Thursday 12 May 2016

पाकिस्तान का दोहरा खेल (विवेक काटजू)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व समुदाय को एक बार फिर याद दिलाया है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए एक समग्र वैश्विक दृष्टिकोण की जरूरत है। वाशिंगटन में परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में मोदी ने जोर देते हुए कहा कि आतंकवाद किसी और समस्या के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। उन्होंने दुनिया के नेताओं को फिर से स्मरण दिलाया कि आतंकवादियों की पहुंच हर जगह है और सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, लेकिन दुर्भाग्य है कि हर देश ने उनसे अलग-अलग लड़ाई लड़ी। मोदी ने खेद जताया कि आतंक के खिलाफ लड़ाई के लिए जिस अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत थी उसका अभाव रहा। मोदी ने जो सच्चाई बयान की उससे कोई इन्कार नहीं कर सकता है। इस संदर्भ में पाकिस्तान के संयुक्त जांच दल (जेआइटी) के भारत दौरे का परीक्षण किया जाना चाहिए।1जेआइटी का भारत दौरा पांच दिनों तक रहा। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने उसे पठानकोट हमले से जुड़े पुख्ता साक्ष्य सौंपे, जिससे पता चलता है कि इसमें आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का हाथ था। यह सबूत उन्हें पहले भी दिए गए थे। अपने दौरे के दौरान जेआइटी हमले की जगह देखने पठानकोट एयरबेस गई। कुछ राजनीतिक पार्टियों ने एयरबेस में जेआइटी खासकर उसमें आइएसआइ के एक अधिकारी की मौजूदगी के खिलाफ प्रदर्शन किया। घटनास्थल पर जांचकर्ताओं के जाने का यह विरोध गलत था। उसी समय रक्षामंत्री का जेआइटी के एयरबेस के दौरे पर विरोधाभासी बयान आया। जेआइटी ने कुछ गवाहों से पूछताछ भी की। भारत ने एक अच्छी मंशा से पाकिस्तान को सारे साक्ष्य उपलब्ध कराए ताकि वह पठानकोट हमले के साजिशकर्ताओं को गिरफ्तार कर सके, उन पर दोष साबित कर सके और सफलतापूर्वक मुकदमा चला सके। इस तरह भारत ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के प्रति अपनी मंशा और गंभीरता व्यक्त कर दी। इसके जवाब में जब जेआइटी भारत में थी तो पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ अपने लोगों को भड़काना आरंभ कर दिया। इसके लिए उसने कथित रूप से एक भारतीय जासूस सेवानिवृत्त नैवी अधिकारी कुलभूषण जाधव की गिरफ्तारी का सहारा लिया। उसने इस गिरफ्तारी को बहुत बड़ा बनाने का भरसक प्रयास किया। इसके लिए बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस की गई, जिसमें पाकिस्तान के सूचना मंत्री परवेज राशिद और इंटर सर्विस प्रेस रिलेशन के डायरेक्टर लेफ्टिनेंट जनरल असीम बाजवा मौजूद थे। उस प्रेस कांफ्रेंस में कुलभूषण यादव का छह मिनट का एक वीडियो दिखाया गया था जिसमें उन्हें यह स्वीकारते हुए दिखाया कि उनकी भूमिका पाकिस्तान में जासूसी करने और बलूचिस्तान और कराची में अशांति और आतंकवाद को बढ़ावा देने की है।1भारतीय मीडिया ने एक ऐसे वीडियो को काफी गंभीरता से लिया जिससे स्पष्ट रूप से छेड़छाड़ की गई थी। इस वीडियो की ज्यादा अहमियत नहीं है। पाकिस्तान की सोच है कि वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने आधारहीन आरोपों को साबित कर पाएगा कि भारत उसके यहां आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। आरोप लगाने की इस कवायद में पाकिस्तान ने भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का भी नाम लिया। वीडियो में जाधव कहते हैं कि वह रॉ के संयुक्त सचिव अनिल कुमार गुप्ता के लिए काम कर रहे थे। भारत ने साफ किया कि उसके