Thursday 12 May 2016

सेना को मजबूत करेगा के-4 (शशांक द्विवेदी)

एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए भारत ने परमाणु हथियारों को ले जाने में सक्षम के-4 मिसाइल को अरिहंत पनडुब्बी से सफल परीक्षण किया है। सबसे खास बात यह है कि के-4 मिसाइल और अरिहंत पनडुब्बी दोनों को स्वदेश में ही विकसित किया गया है। के-4 की रेंज 3,500 किलोमीटर है साथ ही यह दो हजार किलोग्राम गोला-बारूद अपने साथ ले जाने में सक्षम है। बंगाल की खाड़ी में अज्ञात जगह से मिसाइल को लॉन्च किया गया। के-4 मिसाइल का नाम पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखा गया है जिसमें के-4 मिसाइल का कोड नेम है। मिसाइल की कामयाब लॉन्चिंग के साथ ही भारत पानी के भीतर मिसाइल दागने की ताकत रखने वाला दुनिया का पांचवा देश बन गया है। इससे पहले ये तकनीक अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन के ही पास थी। मिसाइल के सफल परीक्षण से भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम को और यादा मजबूती मिलेगी। इसके साथ ही भारत ने जमीन, हवा और पानी के भीतर से लंबी दूरी की न्यूक्लियर मिसाइल दागने की क्षमता विकसित कर ली है। के-4 बैलेस्टिक मिसाइल को पानी के भीतर 20 फीट नीचे से भी दागा जा सकता है।
आइएनएस अरिहंत पनडुब्बी को एक बार में चार के-4 मिसाइल से लैस किया जा सकता है। के-4 मिसाइल को डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन यानी डीआरडीओ ने विकसित किया है। अब डीआरडीओ के सीरीज की तीन और मिसाइलों को विकसित करने पर काम कर रहा है। अगले कुछ साल में सेना, एयरफोर्स और नेवी को के-4 की सेवाएं हासिल हो सकेंगी। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि के-4 मिसाइल, अग्नि 3 मिसाइल के मुकाबले कई गुना बेहतर है। क्योंकि परमाणु सक्षम मिसाइल अग्नि-3 इस पनडुब्बी के लिए मुफीद नहीं है। जबकि के-4 मिसाइल को खास तौर पर आईएनएस अरिहंत पनडुब्बी के लिए ही विकसित किया गया है। पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश (सेवानिवृत्त) ने इसे एक बड़ा कदम करार दिया है। लेकिन उनके मुताबिक जल्द ही अरिहंत को 5000 किलोमीटर से यादा रेंज की अंतर प्रायद्वीपीय मिसाइल (इंटर बैलेस्टिक मिसाइल ) से लैस करने की जरूरत है ताकि यह पनडुब्बी भारतीय समुद्र के किसी भी हिस्से में अपने लक्ष्य के लिए खतरा साबित हो सके।
अंतरराष्ट्रीय दबाव की वजह से के-4 के परीक्षण को पिछले दिनों गुप्त रूप से किया गया और रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) ने आधिकारिक रूप से इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार टेस्ट टू स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड और डीआरडीओ के अधिकारियों की देखरेख में यह परीक्षण पिछले दिनों बंगाल की खाड़ी में किया गया। मिसाइल को पानी के 20 मीटर नीचे से दागा गया। लक्ष्य को भेदने से पहले मिसाइल ने 700 किमी की दूरी तय की। यह मिसाइल 3500 किमी दूरी तक के लक्ष्य को भेद सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक टेस्ट आंध्रप्रदेश के विशाखापत्तकनम तट से 45 नॉटिकल मील दूर समुद्र में किया गया। टेस्ट के दौरान डमी पेलोड का इस्तेमाल किया गया। विशेषज्ञों के अनुसार के-4 मिसाइल को अभी दो और तीन बार और ट्रायल से गुजरकर विकसित होना है ताकि इसे सेना में शामिल किया जा सके। इससे पहले, सात मार्च को इस मिसाइल का डमी टेस्ट फायर किया गया था। बीते साल नवंबर में अरिहंत से के-15 मिसाइल के प्रोटोटाइप का भी कामयाब टेस्ट हुआ था। के-15 , के-4 का छोटा वर्जन ही है। बाद में इसका नाम बदलकर बी 05 कर दिया गया। यह अब सेना में शामिल किए जाने के लिए तैयार है। डीआरडीओ अब के-5 मिसाइल विकसित कर रहा है, इसकी रेंज 5000 किमी होगी जिसमें चीन के भीतरी हिस्सों में अपने लक्ष्य को भेदने की क्षमता होगी।
