Wednesday 13 December 2017

सूचना संचार में छल-छद्म (विनय जायसवाल)

बॉट यानी इंटरनेट रोबोट का सोशल मीडिया वर्जन सोशल मीडिया की दुनिया को पहले से और अधिक आभासी बना रहा है। दरअसल पिछले कुछ वर्षो में विकसित बॉट खासकर सोशल मीडिया बॉट बुद्धि और क्षमता में मानव के बिलकुल करीब हैं। यानी वे उसी तरह से प्रोफाइल बनाने, लाइक, शेयर, कमेंट, रिप्लाई करने में सक्षम हैं, जिस तरह से एक आम सामान्य सोशल मीडिया यूजर। इसमें से हर काम के लिए अलग-अलग तरह का विशेषज्ञ बॉट होता है। सोशल मीडिया बॉट की प्रोफाइल बनाने और उसी रूप में व्यवहार करने की विशेषता के चलते उसे इम्पर्सनैटर बॉट के नाम से भी पुकारा जाता है। उन्हें आसानी से पहचान पाना मुश्किल होता है। सोशल बॉट से उम्मीद की जाती रही है कि वह मानवीय अभिनय करके जनता की राय को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। इसलिए दुनिया भर में इम्पर्सनैटर बॉट का उपयोग तेजी से बढ़ा है। बिजनेस, लोकप्रियता बढ़ाने, प्रोफेशनल जरूरतों के अलावा सोशल बॉट हाल के वर्षो में राजनीतिक एजेंडा और चुनावी प्रोपेगंडा में इस्तेमाल के लिए सबसे अधिक चर्चित हुआ है। इसके इस्तेमाल की शुरुआत के प्रमाण अमेरिका के 2010 के राष्ट्रपति चुनाव से मिलने लगते हैं, लेकिन सोशल बॉट चुनावी प्रोपेगंडा के हथियार के तौर पर सबसे अधिक चर्चा में अमेरिका के 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में आया, जब इसके जरिये रूसी, तुर्की और मैक्सिको सर्वर से बॉट के जरिये सोशल मीडिया को ऑपरेट करके फेक न्यूज और न्यूज ट्रेंड के साथ छेड़छाड़ करके जनता के ओपिनियन को गलत तरीके से प्रभावित किया गया।
एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के चुनाव के दौरान ट्विटर ने करीब 3000 खाते रूसी बॉट के होने की पहचान के चलते डिलीट किए थे। इसी तरह से हाल में जर्मनी में हुए चुनाव में भी जनमत को प्रभावित करने के लिए बॉट के उपयोग को लेकर काफी आलोचना हुई है। ऑक्सफोर्ड इंटरनेट इंस्टीट्यूट ने अमेरिका, इंग्लैंड और यूक्रेन समेत करीब नौ देशों के अपने हाल ही के अध्ययन में पाया है कि सभी जगह सोशल बॉट के इस्तेमाल के जरिये चुनावी नतीजों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया गया था। हालांकि फेसबुक और ट्विटर समेत तमाम सोशल साइट्स बॉट के इस्तेमाल के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन अभी इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में 2.1 बिलियन फेसबुक खाते में से 270 मिलियन से भी कहीं अधिक खाते फर्जी हैं। ट्रांसपेरेंसी मार्केट रिसर्च 2016 के रिपोर्ट के अनुसार बॉट का दुनिया भर में 2015 में कुल कारोबार 115 मिलियन डॉलर था, जिसके 2024 तक करीब 1000 मिलियन डॉलर हो जाने का अनुमान है।
भारत में भी 2014 के लोकसभा के चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के आइटी सेल पर बॉट के जरिये फेक न्यूज और ट्रेंड सेटिंग के जरिये जनमत को प्रभावित करने का आरोप लग चुका है, लेकिन उस समय का बॉट उतना एडवांस नहीं था, जितना पिछले कुछ सालों में हो चुका है। यही कारण है कि उस समय के आरोपों को उतनी गंभीरता से नहीं लिया गया था और सोशल मीडिया की सारी आलोचना फेक आइडी और ट्रोलिंग पर टिकी रही, लेकिन हाल ही में गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव के दौरान जिस तरह से राहुल गांधी की मोदी से सोशल मीडिया की नेक टू नेक जंग शुरू हुई है, उससे खुद भारतीय जनता पार्टी आरोप लगाने लगी है कि कांग्रेस रूस और इंडोनेशिया के सर्वर से बॉट का यूज कर रही है। यह साफ इशारा करता है कि भारतीय चुनावी राजनीति को बॉट ने तेजी से अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया है, जो आने वाले राज्यों के चुनावों समेत 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय लोकतंत्र और जनता के लिए खतरे का एलान है, क्योंकि भारत इस आभासी दुनिया की फेक आइडी और ट्रोलिंग के जंजाल से पहले से ही जूझ रहा है और फिलहाल इससे निपटने के लिए किए जा रहे प्रयासों से कुछ खास सफलता हाथ नहीं लगी है। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि सोशल बॉट फेक आइडी और ट्रेंड सेटिंग की समस्या को आने वाले दिनों में और कितना विकराल रूप देने जा रहा है।
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 50 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं, जिसमें से 15 करोड़ से भी अधिक लोग सोशल मीडिया का प्रयोग कर रहे हैं। सोशल मीडिया का प्रयोग करने वाली आबादी में युवाओं की तादाद करीब 60 प्रतिशत के आसपास है। इस तरह से सोशल बॉट के जरिये फेक न्यूज, तस्वीर, वीडियो और तरह-तरह के प्रोपेगेंडा का एक अंतहीन और आभासी युद्ध छिड़ सकता है, जिसमें बॉट प्रोफाइल, रियल प्रोफाइल पर हावी हो जाएंगे और आर्टिफिसियल इंटेलजेंट लोगों के विचारों पर कब्जा जमा लेगा, जिससे लोकतंत्र के सोशल मीडिया की गिरफ्त में आने की संभावना बढ़ जाएगी। इस तरह से आने वाले कल में लोकतांत्रिक चुनावी प्रणाली को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए जरूरी है कि सरकार सोशल साइट्स और चुनाव आयोग के साथ मिलकर इन स्थितियों से निपटने के लिए अभी से कारगर कदम उठाए, लेकिन साथ ही यह भी ध्यान रखे कि लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी को कोई नुकसान न पहुंचे।
सोशल मीडिया का एक गंभीर पहलू यह भी है कि यूजर्स द्वारा साझा की गई निजी जानकारियों का व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए धड़ल्ले से उपयोग किया जाता है। सोशल बॉट का उपयोग बढ़ने के बाद इस तरह की निजी जानकारियों में सेंधमारी और बढ़ेगी, जो आने वाले कल के लिए यूजर्स के लिए और बड़ा खतरा बन सकता है। अगर समय रहते यह सुनिश्चित नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में सोशल बॉट की तकनीकी पहुंच का सहारा लेकर ब्लैकमेल, फिरौती, चोरी, डकैती, लूट और हत्या जैसे गंभीर अपराधों तक को अंजाम दिया जा सकता है। इसके साथ ही कॉरपोरेट सेंधमारी को भी और अधिक बल मिल सकता है। इसके लिए हमें अभी से सोचना होगा। (दैनिक जागरण )
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

No comments:

Post a Comment