यहां इस नाम का कोई अधिकारी नहीं है। वहीं प्रेस कांफ्रेंस के दौरान लेफ्टिनेंट जनरल बाजवा ने कहा कि जाधव ने खुलासा किया है कि वह सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के लिए काम कर रहे थे। यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान जाधव के कंधे पर बंदूक रखकर गोली चला रहा है, लेकिन उनके निशाने पर डोभाल हैं। पाकिस्तान यह बात बखूबी जानता होगा कि डोभाल के खिलाफ उसका आरोप हास्यास्पद है, क्योंकि किसी भी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की खुफिया जानकारी जुटाने में कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती। अब सवाल यह है कि पाकिस्तान ने डोभाल को इसके लिए क्यों चुना है? वह भी तब जब अजित डोभाल और उनके पाकिस्तानी समकक्ष लेफ्टिनेंट जनरल नासिर जंजुआ के बीच वार्ता आरंभ होने जा रही है। 1बाजवा ने डोभाल का नाम दो कारणों से लिया है। पहला तो यही कि भारत के खिलाफ यह प्रचारित करना कि वह पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। दूसरे, यह इस बात का संकेत है कि पाकिस्तानी सेना भारत के साथ संबंधों को सुधारने के प्रति अनिच्छुक है। स्पष्ट रूप से मोदी सरकार को अब समझ लेना चाहिए कि पाकिस्तान आतंकवाद के मसले पर दोहरा खेल खेलेगा। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान विश्व समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि वह आतंक के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है और इसीलिए वह भारत को निशाने पर लेने जा रहा है। चीन ने जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रस्ताव को वीटो कर दिया है। यानी चीन ने भारत का एक बार फिर खुलकर विरोध किया। कई दशकों से चीन उइगर आतंकियों का सामना कर रहा है। वह उइगर अलगाववादियों का सामना करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग चाहता है। पूर्व में वह भारत से उइगर नेताओं को पनाह नहीं देने की गुहार लगा चुका है, जबकि वह खुद पाकिस्तान के प्रभाव में एक बड़े आतंकवादी को संरक्षण प्रदान कर रहा है। उसका कहना है कि भारत ने मसूद अजहर के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं दिए हैं। चीन का यह कदम दिखाता है कि पाकिस्तान के साथ उसके कितने गहरे रिश्ते हैं। 1मोदी सरकार को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए सऊदी अरब जैसे देशों का सहयोग हासिल करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हालांकि उसे यह भी अहसास होना चाहिए कि भारत को आतंकवाद का सामना स्वयं की क्षमताओं के आधार पर करना होगा। पाकिस्तानी आतंकवाद को प्रमुख राष्ट्रीय चुनौती के रूप में देखने की जरूरत है। जहां तक पठानकोट हमले की जांच की बात है तो यह देखना अभी शेष है कि पाकिस्तान भारत में संयुक्त जांच दल को एनआइए से मिले सहयोग के बारे में क्या कहता है? पाकिस्तानी मीडिया की शुरुआती रिपोर्ट इस संदर्भ में सकारात्मक नहीं हैं। एनआइए मसूद अजहर समेत पठानकोट हमले के दूसरे साजिशकर्ताओं से पूछताछ के लिए पाकिस्तान जाना चाहती है। यह निश्चित नहीं है कि पाकिस्तान उसे वहां जाने की अनुमति देगा। पाकिस्तान का इम्तिहान यह नहीं है कि वह एनआइए को जैश के आतंकियों से पूछताछ करने देता है या नहीं, बल्कि यह है कि इस्लामाबाद कितनी तेजी से और कितनी सफलता से इन आतंकियों को कानून के घेरे में लाता है। 1(लेखक विदेश मंत्रलय में वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं और पाकिस्तान-अफगानिस्ता मामलों के विशेषज्ञ हैं)(दैनिक जागरण)

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