Thursday 12 May 2016

नदी जोड़ो योजना की सुध लें (जीएन वाजपेयी )

लगातार दो साल सूखे के प्रकोप ने भारत के तीस फीसद भाग को अपनी चपेट में ले लिया है। सूखा समाज के एक बड़े हिस्से के संकट का कारण बन गया है। मीडिया, राजनीति और यहां तक कि न्यायपालिका-सब जगह राहत के लिए शोर मचा है। प्रशासन पर अपर्याप्त प्रयास करने, समस्या के प्रति उदासीन रवैया अपनाने और लापरवाही बरतने के लिए आरोप लगाए जा रहे हैं। स्थिति सचमुच गंभीर है। प्रभावितों को राहत पहुंचाने और उन्हें समस्या से उबारने के लिए केंद्र, राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों द्वारा तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। मानसून की अनियमितता कभी सूखे के रूप में तो कभी बाढ़ के रूप में हर साल देश के किसी न किसी भाग को प्रभावित करती ही है। देश के कुछ हिस्सों में लोगों को पीने के पानी के लिए मीलों तक की दूरी तय करनी पड़ती है। तिस पर भी उसकी स्वच्छता संदेह के घेरे में होती है। इस तरह दूषित पानी पीने से कई गंभीर बीमारियां जन्म लेती हैं। दुर्भाग्य यह है कि हम सूखे और बाढ़ की इस बारहमासी समस्या का सीमित इलाज करते आ रहे हैं। कभी हम पीड़ितों को कुछ राशि दे देते हैं तो कभी किसी तरह पीने का पानी पहुंचा देते हैं। इसके चलते सूखे के मूल कारणों की कभी चर्चा नहीं होती और समस्या के स्थायी निदान के लिए दीर्घकालिक निदान भी नहीं खोजे जाते।
दुनिया में जितना पानी उपलब्ध है उसका सिर्फ चार फीसद ही भारत के पास है। इतने में ही भारत पर अपनी आबादी जो दुनिया की आबादी का 18 फीसद है, की पानी संबंधी जरूरतों को पूरा करने का भार है, लेकिन यह भी ध्यान रहे कि करोड़ों क्यूबिक क्यूसेक पानी हर साल बहकर समुद्र में चला जाता है। ब्रrापुत्र और गंगा नदियों से बहकर जाने वाला पानी इसका उदाहरण है। इस समस्या के निदान के लिए नदियों को आपस में जोड़ने पर लंबे समय से बहस चल रही है। भारत में उत्तर और पूर्व में स्थित जिन नदियों में पानी भरपूर मात्र में उपलब्ध रहता है उसे दूसरे क्षेत्रों में (जहां पानी की कम उपलब्धता है) स्थित नदियों से जोड़ा जाना चाहिए। इससे अतिरिक्त पानी को सूखाग्रस्त इलाकों में पहुंचाया जा सकेगा। 
नदियों को जोड़ने का विचार सर्वप्रथम 150 वर्ष पूर्व 1919 में मद्रास प्रेसिडेंसी के मुख्य इंजीनियर सर आर्थर कॉटोन ने रखा था। कैप्टन दस्तूर ने इसकी रूपरेखा प्रस्तुत थी। बाद में तत्कालीन केंद्रीय ऊर्जा और सिंचाई राज्यमंत्री केएल राव ने 1960 में गंगा और कावेरी नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव पेश कर इस विचार को फिर से जीवित किया। 1982 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नेशनल व्ॉाटर डेवेलपमेंट एजेंसी का गठन किया। दुर्भाग्यवश यह विचार अकादमिक बहस में ही उलझकर रह गया। 31 अक्टूबर, 2002 को सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को इस योजना को शीघ्रता से पूरा करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा जताई थी कि सरकार इस योजना की रूपरेखा 2003 तक तैयार कर ले और 2016 तक इसको पूरा कर दे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 2003 में सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में एक टॉस्क फोर्स का गठन किया गया। इस पर 560000 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान लगाया गया था। सेबी के अध्यक्ष के तौर पर