Thursday 12 May 2016

सूखे के कारण बिगड़ते हालात (रवि शंकर)

देश के कई राज्य भर में भीषण सूखे की स्थिति को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्वराज अभियान की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने केंद्र पर सवाल उठाए और कहा कि राज्यों में सूखे के हालात हैं। ऐसे में लोगों की दिक्कतों पर सरकार आंखें मूंदे नहीं रह सकती। इतना ही नहीं सरकार की उदासीनता को देखते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इस समस्या की अनदेखी नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि इसके लिए जरूरी कदम उठाए जाने की जरूरत है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी मराठवाड़ा और बुंदेलखंड के हालात पर चिंता जाहिर की। गौरतलब है कि देश के 9राज्य भीषण सूखे की समस्या से जूझ रहे हैं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, ओडिशा और पश्चिम बंगाल को सूखाग्रस्त घोषित किया गया। सबसे खराब हालत मराठवाड़ा की है। महाराष्ट्र इस समय 40 साल के सबसे बड़े सूखे से जूझ रहा है। मराठवाड़ा के 11 में से सात बांध सूखे हैं। लगातार दो सूखे के कारण महाराष्ट्र सरकार ने 2016-17 का आधा बजट कृषि को देने का फैसला लिया है। अगर पूरे महाराष्ट्र की बात करें तो उसकी जरूरत का सिर्फ 24 फीसद पानी ही बचा है। महाराष्ट्र के 16 जिलों में भयंकर सूखा पड़ा हुआ है। महाराष्ट्र के 43,000 गांवों में से 15,000 सूखाग्रस्त हैं। बहरहाल, कई रायों में सूखे से हालात इतने बदतर हो गए हैं कि लोग पीने के पानी तक को तरस गए हैं और अब पलायन करने को मजबूर हैं।
सूखे की गंभीर स्थिति का सामना कर रहे महाराष्ट्र तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों में पानी को लेकर खून-खराबे की नौबत तक आ गई। परभणि और लातूर में पानी को लेकर हुए हिंसक घटना को देखते हुए धारा 144 तक लगानी पड़ी है। सूखा और पानी की कमी ने पलायन को भी बढ़ावा दिया है। मराठवाड़ा और विदर्भ से लाखों लोग पलायन कर चुके हैं। महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाकों में लोग पानी की कमी की वजह से एक से ज्यादा शादियां कर रहे हैं। जब एक पत्नी, बचे और घर संभालती है तो दूसरी पत्नी सिर्फ पानी लाने का काम करती है, क्योंकि महिलाओं को अपने घरों से कई किलोमीटर तक पैदल जाकर पानी लाना पड़ता है। लेकिन देश के अंदर विडंबना देखिए कि एक तरफ देश के कई राज्य पानी की समस्या से जूझ रहे हैं तो वहीं मुम्बई में आइपीएल मैच के आयोजन को लेकर मैदान पर लाखों टन लीटर पानी की बर्बादी की गई। मुंबई हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को आइपीएल मैचों के आयोजन के लिए आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि मैच वहां कराइए जहां पानी ज्यादा है। हालांकि बाद में कोर्ट ने अपनी हामी भर दी। सबसे बड़ा सवाल यह है कि सूखा बड़ा या आइपीएल? लोगों को पीने के लिए, मवेशियों को खिलाने-पिलाने के लिए, खेतों को सींचने के लिए और बिजली घरों को चलाने के लिए पानी दिया जाना ज्यादा जरूरी है या आइपीएल के मैचों के लिए स्टेडियमों को तैयार करने के लिए पानी देना ज्यादा जरूरी है? दरअसल आइपीएल इंडिया में होता है जबकि सूखा भारत में पड़ा है। इंडिया बड़े-बड़े स्मार्ट शहरों का देश बनने जा रहा है, जबकि भारत तो छोटे-छोटे गांवों का देश है। एक विकास के इस छोर पर है, दूसरा दूर, बहुत दूर उस छोर पर। इसलिए देश का चालीस प्रतिशत भू-भाग, दस राज्य और ढाई सौ से यादा जिले अगर सूखे की भयंकर चपेट में हैं और देश में इस पर कहीं कोई चिंता नहीं, तो हैरानी क्या? अगर मौजूदा जल संकट की बात करें तो देश के 91 बड़े जलाशयों में कुल क्षमता का सिर्फ 29 फीसद पानी है। देश में करीब 50 फीसद ग्राउंडवाटर प्रदूषित है। देश के 91 बड़े जलाशयों में पानी 10 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है।
आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में जल संकट की आशंका है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमालय के ग्लेशियर 2035 तक 80 फीसद तक पिघल सकते हैं। बता दें कि देश में पानी की आपूर्ति का करीब 55 फीसद ग्राउंडवाटर पर निर्भर है। दुनिया भर में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 6000 क्यूबिक मीटर है। वहीं देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,123 क्यूबिक मीटर है। पिछले 50 सालों में देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 63 फीसद घटी है। गौरतलब है कि 50 साल पहले देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 3000 क्यूबिक मीटर थी।
विश्व स्वस्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को गंदे पानी की वजह से हर साल जीडीपी का 2.4 फीसद नुकसान होता है। बहरहाल, सूखे की अभी तक जो तस्वीर है उससे साफ है कि इसका असर खेती-किसानी पर बुरी तरह पड़ेगा। साथ ही मौजूदा परिस्थितियां डराने वाली हैं। दअरसल, जिस तरह से फसलों की बुआई में देरी व तौर-तरीकों में बदलाव हो रहे हैं और मानसून की बारिश में कमी हो रही है, उससे इस साल फिर देश में सूखे की आशंका को बल मिल रहा है। वास्तव में देश के किसानों के लिए इस गर्मी के मौसम की बारिश बड़ी अहमियत रखती है, क्योंकि देश के केवल 40 फीसद कृषि क्षेत्र के बारे में यह कहा जा सकता है कि वहां सिंचाई की सुविधाएं हैं।
हमारे देश का 60 फीसद इलाका और खेती-किसानी का काम पूरी तरह मानसून पर निर्भर होता है और ऐसे में अगर बारिश सामान्य से कम हुई, तो मुश्किल होनी स्वाभाविक है। इस तरह कहा जा सकता है कि अभी भी भारतीय कृषि बहुत हद तक मानसून पर निर्भर है। जाहिर है जिस तरह से सिंचाई भगवान भरोसे हैं और ग्लोबल वार्मिग से बारिश का चक्र बदल रहा है उसका सीधा असर कृषि पर पड़ रहा है। बेशक दिन-प्रतिदिन हमारी जरूरतें बढ़ रही हैं। 2050 में 1.6 से 1.7 अरब भारतीयों का पेट भरने के लिए हमें 45 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी यानी मौजूद उपलब्धता का दोगुना। ऐसे में बिना सिंचित क्षेत्र में वृद्धि के सिर्फ मानसून भरोसे इसे हासिल करना असंभव है।
आज भी देश की 60 फीसद आबादी कृषि पर निर्भर है, जीडीपी का लगभग 13.6 प्रतिशत अभी भी कृषि एवं सहायक गतिविधियों से प्राप्त होता है। इस तरह देश की अर्थव्यवस्था के लिए अभी भी कृषि का विशेष महत्व है और कृषि के लिए मानसून का। यह देश की विडंबना ही है कि आजादी के छह दशक बाद भी हम मानसून पर निर्भरता कम नहीं कर पाए हैं। पिछले 200 वर्षो में भारत में 44 से अधिक बार व्यापक सूखे का असर महसूस किया गया है। एक अंतरराष्ट्रीय आपदा डाटाबेस के अनुसार पिछली शताब्दी में भारत में प्राकृतिक रूप से आई 10 शीर्ष आपदाओं में पांच सूखा पर है जिनमें अब तक 42.5 लाख मौतें हो चुकी हैं। नई सरकार से लोगों ने हालात सुधारने की उम्मीद लगा रखी थी, लेकिन जमीन पर कोई बदलाव नहीं नजर आ रहा है। यहां विचारणीय है कि जब सूखा हमारे देश में एक स्थायी त्रसदी बन गई है तो क्या उसका स्थायी समाधान निकालना हमारी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में शुमार नहीं होना चाहिए। अफसोस की बात है कि इस दिशा में सरकारी प्रयास महज पानी की बूंद-बूंद कीमती है, जल ही जीवन है या जल है तो कल है जैसे नारे दीवारों पर लिखने या अखबारों में छपवाने तक सीमित रहे हैं। जबकि सूखे से निपटने के लिए जल संरक्षण के साथ जल प्रबंधन की भी समग्र रणनीति बनाकर उस पर सख्ती से अमल सुनिश्चित करने की जरूरत है। वर्षा जलसंचय, भूजल परिवर्धन, नदी-तालाब संरक्षण, वनीकरण से लेकर जलशोधन की नई तकनीकें इसमें सहायक हो सकती हैं।
यह हकीकत अत्यंत दुखद है कि हमारे देश में सूखे के संकट में भी निहित स्वार्थ अपनी तिजोरियां भरने में मशगूल हो जाते हैं। सूखा राहत में खयानत को रोकना इसके पीड़ितों के हित में पहली जरूरत है। यदि ऐसा नहीं होता है तो 2030 तक देश की 40 फीसद आबादी पानी के लिए तरसेगी। सरकार को चाहिए कि वह समय रहते इस समस्या पर ध्यान दे और भूजलसंकट का समाधान किस तरह हो सकता है इस बारे में कोई बड़ा निर्णय ले।
(लेखक सीईंएफएस में रिसर्च एसोसिएट हैं)(दैनिक जागरण )

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