Monday 30 May 2016

सुधरी है आर्थिक तस्वीर (जयंतीलाल भंडारी)

यकीनन मोदी सरकार के कार्यकाल के दो वर्ष पूरे होने पर यदि हम देश के आर्थिक परिदृश्य को देखें, तो पाते हैं कि पहले के बनिस्बत आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2015-16 में भारत 7.5 फीसद विकास दर के साथ दुनिया के उभरते हुए देशों में सबसे तेज विकास दर वाला देश दिखाई दिया है। रिपोर्ट में चालू वित्तीय वर्ष 2016-17 में विकास दर पिछले वर्ष से अधिक रहने की संभावना बताई गई है। आर्थिक समीक्षा 2015-16 में भी अनुमान लगाया गया है कि 2016-17 में विकास दर 7.25 से 7.75 प्रतिशत के बीच रहेगी। चूंकि इस बार मौसम विभाग के अनुमान के मुताबिक मॉनसून में बारिश सामान्य से ज्यादा होगी, अतएव विकास दर मौजूदा 7.5 प्रतिशत से अधिक होगी। अर्थ विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी सरकार ने आर्थिक डगर पर पिछले दो वर्षो में जो कदम उठाए हैं, उनसे आर्थिक बदलाव करीब आते हुए दिख रहे हैं। वस्तुत: मोदी देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से सब्सिडी और पात्रता योजनाओं से गैर जरूरतमंदों को बाहर करने का अभियान सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया है। उन्होंने दो वर्षो में बैंकों के माध्यम से हितग्राहियों को सब्सिडी दिए जाने और सब्सिडी के दुरुपयोग को रोकने का सफल काम भी किया है। पिछले दो साल में राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की राह पर सरकार की प्रतिबद्धता दिखाई दी है। लेकिन संयोगवश इसमें तेल और जिंसों की घटी हुई कीमतों का काफी योगदान है। पिछले दो वर्षो में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने के परिप्रेक्ष्य में भारत ने चीन और अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है। अंकटाड की रिपोर्ट बताती है कि एफडीआई के मोर्चे पर भारत के प्रदर्शन में काफी प्रगति हुई है। वर्ष 2014-15 में भारत का जो एफडीआई 45 अरब डॉलर था, वह वर्ष 2015-16 में बढ़कर 63 अरब डॉलर हो गया है। पिछले दो वर्षो से बुनियादी ढांचा निवेश और प्रबंधन में खासी सक्रियता देखी गई है, विशेषकर कोयला, बिजली और सड़क क्षेत्रों में काफी काम हुआ है। सरकार ने स्पेक्ट्रम, कोयला और खनन में व्यवस्थागत सुधार किए हैं। लेकिन देश के समक्ष पिछले दो वर्षो में कई आर्थिक चुनौतियां भी उपस्थित रहीं। पिछले दो साल में बैंकों की छलांग लगाकर बढ़ती हुई गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए) देश की चिंताजनक आर्थिक चुनौती साबित हुई है। हाल ही में नियंतण्र वित्तीय संगठन कॉपरेरेट डेटाबेस एसक्विटी ने अपनी रिपोर्ट मई 2016 में कहा है कि भारत में बढ़ते हुए बैंकों के एनपीए भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक संकेत हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के बैंकिंग सेक्टर के लिए वित्त वर्ष 2015-16 खासा चुनौतीपूर्ण रहा है। इस दौरान 25 सरकारी और प्राइवेट बैंकों के मुनाफे में करीब 35 फीसद गिरावट आई, जबकि ब्याज से होने वाली आय महज एक अंक में बढ़ी है। स्थिति यह है कि मौजूदा बाजार भाव के हिसाब से 25 बैंकों का एनपीए बढ़कर कुल मार्केट कैप का एक तिहाई हो गया है। पिछले दो वर्षो में उद्योग-कारोबार क्षेत्र में भारत की विकास गति धीमी रही है। उद्योग और कारोबार सुगमता से संबंधित विश्व बैंक की रैंकिंग में भारत 189 में से 138वें पायदान पर है। इस परिप्रेक्ष्य में जमीन की मंजूरी, जमीन की उपलब्धता, परियोजना पूरी होने का प्रमाणपत्र जैसे कुछ मसलों के कारण मुश्किलें बनी हुई है। औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट 2016 के अनुसार निवेश और उनसे संभावित रोजगार सृजन के आंकड़े बता रहे हैं कि निवेश और रोजगार की स्थिति अनुकूल नहीं है। देश की विनिवेश दर जीडीपी के 30 फीसद से नीचे जा चुकी है जबकि हमें 35 प्रतिशत से ऊपर की विनिवेश दर की आवश्यकता है। शेयर बाजार निवेशक भी बीते दो वर्षो से अर्थव्यवस्था में जो उत्साहवर्धक बदलाव चाह रहे हैं, वैसी उम्मीदें कम ही पूरी हुई हैं। पिछले दो वर्षो में दिवालिया संहिता से इतर व्यापक ढांचागत सुधार एजेंडा अभी भी अधूरा है। भारतीय श्रम एवं भूमि कानून व्यापक रूप से अपरिवर्तित रहे हैं। स्थिति यह है कि केंद्र की तुलना में राज्यों ने इन कानूनों में जरूरी बदलाव लाने के लिहाज से अधिक कारगर कदम उठाए हैं। सुधारों के मोर्चे पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का लागू न हो पाना निर्विवाद रूप से सबसे बड़ी कमी है। कर प्रशासन में सुधार की दरकार है। अब मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में तीसरे साल को सही मायनों में निर्णायक बनाया जाना होगा। सरकार को मूल एजेंडे की दिशा में आगे बढ़ना होगा। देश में रुके हुए आर्थिक एवं श्रम सुधारों की गति तेज करनी होगा। अब मुख्य ध्यान खासकर कृषि व ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े कानून लागू करने पर होना चाहिए, जिन पर देश की बड़ी आबादी निर्भर है। वित्तीय दबाव के परिप्रेक्ष्य में वित्तीय कंपनियों, बैंकों, बीमा और एनबीएफसी के लिए एक समग्र संहिता लाई जानी चाहिए। पीपीपी के लिए सार्वजनिक इकाई विवाद निपटारा विधेयक पर काम तेजी से आगे बढ़ाना चाहिए। जीएसटी पारित करने की नई रणनीति बनाई जानी चाहिए। निर्यात बढ़ाने, उद्योग-कारोबार को प्रोत्साहन और बैंकों के एनपीए एवं महंगाई नियंतण्रकी नई व्यूह रचना बनाई जानी चाहिए। देखना है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगले तीन वर्षो में देश की आर्थिक तस्वीर में समृद्धि और खुशहाली की कितनी रेखाएं खींच पाते हैं। अब सारा दारोमदार उन्हीं पर है। देश भी उन्हें ही खेवनहार के तौर पर देखरहा है। वस्तुस्थिति से प्रधानमंत्री ही नहीं, उनके मंत्री और सरकार के नौकरशाह भी अनजान नहीं हैं। सो, बेहतरी के लिए कोई खाका या विजन उन लोगों के जेहन में होगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। जनता के मन में जो उम्मीदें दो साल पहले मोदी और उनकी टीम ने जगाई हैं, उनके भार को मोदी शिद्दत से महसूस जरूर करते होंगे। चूंकि, चुनौती बड़ी है और लोगों की आकांक्षाएं विकराल, चुनांचे केंद्र सरकार को जनहितकारी फैसले लेने के लिए दिल भी बड़ा करना होगा, तभी जनता ‘‘अच्छे दिन’ आना महसूस कर सकेगी। .........(RS)

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