Monday 11 December 2017

सागरमाला : परिवहन रेखा बने तो विकास (जयंतीलाल भंडारी)

इस समय देश में विभिन्न माध्यमों से होने वाली कुल माल ढुलाई में जल परिवहन का हिस्सा वर्तमान में महज 6 फीसद है, उसे हाल ही में जहाजरानी मंत्रालय ने सागरमाला परियोजना के तहत 2025 तक बढ़ाकर 12 फीसद यानी दोगुना करने का लक्ष्य प्रस्तुत किया है। गौरतलब है कि देश में कुल घरेलू माल ढुलाई में करीब 54 फीसद ढुलाई सड़क मार्ग से, 33 फीसद ढुलाई रेल से, 7 फीसद ढुलाई पाइपलाइन से और 6 फीसद ढुलाई जल परिवहन से होती है। कुल घरेलू माल ढुलाई में जल परिवहन का हिस्सा वर्ष 2025 तक बढ़ाकर 12 फीसद करने का लक्ष्य रखा गया है, वह कोई सरल लक्ष्य नहीं है। इस लक्ष्य को पाने के लिए सागरमाला परियोजना और राष्ट्रीय जल मार्ग कानून के तहत 111 नए नदी मार्ग को राष्ट्रीय जल मार्ग के रूप में विकसित किए जाने की योजना बनाई गई है। यह सरकार की उस बड़ी योजना का हिस्सा है, जिसके तहत जल मार्ग आगे चलकर एक पूरक, कम लागत वाला और पर्यावरण के अनुकूल माल एवं यात्री परिवहन का माध्यम बन सकते हैं।
जिन जल मार्ग को प्राकृतिक पथ कहा जाता है वे कभी भारतीय परिवहन की जीवन रेखा हुआ करते थे। लेकिन समय के साथ आए बदलावों और परिवहन के आधुनिक साधनों के चलते बीती एक शताब्दी में भारत में जल परिवहन क्षेत्र बेहद उपेक्षित होता चला गया। भारत के पास 7500 किलोमीटर तटीय क्षेत्र है। जबकि 14,500 किमी नदी मार्ग है और इस विशाल नदी मार्ग पर हमेशा बहती रहने वाली नदियां, झीलें और बैकवाटर्स का उपहार भी मिला हुआ है, लेकिन हम इसका उपयोग नहीं कर सके और समय के साथ इनकी क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई।
जल परिवहन दुनियाभर में माल ढुलाई के लिए वरीयता वाला माध्यम है। खासतौर पर विशाल और विचित्र आकार वाली वस्तुओं के लिए। इसलिए अमेरिका, यूरोप और यहां तक कि चीन और वियतनाम भी अपने देश में जलमार्ग की पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप में 6.15 करोड़ टन कॉर्ग जलमार्ग से गुजरता है और 1.1 अरब टन माल ढुलाई जलमार्ग से चीन में होती है। वियतनाम जैसे देश में 4.5 करोड़ टन माल की ढुलाई जलमार्ग से होती है। यदि लागत के हिसाब से देखा जाए तो एक हॉर्स पावर शक्ति की ऊर्जा से पानी में चार टन माल ढोया जा सकता है जबकि इससे सड़क पर 150 किलो और रेल से 500 किलो माल ही ढोया जा सकता है। यही कारण है कि यूरोप, अमेरिका, चीन तथा पड़ोसी बांग्लादेश में काफी मात्रा में माल की ढुलाई अंतर्देशीय जल परिवहन तंत्र से हो रही है। कई यूरोपीय देश अपने कुल माल और यात्री परिवहन का 40 प्रतिशत पानी के जरिए ढोते हैं। जलमार्ग पर्यावरण मित्र और किफायती होने के बाद भी भारत इसका अपेक्षित लाभ नहीं उठा पाया है। ऐसे में इस समय केन्द्र सरकार आंतरिक माल ढुलाई को तेजी से प्रोत्साहन देकर भारी दबाव से जूझ रहे सड़क और रेल परिवहन तंत्र को राहत देने की रणनीति पर बढ़ती दिखाई दे रही है।
इनलैंड वाटरवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया (आईडब्ल्यूएआई ) ने कहा है कि भारत में जल परिवहन विकास की चमकीली रेखा बन सकता है। विशाल जल मार्ग और विशाल नदियों के कारण जल परिवहन के तहत माल ढुलाई संबंधी जरूरतों की पूर्ति के लिए बहुत संभावनाएं हैं। देश के अधिकांश बिजलीघर कोयले की कमी से परेशान रहते हैं। अंतर्देशीय जलमार्ग द्वारा कोयला ढुलाई हो सकती है। अनाज और उर्वरक की बड़ी मात्रा में ढुलाई जल परिवहन से संभव है। मसलन पंजाब एवं हरियाणा से खाद्यान्न कम कीमत पर सफलतापूर्वक जल परिवहन से पश्चिम बंगाल भेजा जा सकता है। लेकिन वाणिज्यिक जल परिवहन का बुनियादी ढांचा तैयार करने में भारी भरकम निवेश के प्रबंध पर ध्यान देना होगा।
सरकार ने अगले पांच वर्ष में जल मार्ग के विकास के लिए 50 हजार करोड़ रुपये खर्च करने के संकेत दिए हैं पर निजी क्षेत्र से अगले पांच वर्ष में जल परिवहन के लिए इसके पांच गुना निवेश की उम्मीद की गई है। निश्चित रूप से जल परिवहन क्षेत्र में पूंजी लगाने वालों को प्रोत्साहन देने के लिए नई रणनीति की जरूरत है। जल परिवहन क्षेत्र के विकास के लिए इस बात की वैधानिक व्यवस्था भी सुनिश्चित करनी होगी कि विभिन्न नदी तटीय इलाकों के कारखाने तथा अन्य उपक्रम अपनी माल ढुलाई में एक खास हिस्सा जलमार्ग को दें। जल मार्ग उपयोग करने वालों को कुछ सब्सिडी भी दी जानी चाहिए। इससे अंतर्देशीय जल परिवहन और तटीय जहाजरानी दोनों को बढ़ावा मिलेगा, सस्ते में परिवहन होगा।(RS)

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