लंबी राजनीतिक जद्दोजहद के बाद आखिरकार नेपाल ने नये संविधान के प्रावधानों के मुताबिक, संघीय गणतंत्र की राह पर पहला कदम रख दिया। पिछले तेईस नवम्बर को देश की संसद और प्रांतीय असेंबलियों के चुनाव के लिए पैंसठ फीसद मतदाताओं ने अपना वोट दिया। अंतिम चरण का मतदान सात दिसम्बर को होगा। देश की खंडित बहुदलीय राजनीति में मुकाबला दो गठबंधनों के बीच है। एक ओर देश की दो प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियां-नेकपा (यूएमएल) और नेकपा (माओवादी) का ‘‘वामपंथी अलायंस’ है, तो दूसरी ओर नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाला ‘‘डेमोक्रेटिक अलायंस’ है। इस गठबंधन में नेपाल शक्ति पार्टी, पहले की राजा और पंचायत समर्थक पार्टियां और मधेशियों के छोटे-छोटे दल हैं। ये दोनों गठबंधन चुनाव पूर्व हुए हैं, इसलिए इन्हें अनैतिक तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन अनेक सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को लेकर इनके बीच गहरा अंतरविरोध है। इसलिए चुनाव बाद बनने वाली सरकार राजनीतिक स्थिरता दे पाएगी, इस बारे में आास्त नहीं हुआ जा सकता। नेपाली कांग्रेस का झुकाव मध्य से दक्षिण की ओर है, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर इनकी सामाजिक-आर्थिक नीतियों में कोईवैचारिक अंतर दिखाई नहीं देता। विदेश नीति के मामले में फर्क जरूर है। नेपाली कांग्रेस को भारत समर्थक और कम्युनिस्ट पार्टियों को चीन समर्थक माना जाता है। नये संविधान के निर्माण के दौरान राजनीतिक विमर्श में दो मुद्दे सबसे ज्यादा उभर कर सामने आए थे। शक्तियों का विकेंद्रीकरण और शासन-सत्ता में समाज के हाशिये पर रहने वाले तबकों को उचित प्रतिनिधित्व दिलाया। लेकिन नये संविधान में मधेशियों और जनजातियों की राजनीतिक आकांक्षाएं पूरी नहीं हो पाई हैं। माओवादी नेता प्रचंड इनकी मांगों के प्रति नरम रुख रखते हैं, और संविधान में संशोधन के इच्छुक भी, जबकि नेकपा (यूएमएल) के नेता केपी ओली इसके प्रबल विरोधी हैं। अब ये दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही हैं। इसी तरह, राज्यों के पुनर्गठन और अन्य मुद्दों पर नेपाली कांग्रेस और नया शक्ति पार्टी के बीच मतभेद है। यानी जन सरोकारों के अहम मुद्दों पर अनिश्चितता कायम है। नेपाल के हर चुनाव में भारत विरोध का मुद्दा हॉट-केक की तरह बिकता है। इस चुनाव में भी नेकपा (यूएमएल) के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली नाकेबंदी का मुद्दा जोर-शोर से उछाल रहे हैं। उन्होंने पिछले दिनों मधेशी आंदोलन और नाकेबंदी के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था। वे चुनाव सभाओं में लोगों को आास्त करते हैं कि प्रधानमंत्री रहते हुए हमने चीन के साथ पारगमन संधि की है, जिसके कारण भारत की नाकेबंदी का नेपाल पर कोईअसर नहीं पड़ेगा। उनका यह रुख भारत की परेशानी का कारण बन सकता है। स्थानीय निकायों के चुनाव में नेकपा (यूएमएल) का प्रदर्शन अच्छा रहा है। इसलिए वामपंथी अलायंस के जीतने की संभावनाएं ज्यादा हैं। सवाल है कि सत्ता के लिए छोटी-छोटी बातों पर लड़ने वाले दलों का गठबंधन चुनाव बाद क्या एक रह पाएगा? नेताओं को यह काम करना चाहिए क्योंकि भारी संख्या में मतदान में हिस्सा लेकर जनता अपना कर्त्तव्य निभा रही है। अब नेताओं की बारी है।(RS)
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