Tuesday 12 December 2017

आखिर कैसे कटे अस्सी पार के लोगों का जीवन (अंबरीश कुमार) (NBT एडिट पेज)

पिछले दो दशकों में ज्यादातर बड़े शहरों में लोग बड़े मकान छोड़कर अपार्टमेंट में जा चुके हैं। कई अपने मकान बेचकर फ्लैट में जाने की तैयारी में हैं। मुख्य वजह है सुरक्षा और साफ-सफाई में आसानी। बड़े मकानों में सुरक्षा बड़ी समस्या है। चौकीदार और नौकर तो रखने ही पड़ते हैं, पर सुरक्षा की फिर भी कोई गारंटी नहीं होती। इसी वजह से लोग अपार्टमेंट में ज्यादा जा रहे हैं।
अपार्टमेंट में सबसे ज्यादा परेशानी 80 पार के बुजुर्गों की होती है। संयुक्त परिवार अब रहे नहीं। बुजुर्ग माता-पिता को अपने बेटे-बेटी के पास रहना पड़ता है। 80 पार के बहुत से बुजुर्ग चलने-फिरने में असमर्थ होते हैं। जो गंभीर बीमारियों से जूझते हैं वे तो अक्सर खुद उठकर नहाने तक नहीं जा सकते। इनके लिए बेटे-बेटी के सामने सिर्फ दो ही विकल्प बचता है या तो किसी ओल्ड एज होम की सेवा लें या कोई नर्स रखें देखभाल के लिए। यह बहुत महंगी व्यवस्था है जो सिर्फ बहुत बड़े शहरों में ही उपलब्ध है। एक नर्स को दिन में 10 घंटे रखने का शुल्क 15-20 हजार आता है। नर्स की बजाय अगर अप्रशिक्षित अटेंडेंट रखना हो तो भी एक शिफ्ट का 10-15 हजार रुपये तक देना पड़ सकता है।
ये अटेंडेंट बुजुर्ग की नित्य कर्म करने में मदद करते हैं। इसके अलावा उन्हें वील चेयर पर आसपास घुमाना और वक्त पर खाना, दवा आदि देना भी इनकी जिम्मेदारी होती है। पर फ्लैट में किसी बुजुर्ग को नीचे ले जाकर घुमाना आसान नहीं होता। जो लोग बड़े मकान में रहते हैं उनके पास यह सुविधा होती है कि बुजुर्ग को लॉन में कुछ देर घुमा दिया जाए। पर अपार्टमेंट में रहने वाले बुजुर्ग को लिफ्ट से नीचे ले जाकर घुमाना मुश्किल होता है। दो, तीन या चार मंजिल वाले वे अपार्टमेंट जिनमें लिफ्ट न हो सबसे कठिन साबित होते हैं। यहां तो चलने-फिरने में असमर्थ बुजुर्गों को चार-चार, छह-छह महीने तक नीचे ले जाना संभव नहीं होता। ऐसी स्थिति में बुजुर्गों में मानसिक अवसाद और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है।
दिल्ली से लेकर कोलकाता तक दो तीन या चार मंजिल वाले सरकारी फ्लैटों में लिफ्ट नहीं होती। नतीजतन इन फ्लैटों में रहने वाले परिवार में जो बुजुर्ग होते हैं वे फ्लैट में ही कैद होकर रह जाते हैं। खासकर वे जो वील चेयर पर निर्भर होते हैं। पर इससे भी बड़ी समस्या होती है इन बुजुर्गों के लिए नर्सिंग आदि की सुविधा जुटाने की। अस्सी पार का जीवन अब बहुत ज्यादा खर्चीला हो चुका है, खासकर किसी लाचार बुजुर्ग के लिए। एक महीने में सिर्फ 10-12 हजार रुपये का तो डायपर ही इस्तेमाल हो जाता है। इन्हें बार बार वॉशरूम ले जाना संभव नहीं होता। खुद सोचा जा सकता है कि हमारे समाज में कितने लोग ऐसा बड़ा खर्च वहन कर सकते हैं। सच्चाई यह है कि मध्य वर्ग भी किसी बुजुर्ग पर 40-50 हजार रुपये महीने खर्च कर पाने की स्थिति में नहीं होता।
अगर किसी बुजुर्ग को सरकारी नौकरी के चलते पेंशन मिलती है तो उससे काम चल जाता है, पर जिन्हें यह सुविधा न हो उनका जीवन कष्टमय हो जाता है। स्वास्थ्य बीमा में भी इस तरह के लंबे नर्सिंग खर्च की कोई व्यवस्था नहीं होती। इस पर सरकार को भी सोचना होगा और समाज को भी। अपने एक परिचित अमेरिका में नौकरी के लिए गए तो वहीं बस गए। इकलौते बेटे हैं। बुजुर्ग मां-बाप को वीजा नहीं मिला। वे ओल्ड एज होम में चले गए। सरकारी नौकरी थी पेंशन से गुजारा हो गया। ओल्ड एज होम में ही पिता ने अंतिम सांस ली। बेटा अंतिम संस्कार तक में नहीं पहुंच पाया। ये तो उस पिता का हाल है जिसे करीब 30 हजार पेंशन मिलती थी। जिन्हें पेंशन न मिलती हो वे क्या करेंगे और जिनका कोई बेटा-बेटी न हो वे क्या करेंगे? इस हालात से सभी को एक न एक दिन गुजरना ही है। बेहतर होगा इसकी कोई ठोस योजना बने ताकि हमारे समाज के बुजुर्ग सम्मान से अपने जीवन का अंतिम हिस्सा गुजार सकें।

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