Thursday 12 May 2016

क्यों जलते हैं जंगल (डॉ. भरत झुनझुनवाला)

उत्तराखंड में मेरे घर के सामने के जंगल में गांव की महिलाएं बड़े परिश्रम से आग लगाती हैं। एक जगह आग नहीं फैली तो दूसरी जगह घास एकत्रित करके पुन: प्रयास करती हैं। उनका कहना है कि पुरानी घास को जला देने से नई घास जल्दी एवं अच्छी उगती है। घास को हर साल जला देने से सूखे पत्ते ज्यादा मात्र में जमा नहीं होते हैं। इससे आग धीमी और निचले स्तर पर ही जलती है। खड़े पेड़ों को नुकसान नहीं होता है। अमेरिका के आदिवासी रेड इंडियन द्वारा इसी प्रकार घास को जलाया जाता था, ताकि वह सुदृढ़ होकर निकले। जिस प्रकार गन्ने की फसल को काटने के बाद खेत में आग लगाने से नए पौधे अच्छे आते हैं उसी प्रकार घास को जलाया जाता है। जंगलों को आग से बचाने के लिए अमेरिका के जंगल विभाग ने एक नीति बनाई है। उसने अपने अध्ययन में पाया कि जंगल को न जलने देने से सूखी पत्तियां बड़ी मात्र में जमा होती जाती हैं। इसके बाद लगी आग भयंकर होती जाती है और पेड़ों को भी नष्ट कर देती है। यूएसए टुडे पत्रिका में इदाहो राज्य के पायेट नेशनल फॉरेस्ट के एक अग्निशमन अधिकारी के हवाले से बताया गया है, ‘यह बहुत लंबा आग का मौसम रहा। हमें कुछ अच्छी आग मिली।’ उस जंगल में 150 बार आग से 70,000 एकड़ जंगल जल गए थे। आग लगने से वे खुश थे। पहले हर आग को बुझाने का प्रयास किया जाता था। अब उस आग को जलने दिया जाता है जो निचले स्तर पर रहती है और सूखी पत्तियों को जला देती है। इससे भविष्य में बड़ी आग लगने की संभावना कम हो जाती है। अमेरिकी फॉरेस्ट सर्विस अब आग के साथ आत्मसात करने लगी है।1आग से पर्यावरण का नुकसान जरूरी नहीं है। कई वनस्पतियां आग से लाभान्वित होती हैं जैसे गन्ना और घास। दूसरी वनस्पतियों को हानि होती है जैसे गेहूं को। आग को लगने देने से घास को लाभ और गेहूं को नुकसान होता है। आग को बुझा देने से गेहूं को लाभ और घास को नुकसान होता है। विषय आग पसंद करने वाली एवं आग को नापसंद करने वाली प्रजातियों के बीच चयन करने का है, न कि पर्यावरण के नुकसान का। हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय के डॉॅ. एसपी सती बताते हैं कि ब्रिटिश समय में उत्तराखंड के जंगलों में नियंत्रित आग लगाई जाती थी। चिह्न्ति क्षेत्र के चारों तरफ फायर लाइन बना दी जाती थी। 10-20 फुट की चौड़ाई में घास को जला दिया जाता था अथवा हटा दिया जाता था। इसके बाद जंगल में आग लगा दी जाती थी। इससे पत्ते जल जाते थे और बड़ी आग से बचत भी हो जाती थी। संभव है कि इस प्रकार की नियंत्रित आग को न लगाने के कारण इस वर्ष आग भीषण हो गई हो। मेरे गांव की महिलाएं इस वस्तु स्थिति को समझती हैं इसलिए हर वर्ष जंगल में आग लगाती हैं।1वर्तमान संकट को हम दूसरी तरह से भी बढ़ावा दे रहे हैं। कई क्षेत्रों में मिश्रित प्रजातियों के जंगलों को काट कर चीड़ के जंगल लगाए गए हैं। चीड़ की पत्तियां सूई जैसी पतली होती हैं। वे शीघ्र सूख जाती हैं और अत्यंत ज्वलनशील होती हैं। उनके जलने से चीड़ के पेड़ स्वयं प्रभावित नहीं होते हैं, लेकिन यह आग फैलती है और बगल के मिश्रित जंगलों को जलाकर राख बना देती है। इसके बाद चीड़ के बीज वहां उड़ कर पहुंचते हैं और उस भूमि पर अपना कब्जा जमा लेते हैं। जैसे कंप्यूटर वायरस फैलता है वैसे ही आग के माध्यम से चीड़ फैल रहा है और जंगल जल रहे हैं। 