Friday 13 May 2016

भारत-नेपाल की बढ़ती दूरी (आरपी सिंह )

नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी का भारत दौरा रद होने, भारत में नेपाली राजदूत दीप कुमार उपाध्याय की वापसी और नेपाल में भारतीय राजदूत रंजीत राय को अवांछित घोषित किए जाने संबंधी अफवाह भारत-नेपाल संबंधों में बढ़ती खाई का एक और प्रमाण है। उपाध्याय को वापस बुलाने संबंधी आदेश प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा माओवादियों के साथ वाली गठबंधन सरकार बचा लेने के एक दिन बाद आया। माओवादियों की इच्छा अपने मुखिया पुष्प कमल दहल प्रचंड की अगुआई में एक राष्ट्रीय सरकार गठन करने की थी। उनकी यह इच्छा इसलिए धरी रह गई, क्योंकि प्रचंड पर्याप्त समर्थन जुटाने में नाकाम रहे। दूसरी ओर ओली ने गृहयुद्ध से संबंधी मामलों को वापस लेने सहित नौ सूत्री समझौता कर माओवादियों की शिकायतों को दूर करने का वादा किया। ओली की पार्टी के कुछ सदस्यों का मानना है कि उनकी सरकार को गिराने की साजिश नई दिल्ली में रची गई और उपाध्याय और रंजीत राय की उसमें भागीदारी थी। उपाध्याय को वापस बुलाने का फैसला ओली सरकार से उनके कथित असहयोग और रंजीत राय के साथ मधेस क्षेत्र के दौरे से भी जुड़ा था। हालांकि नेपाल का कहना है कि राष्ट्रपति की भारत यात्रा रद होना और राजदूत वापस बुलाने का फैसला एक-दूसरे से जुड़ा नहीं है और रंजीत राय के निष्कासन की अफवाह आधारहीन है, फिर भी इस सबसे वास्तविक तस्वीर सामने नहीं आती। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2014 की नेपाल यात्रा और अप्रैल 2015 में नेपाल में आए भीषण भूकंप में भारत की सक्रिय मदद के बाद दोनों देशों के संबंध एक नई ऊंचाई पर पहुंच गए थे। दोनों देशों के संबंधों में भटकाव नवंबर 2015 में नेपाल द्वारा अपना संविधान लागू करने के बाद शुरू हुआ। भारत को पहले से पता था कि नया संविधान नेपाल की राजनीति में पहाड़ी क्षेत्र के लोगों का प्रभुत्व कायम करेगा और तराई क्षेत्र के लोगों के प्रतिनिधित्व को कमजोर करेगा, लेकिन वह समय रहते सक्रिय नहीं हुआ। मधेसियों ने नए संविधान का विरोध जिस तरह किया उससे भारत-नेपाल सीमा बाधित हुई। भारत ने इस अवरोध को खत्म करने में सक्रियता नहीं दिखाई, बल्कि तटस्थ बना रहा। परिणामस्वरूप नेपाल में आवश्यक वस्तुओं की किल्लत हो गई। इस मौके का फायदा चीन समर्थकों ने उठाया और नेपाल में भारत विरोधी भावनाओं को भड़काया। तराई के लोगों ने भी नई दिल्ली से खुद को उपेक्षित महसूस किया। उन्हें किसी तरह की मदद नहीं मिली। गतिरोध तब खत्म हुआ जब नेपाल तराई क्षेत्र के लोगों की शिकायतों को दूर करने के लिए संविधान में कुछ संशोधन को राजी हुआ। इस बीच नेपाल ने भारत पर दबाव बनाने के लिए चीनी कार्ड खेल दिया। बीजिंग ने पेट्रोलियम पदार्थो और दूसरी जरूरी वस्तुओं की आपात आपूर्ति भी की। हालांकि चीन नेपाल की सभी जरूरतों को पूरा नहीं कर सका, लेकिन बीजिंग ने अपने हावभाव से नेपाल के दिल में अपने लिए जगह बना ली। 
नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने प्रचलित प्रथा तोड़ सबसे पहले चीन की यात्रा करने की इच्छा जताई। चौतरफा दबाव के बाद उन्होंने चीन से पहले भारत का दौरा किया। उनकी यात्रा के दौरान दोनों देशों ने फिर से संबंधों में मिठास लाने की बात कही। नेपालियों को अहसास है कि नेपाल न सिर्फ बंदरगाह विहीन देश है, बल्कि भारत पर निर्भर है। भारत के बाद ओली ने चीन की यात्रा की। उन्होंने चीन के साथ ट्रांजिट और ट्रांसपोर्ट समझौता किया, जिसके तहत चीन नेपाल को अपने बंदरगाह उपलब्ध कराएगा और चीन दोनों देशों के बीच रेल संपर्क का विकास करेगा। नेपाल और चीन की नजदीकी भारत के लिए एक झटका है, क्योंकि नेपाल अपना साठ फीसद आयात भारत के जरिये पूरा करता है। चीन के साथ समझौते से भारतीय बंदरगाहों पर नेपाल की निर्भरता खत्म हो जाएगी। हिमालय जो कि नेपाल और चीन के संपर्क में एक बाधक बना था, अब दोनों देशों को जोड़ने वाला बन गया है। ट्रांजिट एंड ट्रेड समझौता दक्षिण एशिया में नए समीकरण का सूत्रपात करेगा। चीन का नेपाल में प्रवेश भारत को घेरने की उसकी योजना का हिस्सा है। चीन द्वारा नेपाल में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की योजना भारतीय सीमाओं तक चीनी सैनिकों की पहुंच सुनिश्चित करेगी। नेपाल-चीन के बीच रेल संपर्क की बहाली सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर खतरा बढ़ाएगी। यही एक मात्र कॉरिडोर है जो पूर्वोत्तर को भारत से जोड़ता है। 
नेपाल में चीन की मौजूदगी का अर्थ है कि भारत के अलगाववादियों और माओवादियों तक उसकी पहुंच बढ़ जाएगी। साथ ही भारत-नेपाल सीमा पर सुरक्षा संबंधी दूसरी समस्याएं पैदा होंगी। इस सबके बावजूद भारत के लिए एक उम्मीद की किरण है। नेपाल में इंफ्रास्ट्रक्चर की हालत दयनीय होने, दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियां, चीन के गियोरोंग से लगती नेपाली सीमा केरुंग तक रेल लिंक के अभाव के कारण नेपाल तुरंत ही किसी तीसरे देश से व्यापार के लिए चीन का इस्तेमाल नहीं कर सकता। चीन-नेपाल रेल लिंक के विकास में अभी सालों लगेंगे। पूर्व में तत्तापानी के जरिये दोनों देशों के बीच व्यापार होता था, लेकिन 2015 के भूकंप के बाद वह भी बंद हो गया। नेपाल की सीमा से चीन के नजदीकी बंदरगाह तियानजिन की दूरी 3000 किमी है, जबकि भारतीय बंदरगाह हल्दिया की दूरी एक हजार किमी से भी कम है। नेपाल का फायदा भारतीय बंदरगाह के प्रयोग में है। चीन-नेपाल रेल लिंक भौगोलिक, तकनीकी और आर्थिक लिहाज से दुष्कर है। नेपाल 24 रास्तों के जरिये भारत से व्यापार करता है। भारत ने नेपाल के साथ पांच रेल कॉरिडोर बनाना तय किया है।
भारत को नेपाल के साथ संबंधों में आई तल्खी को खत्म करने के लिए नई रणनीति पर काम करना होगा। भारत को किसी एक दल को तरजीह देने के बजाय सभी पार्टियों के साथ मेल जोल बढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही नेपाली सेना और नागरिक समाज से संवाद बढ़ाना चाहिए। दोनों का हित एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। नेपाल विकास करेगा तो भारत भी विकास करेगा। भारत-नेपाल संबंधों में मजबूती चीनी खतरे को कम करेगी। यदि भारत वहां ढांचागत विकास नहीं करेगा और नेपाल को अपनी अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं बनाएगा तो चीन को वहां पैर फैलाने मौका मिल जाएगा। कम्युनिस्टों से भरी नेपाल की गठबंधन सरकार भारत विरोधी और चीन समर्थक है। चीन ने नेपाल को मदद देने में भारत को पीछे छोड़ दिया है। यदि नई दिल्ली नेपाल को चीन के पाले में जाने से रोकना चाहती है तो उसे तुरंत कदम उठाने चाहिए।(लेखक सेवानिवृत्त ब्रिग्रेडियर हैं)दैनिक जागरण

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