। जब आप अपने जीवन का एक उद्देश्य बना लेते हैं तो जीवन को एक दिशा मिल जाती है। उद्देश्य अहम होता है। यह अपने लिए होना चाहिए और अपनी राय के अनुसार होना चाहिए।
छठा पिलर है: पर्सनलइंटिग्रिटी। लक्ष्य निर्धारित करना और उस पर कायम रहने से आत्मविश्वास, आत्मसम्मान बढ़ता है। स्वयं में भरोसा बढ़ता है। जब हम अपने काम पर दूसरों की स्वीकृति की उम्मीद करते हैं तो कुछ देर के लिए अच्छा महसूस हो सकता है। लेकिन दूसरी तरफ इसमें स्वयं को खारिज करने का भाव भी है। इसमें यह भाव भी है कि हममें कुछ कमी है। इस भाव को पहचानना जरूरी है। यह अपने प्रति ईमानदार रहने से ही संभव है।(DJ)

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