1पहाड़ों में विस्फोटकों का उपयोग भारी मात्र में हो रहा है। सड़क, रेल लाइन तथा हाइड्रोपावर परियोजनाओं को बनाने के लिए इनका उपयोग किया जा रहा है। विस्फोट से पहाड़ के अंदर के जलाशयों में दरारें पड़ जाती हैं और पानी भरभरा कर निकल जाता है। जल स्रोत सूख जाते हैं। मिट्टी में नमी कम हो जाती है। इससे आग जल्दी लगती है। कुछ का कहना है कि आग टिम्बर माफियाओं द्वारा लगाई जा रही है। यह सही नहीं है। मेरी जानकारी में जंगल से छिटपुट चोरी अवश्य हो रही है, परंतु बड़े स्तर पर नहीं। यदि चोरी हो भी रही हो तो उसे सैटेलाइट की तस्वीरों से पकड़ा जा सकता है। जंगल विभाग के पास हजारों करोड़ रुपये क्षतिपूरक वृक्षारोपण आदि के लिए आ रहे हैं। इस रकम का अधिकतर रिसाव हो रहा है। विभाग का पेट भरा हुआ है। लकड़ी की चोरी कराकर वे अनायास जोखिम मोल नहीं लेना चाहेंगे। आग के लिए दो साल के सूखे को दोषी ठहराया जा रहा है। तकनीकी दृष्टि से यह सही है, परंतु यह विशेष परिस्थिति नहीं है। ऐसे सूखे पहले भी पड़ते रहे हैं, लेकिन तब जंगल इस तरह से नहीं जले। जमीन में पर्याप्त नमी हो तो जंगल सूखे को ङोल लेते हैं। ग्लोबल वार्मिग का प्रभाव अवश्य है, लेकिन उसके पीछे सिर छिपाने से काम नहीं चलेगा। जैसे बाढ़ को दोष देने से लाभ नहीं होता है। आने वाले समय में तापमान और बढ़ेगा। हमें मानकर चलना चाहिए कि आगे भीषण आग ज्यादा लगेगी। 1इसे रोकने के प्रयास करने चाहिए। जरूरत है, उन नीतियों को लागू करने की जिनसे ग्लोबल वार्मिग के प्रभाव को हम ङोल सकें। आगे का रास्ता इस प्रकार है। एक, नियंत्रित आग की नीति का अपनी परिस्थितियों में लाभ-हानि का सही आकलन करना चाहिए। अमेरिका की तुलना में हमारी परिस्थितियां भिन्न हैं। अपने यहां वर्षा चौमासे में अधिक होती है। जंगलों के बीच गांव भी बसे हैं। अपनी परिस्थितियों के अनुकूल नीति बनानी चाहिए। स्थानीय लोगों की घास की जरूरत को देखते हुए इस नीति को लागू करना चाहिए। दो, जंगल में आग लगने के बाद उसे बुझाना कठिन होता है। गर्मी के पहले जंगलों में फायर लाइन का जाल बिछाना चाहिए जिससे आग को फैलने से रोका जा सके। जानकार बताते हैं कि फायर लाइन बनाना कठिन और महंगा कार्य है। न सरकार की इसमें रुचि है न वन विभाग की। सरकार को आकलन करना चाहिए कि फायर लाइन बनाने में कितना खर्च होगा और जंगल के बचने से कितना लाभ होगा। तीन, चीड़ के जंगलों को काटकर मिश्रित जंगल लगाने चाहिए। चार, विस्फोटकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। सब्बल से सड़क बनानी चाहिए जैसा कि पूर्व में होता रहा है।1(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं और आइआइएम बेंगलूर में प्रोफेसर रह चुके हैं)(Dainik jagran)

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