Thursday 21 December 2017

क्या अपने ही दलदल से निकल पाएगी अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस? (चंद्रभूषण) NBT


दक्षिण अफ्रीका से हमारा दिली लगाव पिछली सदी की शुरुआत में महात्मा गांधी के जरिए बना था। अभी ब्रिक्स समेत हजार धागों ने दोनों देशों को नजदीकी से जोड़ रखा है लेकिन अश्वेत बहुलता वाले दुन‍िया के इस सबसे समृद्ध और जीवंत लोकतंत्र को लेकर जो जानकारी भारत में होनी चाहिए, वह दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आती है। शायद हमने यह मान लिया है कि दक्षिण अफ्रीकी आबादी से हमारा जो कुछ भी लेना-देना था, वह भारत रत्न नेल्सन मंडेला के साथ ही चला गया। उसके बाद वे अपने हाल पर, हम अपने हाल पर।
बहरहाल, रंगभेदी शासन के खिलाफ दुनिया का सबसे लंबा और बहादुरी भरा संघर्ष चलाने वाली दक्षिण अफ्रीकी लोकतंत्र की धुरी पार्टी अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस (एएनसी) पिछले 10 वर्षों में अस्तित्व के संकट से गुजरी है और वहां यह सवाल उठाया जाने लगा है कि इसका बचे रहना कहीं दक्षिण अफ्रीकी लोकतंत्र के लिए ही किसी बहुत बड़े खतरे का सबब न बन जाए। कारण यह है कि इस बीच इस पार्टी का ढांचा नितांत भ्रष्ट हो गया है और देश पर पिछले 23 वर्षों से यानी रंगभेद से आजादी मिलने के बाद से ही लगातार एकछत्र राज करने वाली यह पार्टी बिना किसी सिद्धांत के काम करने वाले एक सरकारी दल के तमाम दुर्गुणों से ग्रस्त हो गई है।
इसी हफ्ते पार्टी के सांगठनिक चुनाव में राष्ट्रपति जैकब जुमा के वर्चस्व को चुनौती देने वाले धड़े के उम्मीदवार सिरिल रामाफोसा एएनसी के अध्यक्ष चुने गए हैं। हालांकि, जिन 6 लोगों की कार्यकारिणी के जरिए उन्हें सारे राजनीतिक काम करने हैं, उनमें से कई जैकब जुमा के ही समर्थक हैं। खान मजदूरों के नेता रामाफोसा को खुद नेल्सन मंडेला एक दौर में अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी मानते थे लेकिन पार्टी पर कबीलाई विचारधारा वालों का वर्चस्व हो जाने के चलते बतौर राष्ट्रपति अपने अंतिम दौर में मंडेला ही अलग-थलग पड़ गए थे तो उनके उत्तराधिकारी को कौन पूछता।
नतीजा यह हुआ कि रामाफोसा ने राजनीति ही छोड़ दी और खदानों से जुड़े अपने अनुभव के बल पर जल्द ही एक बड़े खदान मालिक बन गए। उनकी गिनती फिलहाल दक्षिण अमेरिका के सबसे अमीर लोगों में होती है। रामाफोसा के साथ एक कलंक यह भी जुड़ा है कि जिन खान मजदूरों में उनकी जबर्दस्‍त फैन-फॉलोइंग थी, उन्हीं पर गोली चलाने के आदेश पर उन्होंने दस्तखत किए और एक हड़ताल के दौरान 40 के लगभग मजदूर गोलीबारी में मारे गए। 2012 में सिरिल रामाफोसा ने राजनीति में दोबारा वापसी की और अभी वह अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस के अध्यक्ष हैं लेकिन पार्टी के सबसे समर्पित जनाधार खान मजदूरों में उनकी साख हमेशा संदिग्ध रहेगी।
फिलहाल, अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस को लेकर दो बड़े सवाल इस देश में गूंज रहे हैं। एक यह कि क्या पार्टी का नया नेतृत्व भ्रष्टाचार और तमाम अन्य अनैतिक कृत्यों से जुड़े आरोपों से घिरे राष्ट्रपति जैकब जुमा से इस्तीफा देने को कहेगा। दूसरा यह कि क्या रामाफोसा के एएनसी का अध्यक्ष बनने का अर्थ यह है कि वह 2019 में होने वाले अगले आम चुनाव में राष्ट्रपति पद के लिए पार्टी के उम्मीदवार भी होंगे। सिरिल रामाफोसा के सामने एक बड़ी चुनौती उस वैचारिक-सांगठनिक त्रिकोण को बनाए रखने की है जो रंगभेद विरोधी आंदोलन के समय से ही बना हुआ है। दक्षिण अफ्रीका की ट्रेड यूनियनों के महासंघ कोसाटू और वहां की कम्युनिस्ट पार्टी एसएसीपी अभी एएनसी के बैनर से ही चुनाव लड़ते हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इनके बीच तनाव बढ़ता गया है। रामाफोसा अगर नेल्सन मंडेला के नक्शेकदम पर बढ़ना चाहते हैं तो उन्हें इस गठबंधन को बनाए रखना चाहिए।

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