Wednesday 25 May 2016

दो साल का कामयाब सफर1 ( हर्ष वी. पंत)

नरेंद्र मोदी की सरकार 26 मई को केंद्र की सत्ता में दो साल पूरे कर लेगी। यह सरकार आम चुनावों में सिर्फ एक नेता नरेंद्र मोदी के दम पर मई 2014 में भारी बहुमत से जीतकर सत्ता में आई थी। इसके दो साल के कार्यकाल को देखें तो सरकार में सिर्फ मोदी ही नजर आते हैं। यहां तक कि विरोधियों में भी कोई दूसरा नेता उनकी लोकप्रियता के आसपास भी नहीं पहुंच पाया है। दरअसल 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा। मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा हासिल करने योग्य भी वह सीटें नहीं ला सकी। यह स्थिति मोदी के लिए मददगार साबित हुई है। जो कांग्रेस नेहरू-गांधी परिवार के नेतृत्व में देश के बड़े हिस्से पर छह दशकों तक शासन करती रही वह आज बदलते भारत में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है। दरअसल परिवार के लोगों में वह धार नहीं बची है कि वे पार्टी को सशक्त नेतृत्व दे सकें। कांग्रेस के युवा उपाध्यक्ष अपने समर्थकों की तमाम कोशिशों के बाद भी न तो अपने नेतृत्व की क्षमता का प्रदर्शन कर पा रहे हैं और न ही मोदी सरकार को प्रभावी रूप से चुनौती दे पा रहे हैं। वहीं दूसरे विपक्षी दलों का स्वरूप क्षेत्रीय है। उनका राष्ट्रीय स्तर पर कोई प्रभाव नहीं है, जबकि नरेंद्र मोदी का प्रभाव पूरे देश में है। उन्होंने सोशल मीडिया का सफलतापूर्वक इस्तेमाल करके मौजूदा भारतीय राजनीति के महानायक के रूप में अपनी छवि बनाई है। 
यदि सफलता का पैमाना मुख्य विपक्षी पार्टी के सिकुड़ने को बनाया जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी सरकार कांग्रेस के दशक भर के शासनकाल में हुए घोटालों को एक-एक कर सामने लाकर पार्टी को रक्षात्मक मुद्रा में लाने में सफल रही है। मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी देश के उन हिस्सों में भी अपना विस्तार कर रही है जहां दो साल पूर्व तक उसका अस्तित्व नहीं था। देश के पूवरेत्तर राज्यों और दक्षिणी राज्य केरल में भाजपा का जनाधार तेजी से बढ़ रहा है। भाजपा सच्चे अर्थो में अखिल भारतीय पार्टी बन रही है। मोदी सरकार का भविष्य आर्थिक मोर्चे पर उसके प्रदर्शन पर निर्भर करेगा। हालांकि इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में है। विश्व की कई संस्थाओं ने ऐसा अनुमान व्यक्त किया है कि दुनिया में सबसे तेज गति से आर्थिक विकास करने के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। जब अमेरिकी डॉलर की मजबूती और कमोडिटी की गिरती कीमतों के कारण दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं सिकुड़ने लगी हैं तब भारत की अर्थव्यवस्था फलफूल रही है। उम्मीद है कि 2016 में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 7.6 फीसद रहेगी। मोदी सरकार द्वारा देश में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के कारण भारत ने 2015 में विदेशी निवेश आकर्षित करने के मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया। हालांकि देश में कुछ समय से निराशा का दौर रहा है, क्योंकि मोदी ने कोई बड़ा सुधारवादी कदम नहीं उठाया है। वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी ऐसा ही एक प्रमुख सुधारवादी कार्यक्रम है, जो कि संसद में अटका पड़ा है। जीएसटी आने से उत्पाद शुल्क और सेवा कर जैसे सभी अप्रत्यक्ष कर समाप्त हो जाएंगे। अर्थात अलग-अलग अप्रत्यक्ष करों के स्थान पर पूरे देश में जीएसटी की एक दर लागू होगी। इसे एक अप्रैल, 2016 से लागू किया जाना था, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने राजनीतिक कारणों से संसद के उच्च सदन में इसे पारित नहीं होने दिया। दरअसल जीएसटी कांग्रेस के दिमाग की उपज थी, लेकिन अब वह सोच रही है कि यदि वह इसकी राह में बाधक बनेगी तो मोदी सरकार आर्थिक मोर्चे पर विफल हो जाएगी। हालांकि राजग सरकार ने दूसरे कई अहम कदम उठाए हैं, जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था को दीर्घकाल में फायदा पहुंचाएंगे। दीवालिया संबंधी कानून में संशोधन ऐसा ही एक कदम है। जाहिर है, यह कदम भारत में कारोबार करने को आसान बनाएगा। इसके साथ ही सरकार ने लाभार्थियों के खाते में सीधे नगद रूप में सब्सिडी की रकम भेजने और नकली लाभार्थियों को छांटने के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना भी लागू की है। नौकरशाही की जवाबदेही सुनिश्चित कर सरकार ने गवर्नेस पर खासा जोर दिया है। यह भविष्य के लिए एक अच्छा संकेत है। 1मोदी सरकार का भ्रष्टाचार पर कड़ा रुख है। एक अनुमान के अनुसार मोदी सरकार के आने के बाद भारत में क्रोनी कैपिटलिज्म में तेज गिरावट दर्ज की गई है। विदेश नीति के मोर्चे पर केंद्र को सबसे ज्यादा सफलता मिली है। इसने दो साल के अल्प समय में अलग छाप छोड़ी है। मोदी भारत को अंतरराष्ट्रीय जगत में प्रमुख शक्ति के रूप में स्थान दिलाना चाहते हैं। गुट निरपेक्षता की बात अब पीछे छूट गई है। दरअसल मोदी सरकार का मुख्य ध्यान समान विचारधारा वाले देशों के साथ मजबूत संबंध स्थापित करने पर है, ताकि भारत को आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चे पर बढ़त दिलाई जा सके। दक्षिण चीन सागर को लेकर चीन और दूसरे पड़ोसी देशों के बीच उपजे विवाद में भी भारत ने सशक्त भूमिका निभाई है। एक अलग पाकिस्तान नीति भी विकसित की गई है। इसके तहत नई दिल्ली इस्लामाबाद पर दबाव बनाने के लिए संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे पाकिस्तान के सहयोगियों का उपयोग कर रही है। सरकार के अभी दो साल ही हुए हैं। यह शासनकाल का शुरुआती दौर ही माना जाएगा। इसमें जनता की उम्मीदें कुलाचें मारती हैं। सरकार की नीतियों का प्रतिफल अगले तीन साल में परिलक्षित होगा। उसी के आधार पर उसके भविष्य की रूपरेखा बनेगी और 2019 के चुनावों में उसकी दिशा तय होगी।1(लेखक लंदन के किंग्स कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर हैं)
दैनिक जागरण

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