मैंने वित्तीय संस्थाओं और कुछ बड़े कॉरपोरेट समूहों के साथ टॅास्क फोर्स की बैठक का आयोजन किया था। इस योजना को लेकर प्रतिभागियों का उत्साह साफ झलक रहा था। मैंने भी प्रोटोकॉल तोड़ दिया था। सेबी एक नियामक संस्था है। इससे यह उम्मीद नहीं की जाती कि वित्तीय संस्थाओं के प्रमुखों को जुटाकर किसी प्रोजेक्ट के लिए वित्त का प्रबंध करे। सुरेश प्रभु उस शुरुआत से बेहद उत्साहित हुए थे, लेकिन वाजपेयी सरकार के बाद जो नई सरकार आई उसने इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। उम्मीद है कि अब मोदी सरकार इस पर गंभीरता से आगे बढ़ेगी।
जो लोग आजकल सूखे को लेकर चिंतित हैं, कलम चला रहे हैं, शासन-प्रशासन को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं और न्यायपालिका का दरवाजा खटखटा रहे हैं वे ही नदियों को जोड़ने संबंधी योजना का विरोध करते रहे हैं। वे पन्ना टाइगर रिजर्व पर प्रभाव पड़ने, वनों की क्षति और जैव विविधता के क्षरण जैसे मुद्दे उठाते हैं। भारत में सूखे और बाढ़ की समस्या से स्थायी निदान नदी जोड़ो योजना को जमीन पर सही तरीके से उतारने में निहित है। सीमित पैमाने पर ही सही, चीन और दक्षिण अफ्रीका आदि देशों ने सफलतापूर्वक ऐसे प्रोजेक्ट पूरे किए हैं। विभिन्न अध्ययनों में नदी जोड़ो योजना के दूसरे कई लाभों को जिक्र किया गया है। मसलन यदि यह योजना साकार होती है तो सिंचित रकबा वर्तमान के मुकाबले 15 फीसद बढ़ जाएगा। 35-40 गीगावाट जल ऊर्जा के रूप में सस्ती स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त होगी। 15000 किलोमीटर नहरों का विकास होगा। 10000 किलोमीटर नौवहन का विकास होगा, जिससे परिवहन लागत कम होगी। 3000 टूरिस्ट स्पॉट बनेंगे। बड़े पैमाने पर वनीकरण होगा। इससे पीने के पानी की समस्या दूर होगी, आर्थिक समृद्धि आएगी और लाखों परिवारों की आर्थिक बदहाली दूर होगी। यही नहीं जैसे ही यह योजना आरंभ होगी, आर्थिक विकास को एक नई दिशा मिल जाएगी, क्योंकि ग्रामीण जगत के भूमिहीन कृषि मजदूरों के लिए रोजगार के तमाम अवसर पैदा होंगे।1इन दिनों सुप्रीम कोर्ट सूखे पर एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रहा है। उसे नदी जोड़ो योजना पर अतीत में दिए गए अपने आदेश को भी इसका हिस्सा बनाना चाहिए। यह आवश्यक है कि इस योजना से जुड़े सभी विवादों को निपटारे के लिए एक केंद्र स्थापित किया जाए और नब्बे दिनों के अंदर उनका निपटारा किया जाना सुनिश्चित किया जाए ताकि विरोधी इस योजना की राह में बाधक न बनें। सूखे से राहत के लिए कुछ मध्यकालिक उपाय भी किए जाने चाहिए। जल संचयन के लिए कुएं, तालाबों, जलाशयों आदि का सतत रूप से निर्माण किया जाना चाहिए। मनरेगा के जरिये नहरों से गाद निकालने का काम युद्ध स्तर पर किया जाना चाहिए। इस काम को मानसून के पहले पूरा किया जाए। नहर प्रणाली को पुनर्जीवित करने से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल को मदद मिली है। ऐसा ही देश के बाकी राज्यों में किया जाना चाहिए। इससे नदियों को जोड़ने की दीर्घकालिक योजना को और मजबूती मिलेगी। परिस्थितिविज्ञानी, कार्यकर्ता, राजनेता और कानून निर्माताओं को इस योजना का समर्थन करना चाहिए। बुद्धिजीवियों को जनसमर्थन जुटाने और अडंगेबाजों को योजना में बाधक बनने से रोकने में मददगार होना चाहिए।1(लेखक सेबी और एलआइसी के पूर्व अध्यक्ष हैं)dainik jagran

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