Thursday 12 May 2016

नवोत्थान की ओर भारतीय अर्थव्यवस्था (शिवानन्द द्विवेदी)

भाजपा-नीत मोदी सरकार के दो साल पूरे होने वाले हैं। पिछली संप्रग सरकार के कार्यकाल में देश में एक निराशा का माहौल बन गया था, जिससे निजात दिलाने का भरोसा लोगों को नरेंद्र मोदी में दिखा। उसी भरोसे का परिणाम था कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब रही। अब जब मोदी सरकार के दो साल पूरे हो चुके हैं तो इस सरकार के दो वर्षो के कामकाज का मूल्यांकन होना स्वाभाविक है। तमाम चुनौतियों के बावजूद सरकार अपने वायदों को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है। खुदरा एवं थोक महंगाई दर में हुई कमी से अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ होने के संकेत मिलने लगे हैं।
हालांकि वर्तमान स्थिति का अलग-अलग स्तरों पर अगर समग्र रूप से मूल्यांकन करें तो सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट्स के मुताबिक खुदरा एवं थोक महंगाई दर में कमी हुई है। औद्योगिक विकास दर बढ़ा है एवं भारत में विदेशी निवेश की संभावना भी पहले की तुलना में बहुत अधिक हुई है। इस बार अछे मानसून के आसार भी दिख रहे हैं। हालिया रिपोर्ट्स को अगर आधार बनाकर भविष्य का आकलन करें तो कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था में और सुधार होने के स्पष्ट संकेत मिलते दिख रहे हैं। मार्च महीने खुदरा महंगाई दर छह महीने के न्यूनतम स्तर तक घटकर 4.83 फीसद हो गयी थी। फरवरी में यह आंकड़ा 5.18 फीसद पर था। हालांकि थोक महंगाई दर तो नियमित रूप से गिरावट की ओर है। चूंकि अगस्त 2014 में थोक महंगाई दर 3.84 फीसद थी जो कि सितम्बर 2014 से अब तक शून्य से नीचे पहुंच चुकी है। थोक महंगाई दर को लेकर पिछले दिनों रायटर्स के सर्वे में यह अनुमान जताया गया था कि यह गिरावट .77 फीसद तक रहेगा लेकिन इसमें गिरावट का स्तर अनुमान से भी यादा 0.84 तक पहुंच गया। लेकिन खुदरा महंगाई दर में गिरावट को स्थिर करना सरकार के लिए अभी भी चुनौती है। महंगाई के संदर्भ एक गौर करने वाली बात यह है कि थोक महंगाई दर में हो रही नियमित कमी इस बात का प्रमाण है कि सरकार अपने स्तर पर तो महंगाई को कम करने को लेकर पूरी तरह से प्रतिबद्ध है लेकिन खुदरा बाजार के मामले में अभी भी सरकार को व्यापक स्तर पर काम करने की जरूरत है। निचले स्तर पर महंगाई के कई कारण होते हैं, उनमें से कुछ मुख्य कारण कालाबाजारी एवं रायों सहित लोकल बाजारों के बीच सामंजस्य की कमी आदि हैं। इस स्थिति से निपटने में केंद्र सरकार गंभीरता से जुटी है। परिणास्वरूप अब खुदरा स्तर पर भी महंगाई दर में कमी व स्थिरता आ रही है। हालांकि इस स्थिरता को कायम रखने के लिए कालाबाजारी पर रोक लगाने की जरूरत है। वैसे तो पीएम मोदी ने शुरूआत से ही संबंधित मंत्रलयों के साथ बैठक करके कालाबाजारी को रोकने की दिशा में गंभीर कदम उठाने का निर्देश दिया है। खुदरा महंगाई दर और थोक महंगाई दर के बीच कम हो रहा अंतर, इस सरकार के कार्यो के लिहाज से एक अछा संकेत है।
अर्थव्यवस्था के लिहाज केंद्र सरकार की एक बड़ी उपलब्धि औद्योगिक विकास दर में हुई 2 फीसद की वृद्धि है। लिहाजा आगामी वित्त वर्ष में भारत का विकास दर 7.7 फीसद रहने का अनुमान जताया जा रहा है, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ोतरी की तरफ है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच की रिपोर्ट के अनुसार भारत का विकास दर वर्ष 2016-17 में 7.7 फीसदी रहने की उम्मीद है जो कि 2017-18 में 7.9 फीसदी तक पहुंच सकता है। सरकार द्वारा सातवें वेतन आयोग को लागू किये जाने के बाद सरकारी सेवा के लोगों की खर्च सीमा में बढ़ोतरी होगी। इसका विकास दर पर सकारात्मक असर होगा। सरकार को इस वर्ष मानसून से बहुत उम्मीदें हैं। चूंकि मानसून अगर अछा रहा तो रिजर्व बैक द्वारा नीति दरों में और कटौती की संभावना प्रबल है। गौरतलब है कि पिछले दो वर्षो में भारत के लिहाज से मानसून की स्थिति बहुत अछी नहीं रही। बावजूद इसके रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में लगातार कटौती की गयी है। अभी हाल ही में रिजर्व बैंक द्वारा .25 फीसद की कटौती के बाद ब्याज दर 6.5 फीसद तक पहुंच