Thursday 12 May 2016

मददगारों को सहारा (डॉ मोनिका शर्मा )

एक जरूरी और मानवीय पहल के तहत सुप्रीम कोर्ट ने सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ित लोगों की मदद करने वाले लोगों को बेवजह परेशान किए जाने से बचाने के लिए सराहनीय दिशा-निर्देश दिए हैं। इनमें कहा गया है कि सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों की जिंदगी बचाने वाले लोगों को पुलिस या अन्य अधिकारियों द्वारा डरने की जरूरत नहीं है। यह चिंतनीय ही है कि देशभर में जितने लोग बीमारियों और प्राकृतिक आपदाओं से नहीं मरते उससे कहीं ज्यादा सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा रहे हैं। सड़क दुर्घटनाओं के बढ़ते आंकड़ों और घायलों को समय पर चिकित्सा सुविधा न मिल पाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई बार अपनी चिंता जाहिर की है। सर्वोच्च अदालत की यह फिक्रलाजिमी भी है, क्योंकि भारत सड़क हादसों के कारण अपना सर्वाधिक जनधन गंवाने वाले देशों में शीर्ष पर है। देश में सड़क हादसों के बढ़ते आंकड़े तो दुर्भाग्यपूर्ण हैं ही, इन हादसों के शिकार लोगों को सही समय पर इलाज ना मिल पाना भी कम अफसोसजनक नहीं। यह वाकई दुखद और विचारणीय है कि सड़क दुर्घटनाओं में बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु की वजह समयानुसार उचित इलाज ना मिलना भी है। 1इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि आमजन पीड़ितों की मदद करने के फेर में खुद किसी प्रताड़ना का शिकार नहीं बनना चाहते। आम नागरिक को आज भी व्यवस्था पर भरोसा नहीं है। ये दुर्भाग्यपूर्ण और अमानवीय परिस्थितियां कानूनी जटिलताओं और प्रशासनिक व्यवस्था के गैर जिम्मेदार रवैये के चलते हमारी व्यवस्था में बरसों से ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। जिसके चलते सड़क हादसों में शिकार लोगों को समय पर इलाज और मदद नहीं मिल पाती और वे मौत के मुंह में समा जाते हैं। ऐसे में यह एक आशान्वित करने वाली खबर है, क्योंकि सड़क हादसों में शिकार लोगों को सही समय पर चिकित्सा मिल सके तो हर वर्ष कई जानें बचाई जा सकती हैं। देश में हर साल करीब एक लाख बीस हजार से ज्यादा लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में असामयिक मौत होती है। इन भयावह परिस्थितियों में कई हादसे तो ऐसे हैं जिनमें पूरे-पूरे परिवार ही खत्म हो जाते हैं। घायलों की संख्या तो अनगिनत है, जिनमें कई जीवन भर के लिए अपाहिज बन जाते हैं। नि:संदेह सड़क पर बढ़ते वाहन, शराब के सेवन, मोबाइल की लत और यातायात नियमों की अनदेखी के चलते इन आंकड़ों में इजाफा हो रहा है। अकाल मौतों के बढ़ते आंकड़ों के बावजूद समाज में यातायात नियमों के प्रति घोर उपेक्षा का भाव झलकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने सर्वाधिक सड़क दुर्घटनाओं वाले जिन 10 देशों की पहचान की है, उनमें भारत सबसे ऊपर है। वहीं घायलों की मदद के मामले में ना हमारे यहां कोई अनिवार्यता का नियम लागू है और ना ही प्रशासनिक और कानूनी कार्रवाई में आमजन का भरोसा। इसीलिए पीड़ितों की मदद के लिए कोई आगे नहीं आना चाहता। 1दरअसल हमारे यहां यातायात नियमों के उल्लंघन को लेकर आज तक सख्त कानून नहीं है। साथ ही आपातकालीन सुविधाओं को लेकर भी बड़ा ही लचर रवैया अपनाया जाता है। इतना ही नहीं सड़क दुर्घटनाओं के मामले में दंडात्मक कार्रवाई के दौरान रसूख वाले लोगों के खिलाफ भी लचीला रुख ही देखने को मिलता है। यही वजह है कि इन दिशा-निर्देशों में शराब पीकर या तेज गति में वाहन चलाने, लाल बत्ती पार करने और हेल्मेट या सीट बेल्ट के नियम तोड़ने के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भी सुझाव दिया है, जो कि जरूरी भी है। शीर्ष अदालत ने इन दिशा-निर्देशों का व्यापक प्रचार-प्रसार करने की भी बात है। ताकि आमजन को जागरुक बनाया जा सके। यकीनन सुप्रीम कोर्ट के इन दिशा-निर्देशों से आमजन को पीड़ितों की मदद के लिए आगे आने का हौसला मिलेगा। यह कदम घायलों का जीवन बचाने में अहम भूमिका निभाते हुए बड़ी जनहानि को रोकने में मददगार हो साबित हो सकता है। 1(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)(दैनिक जागरण )

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