पिछले दिनों ही भारत ने किसी भी बैलेस्टिक मिसाइल हमले को बीच में ही नाकाम करने में सक्षम इंटरसेप्टर मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया था, अब सबमरीन के क्षेत्र में के-4 के सफल प्रक्षेपण से भारत की रक्षा पंक्ति मजबूत हो गयी है लेकिन अभी भी हमें इस पर बहुत सुधार करने की जरूरत है क्योंकि अमेरिका की सबसे ताजा न्यूक्लियर नोटबुक ‘बुलेटिन ऑफ दि एटोमिक साइंटिस्ट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार अगले एक दशक यानी 2015 तक पाकिस्तान दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी परमाणु शक्ति होगा। 2025 तक पाकिस्तान के पास करीब 350 परमाणु हथियार हो जाएंगे, वर्तमान में पाकिस्तान के पास 120 जबकि भारत के पास भी लगभग 100 है, फिलहाल विश्व में सबसे यादा परमाणु हथियार अमेरिका और रूस के पास है।
के-4 की ऑपरेशनल रेंज 3500 किमी, लंबाई-12 मीटर, चौड़ाई-1.3 मीटर, वजन-17 टन , ढोए जा सकने वाले आयुध का वजन 2000 किलोग्राम है। रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि के-4 मिसाइल में बूस्टर ग्लारइड फ्लाइट प्रोफाइल्सी का फीचर है। इसकी मदद से यह किसी भी एंटी बैलेस्टिक मिसाइल सिस्टम को चकमा दे सकता है। इसके नैविगेशन सिस्टम में सैटलाइट अपडेट की भी सुविधा है जिसकी वजह से लक्ष्य को सटीकता से भेदना मुमकिन है।
के-4 मिसाइल को खासतौर पर अरिहंत के लिए ही विकसित किया गया है। परमाणु क्षमता वाली अग्नि-3 मिसाइल को इस सबमरीन में फिट होने लायक छोटा नहीं बनाया जा सका था। आईएनएस अरिहंत की खासियत 111 मीटर लंबे आईएनएस अरिहंत में 17 मीटर व्यास वाला ढांचा है। इनमें 12 छोटी के-15 जबकि चार बड़ी के-4 मिसाइलें रखी जा सकती हैं। आईएनएस पनडुब्बी में 85 मेगावॉट क्षमता वाला न्यूक्लियर रीयेक्शन लगा हुआ है। यह पनडुब्बी सतह पर 12 नॉट से 15 नॉट की स्पीड से चल सकती है। पानी के अंदर इसकी गति 24 नॉट तक है। इसमें 95 लोग शामिल हो सकते हैं। फिलहाल भारत के लिए सबमरीन के लिए यह परीक्षण बहुत जरूरी हो गया था क्योंकि चीन और पाकिस्तान लगातार अपने मिसाइल कार्यक्रमों को बढ़ावा दे रहें है। चीन के पास बैलेस्टिक मिसाइलों का अंबार लगा हुआ है, ऐसे में अपनी सुरक्षा के लिए यह जरूरी हो गया था भारत समुद्र में भी अपनी ताकत बढ़ाये।
1962 के युद्ध में हम चीन से हार चुके हैं और पाकिस्तान से तो दो बार सीधी जंग हो चुकी है। लेकिन, अब यदि जंग की आशंका बनती है तो युद्ध पहले की अपेक्षा बिल्कुल दूसरे ढंग से लड़ा जायेगा। इसमें परमाणु बमों से लैस मिसाइलों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। जिस तरह आजकल परमाणु हथियारों और मिसाइलों के आतंकवादियों के हाथों में पड़ने की आशंका जतायी जा रही है, उससे भी चिंतित होना स्वाभाविक है। अमेरिका, रूस, इस्नाइल जैसे कई देशों के पास मजबूत सतह से सतह और सबमरीन के लिए इंटर कांटिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल सिस्टम हैं। ऐसे में के-4 का सफल प्रक्षेपण भारत की रक्षा पंक्ति के लिए अहम है। भविष्य में इसकी क्षमता को और बढ़ा कर भारत समुद्र में अपने रक्षा तंत्र को और मजबूत बना सकता है।
(लेखक विज्ञान विषय के जानकार हैं)(दैनिक जागरण )

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