Wednesday 27 December 2017

शीघ्र न्याय के लिए गतिरोध दूर हो (अनूप भटनागर) (दैनिक ट्रिब्यून )


न्यायपालिका के कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिये अदालतों और न्यायाधिकरणों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का काम हो रहा है। दूसरी ओर देश के 24 उच्च न्यायालयों, उच्चतम न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने से संबंधित मसौदे को 2017 में भी मंजूरी नहीं मिलने से उच्चतर न्यायपालिका में नियुक्तियों की प्रक्रिया गति नहीं पकड़ रही है।
उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों के नामों के चयन, उनके तबादले और नियुक्तियों के बारे में प्रस्तावित मेमोरैंडम आॅफ प्रोसीजर के कुछ बिन्दुओं को लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच अभी भी गतिरोध बना हुआ है। यह गतिरोध अगर जल्द दूर नहीं किया गया तो नये साल में न्यायाधीशों के रिक्त पदों की वजह से लंबित मुकदमों के निपटारे की समस्या खड़ी हो सकती है।
यह भी विचित्र स्थिति है कि एक ओर कार्यपालिका के साथ ही न्यायपालिका भी अदालतों में लंबित मुकदमों की बढ़ती संख्या और इनके निपटारे की धीमी रफ्तार पर चिंता व्यक्त करती रहती है। वहीं इन्हें गति प्रदान करने के उपायों पर विचार भी होता रहता है। न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को गति प्रदान करने के लिये इससे संबंधित मसौदे को अंतिम रूप देने के मामले में व्याप्त गतिरोध दूर नहीं हो पा रहा है। हालांकि उच्चतम न्यायालय की कोलेजियम ने न्यायाधीशों की नियुक्ति में पारदर्शिता लाने के इरादे से कार्यपालिका के पास भेजे गये नामों को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने का महत्वपूर्ण कदम उठाया है, लेकिन इसे लेकर कोलेजियम के कुछ सदस्यों की असहमति चर्चा में है। वैसे मेमोरैंडम आॅफ प्रोसीजर के मसौदे पर गतिरोध मुख्यतया दो मुद्दों पर हैः पहला तो राष्ट्रीय सुरक्षा का है। यह प्रावधान सरकार को न्यायाधीश पद के लिये मिले किसी भी नाम की सिफारिश अस्वीकार करने का अधिकार दे देगा। दूसरा मुद्दा न्यायाधीशों के बारे में मिलने वाली शिकायतों के समाधान के लिये अलग समिति बनाने का है।
अक्तूबर, 2015 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून और इससे संबंधित संविधान संशोधन निरस्त करते हुये न्यायाधीशों की नियुक्तियों के बारे में मेमोरैंडम आॅफ प्रोसीजर को नया रूप देने की सिफारिश की थी। केन्द्र सरकार ने इस पर तत्काल अमल करते हुये इसका मसौदा तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर को भेजा था। लेकिन मेमोरैंडम आॅफ प्रोसीजर को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है।
उच्चतम न्यायालय में एक दिसंबर की स्थिति के अनुसार प्रधान न्यायाधीश सहित 31 न्यायाधीशों के पदों में से छह रिक्त हैं। वर्ष 2018 में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल, न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति अमिताव राय सेवानिवृत्त होंगे। वहीं 24 उच्च न्यायालयों में से नौ उच्च न्यायालयों में फिलहाल कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ही काम देख रहे हैं।
इनमें तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, मुंबई, कलकत्ता, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल औ्र मणिपुर उच्च न्यायालय शामिल हैं। उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों की संख्या 1079 है। इनमें 771 स्थाई और 308 अतिरिक्त न्यायाघीशों के पद हैं।
हालांकि 2017 के दौरान सरकार ने न्यायधीशों की कोलेजियम की सिफारिशों पर अनेक अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किये हैं लेकिन अभी भी उच्च न्यायालयों में स्थाई न्यायाधीशों के 272 और अतिरिक्त न्यायाधीशों के 120 पद रिक्त हैं। यानी उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के करीब 35 प्रतिशत पद अभी भी रिक्त हैं। संख्या की दृष्टि से सबसे अधिक 51 पद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में रिक्त हैं। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के 50 में से 35 पद रिक्त हैं। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में भी पांच पद रिक्त हैं। इसी तरह, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के 61 में से 30, कलकत्ता उच्च न्यायालय में 72 में से 39, दिल्ली उच्च न्यायालय में 60 में से 23, कर्नाटक उच्च न्यायालय में 62 में से 37, पटना उच्च न्यायालय में 53 में से 20 और गुजरात उच्च न्यायालय में 52 में से 21 पद रिक्त हैं। ऐसी स्थिति में उच्च न्यायालयों में लंबित मुकदमों के तेजी से निपटारे की बात करना बेमानी ही लगता है।
उम्मीद है कि 2018 में मेमोरैंडम आॅफ प्रोसीजर के मसौदे के कुछ बिन्दुओं को लेकर व्याप्त गतिरोध दूर हो जायेगा और न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया गति पकड़ेगी।

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