Thursday 12 May 2016

अमेरिका की बड़ी भूल होगी सऊदी अरब पर मुकदमा © The New York Times

अमेरिकाकी राजनीति में राष्ट्रपति चुनाव की इन दिनों चर्चाएं जरूर हैं, लेकिन उससे कहीं ज्यादा गंभीर विचार-विमर्श ओबामा प्रशासन को करना पड़ रहा है। यह मसला है सऊदी अरब के खिलाफ अमेरिकी कोर्ट में मुकदमा। यह ऐसा मामला है, जिसमें अमेरिका को कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। ऐसा होगा भी क्योंकि सऊदी अरब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बिगड़ती नहीं देख सकेगा।
अमेरिकी संसद के निचले सदन 'कांग्रेस' में ऐसा बिल लाने की तैयारी है, जिसमें सऊदी अरब को 9/11 हमले में आतंकवादियों की मदद करने के लिए संदेह भरी नजरों से देखा जा रहा है। उसमें स्पष्ट उल्लेख है कि सऊदी अरब ने अपने चैनल के जरिये अमेरिका में मौजूद आतंकवादियों को केवल प्रशिक्षण में मदद दिलाई, बल्कि उन्हें वित्तीय सहायता भी पहुंचाई। यही बड़ा कारण है कि हमले के 15 साल बाद भी 9/11 हमले के कारण, उसके जिम्मेदार और मददगारों पर कार्रवाई की प्रक्रिया चल रही हैं।
कांग्रेस में यह बिल इसलिए लाया जा सकता है, क्योंकि जांच में यह जानकारी सामने आई है कि हमलावरों को सऊदी अरब से मदद मिली थी। इसे अमेरिका में 9/11 हमले के पीड़ितों और उनके परिवारों को न्याय के तौर पर देखा जा रहा है। ऐसे में अगर बिल पारित करके सऊदी अरब के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा चलाया जाता है, तो दोनों देशों के राजनयिक और आर्थिक संबंधों को बड़ा नुकसान होगा। यह किस स्तर का होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है, लेकिन स्पष्ट है कि यह दरार गहरी होगी। यहां स्पष्ट करना होगा कि सऊदी अरब अमेरिका का अच्छा सहयोगी माना जाता है। आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में भी उसने बतौर सहयोगी अच्छी भूमिका निभाई है। इसके अतिरिक्त दोनों देशों के बीच कारोबार का स्तर भी अच्छा है।
एक संप्रभु देश के द्वारा किसी अन्य संप्रभु देश को कटघरे में लाने की कार्रवाई करना एक तरह से अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के खिलाफ है। इससे अमेरिका को विदेशों से मिलने वाली मदद की प्रभावशीलता और आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी लड़ाई की वैधता पर भी असर होगा। किसी देश को अन्य देश की अदालत में मुकदमे से छूट अंतरराष्ट्रीय कानून का मौलिक सिद्धांत भी है। कई देशों में इसे विशिष्ट संदंर्भों के आधार पर विस्तार से रखा गया है, खासतौर पर तब जब दोनों देश व्यावसायिक गतिविधियां हों। इस सिद्धांत का सबसे ज्यादा लाभ खासतौर पर अमेरिका को मिलता है। विश्व में अमेरिकी ही ऐसा देश है, जिसकी डिप्लोमेटिक, आर्थिक और सैन्य गतिविधियां विदेशों में अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा होती हैं। अगर देशों को मुकदमे से छूट के सिद्धांत का हनन होता है, तो अन्य देशों की तुलना में अमेरिका के खिलाफ मुकदमे ज्यादा कायम होंगे। विदेश नीति के कारण भी अमेरिका सबसे आकर्षक और हाई-प्रोफाइल टारगेट बन जाएगा। इस कारण अमेरिका लंबे समय से किसी अन्य देश के द्वारा अंतरराष्ट्रीय कानून की झंझटों से बचा हुआ है। कांग्रेस भी इन पहलुओं पर विचार कर रही है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि उदाहरण के तौर पर सीरिया में अमेरिका ने उन विद्रोहियों का सहयोग किया, जिन्होंने असद सरकार कीसेना से संघर्ष करने के दौरान आम लोगों की भी जान ली। इसके परिणामस्वरूप अमेरिका पर आतंकवाद को बढ़ावा देने और मदद करने का मुकदमा चल सकता है। यही नहीं, अमेरिकी सेना अल कायदा, उसके सहयोगियों और इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों पर हमले करती है, जिस पर दूसरे देशों में काफी विवाद हैं। कई लोग मानते हैं कि अमेरिकी सेना की यह कार्रवाई भी आतंकवाद जैसी है। उसे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के उल्लंघन का जिम्मेदार भी ठहराया जाता है।
हालांकि कांग्रेस के पास जवाबदेही तय करने के लिए कई विकल्प हैं। वह 9/11 हमले के पीड़ितों परिवारों को प्रत्यक्ष रूप से मुआवजे की घोषणा कर सकती है। यहां विशेषतौर पर ऐसे विकल्प अपनाने होंगे, जिनसे अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचे और अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन भी हो।(Dainik Jagran)

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