गया है। ज्ञात हो कि पिछले जनवरी 2015 के बाद से अबतक ब्याज दरों में कुल 1.5 फीसद की कटौती इस बात का संकेत है कि रिजर्व बैंक निवेश आदि की संभावना को लेकर उदारवादी एवं साहसी दृष्टिकोण अपनाए हुए है। वर्तमान में यह ब्याज दर पिछले पांच वर्षो के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। चूंकि ब्याज दरों में गिरावट से आवास, वाहन एवं अन्य क्षेत्रों में लोगों का निवेश बढ़ेगा जो विकास की रफ्तार को तेज करने में सहायक होगा। यहां पर रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम की यह बात गौर करने लायक है जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘वृहत आर्थिक हालातों को संहालने की दिशा में भारत ने सही कदम उठाये हैं। जबकि कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं समेत अन्य अर्थव्यवस्थाएं चुनौतिपूर्ण वैश्विक हालात के बीच मुश्किल में हैं।’ ऐसे में भारत ने अपना घाटा कम किया है ताकि वह उतार-चढ़ाव भरे वैश्विक हालात में अपने अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए अपेक्षाकृत अधिक लचीलेपन के साथ काम कर सके।
अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर मोदी सरकार ने व्यापक स्तर पर काम किया है, जिसका असर कुछ साल बाद दिखेगा। दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था पर केंद्रित अपनी अपनी छमाही रिपोर्ट ‘साउथ एशिया इकोनामिक फोकस’ के हालिया संस्करण में विश्व बैंक की तरफ से यह विश्वास जताया गया है कि भारत की आर्थिक मजबूती वाले नेतृत्व में दक्षिण एशिया विश्व में सबसे तेजी से विकास करने वाला भू-क्षेत्र बनने की ओर अग्रसर है। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि इस क्षेत्र में अपनी अर्थव्यवस्था के आकार की बुनियाद पर भारत दक्षिण एशिया के अर्थव्यवस्था का बुनियाद तय की स्थिति में खड़ा हो रहा है। दरअसल ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि बेहतर मानसून का सीधा असर कृषि विकास दर पर पड़ेगा जिससे हमारे सकल घरेलू उत्पाद की स्थिति में मजबूती आएगी। कृषि विकास दर के लक्ष्यों को पाने के लिए सरकार के स्तर पर तमाम प्रयास किये जा रहे हैं। तमाम योजनाओं जैसे, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सिचाई योजना के माध्यम से परंपरागत कृषि विकास योजना, फसल बीमा योजना आदि हैं। ऐसे में मानसून का साथ अगर सरकार को मिल गया तो अर्थव्यवस्था को पटरी पर दौड़ने में वक्त नहीं लगेगा। हालांकि प्रतिकूल परिस्थितियों की वजह से कृषि की स्थिति अभी बहुत बेहतर नहीं हो पाई है। लेकिन जिस स्तर पर सरकार नीतिगत रूप से प्रयास कर रही है, उससे जल्द ही बेहतर स्थिति को प्राप्त कर लिया जाएगा।
हालांकि इन सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सरकार के प्रयासों में उपलब्धियों को लेकर विपक्ष का रुख कभी भी सकारात्मक क्यों नहीं रहता है। कई बार तो बेहद हास्यास्पद स्थिति तब हो जाती है जब कांग्रेस के लोग सरकार की नीतियों की यह कहकर आलोचना करते हैं कि अमुक नीति बिलकुल जनहित में नहीं है और फिर तुरंत यह भी कह देते हैं कि सरकार कांग्रेस की नीतियों को ही लागू कर रही है। इससे स्पष्ट होता है कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर पुख्ता आलोचना कर पाने वाला मुद्दा अभी तक विपक्ष के हाथ लगा नहीं है या यूं कहें तो मिला नहीं है। लेकिन आगामी छह महीना बेहद अहम् रहने वाला है। अगर इन छह महीनो में सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को संतुलित करके खुदरा महंगाई दर के स्तर को कम करने में सफलता हासिल की गयी तो आलोचना के मोर्चे पर विपक्ष की स्थिति और निरीह हो जायेगी।
फिलहाल सरकार को सबसे यादा ध्यान उन उपायों पर देने की जरूरत है जिनसे विकास दर के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके और खुदरा महंगाई दर में कमी करते हुए उसे स्थिर किया जा सके। अभी तक के आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि अछे दिनों की आहट सुनाई देने लगी है। सही तस्वीर के लिए कुछ समय और इंतजार करना पड़ेगा।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च फेलो हैं)

No comments:

Post a Comment