अमेरिका और रूस ने प्रस्ताव रखा है कि वे सीरिया में हवाई मार्ग से खाने की सामग्री आपात सहायता से जुड़ी चीजें पहुंचा सकते हैं। ऐसा तब होगा, जब सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद ट्रकों से इनकी आपूर्ति करने की इजाजत नहीं देंगे। हवाई मार्ग से चीजें पहुंचाना जोखिम भरा और अनुचित कदम है क्योंकि, इसकी लागत ज्यादा होती है, सही जगह चीजें पहुंचाने में दिक्कत होती है, इसमें मदद पाने वाली की जान जा सकती है या वे घायल भी हो सकते हैं।
जमीनी तौर पर देखें तो दोनों देशों ने गृहयुद्ध से जूझ रहे सीरिया में मानवीय सहायता के नाम पर एक-दूसरे का सहयोग करने का विश्वास हासिल किया है। एक बार फिर यहां रूसी राष्ट्रपति का दोहरा चरित्र नजर आता है। सीरिया में भी और दूसरी जगहों पर भी। सीरिया में असद सत्ता में बने हुए हैं तो रूसी राष्ट्रपति की सैन्य सहायता की बदौलत। पुतिन के मामले में यह विश्वास करना कठिन है। अगर पुतिन चाहेंगे, तो असद क्यों जमीनी सहायता के लिए तैयार नहीं होंगे। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी लगातार इन कोशिशों में जुटे हैं कि कैसे भी करके सीरिया में गृहयुद्ध खत्म हो जाए, जहां अब तक 4 लाख 70 हजार लोग मारे जा चुके हैं। इसके विपरीत पुतिन सीरियाई शासक असद को नागरिकों पर बम गिराने से रोकने में अक्षम दिखाई दे रहे हैं। खबरों के अनुसार यह भी सच है कि रूसी सेना भी सीरिया में बम गिरा रही है। पुतिन के लिए सीरिया मात्र रणभूमि है, जहां वे अस्थिरता बढ़ाकर रूस को पुन: शक्तिशाली दिखाना चाहते हैं। उनकी कथनी और करनी में अंतर देखने के लिए हाल की बड़ी घटना समझ लेनी जरूरी है। वर्ष 2014 में उन्होंने यूक्रेन पर कब्जा करने के लिए वहां टैंकों से गोलीबारी की। लगभग युद्ध जैसे हालात वहां पैदा हो गए थे। आखिरकार क्रीमिया को उन्होंने अपने पूर्ण कब्जे में कर लिया। फिर भी संघर्ष जारी रहा तो मिन्स्क में समझौता किया, जिसमें लड़ाई बंद करने की बात शामिल थी। उसके बाद से ही यूक्रेन और रूस समर्थक अलगाववादी समूहों के बीच हिंसा चरम पर पहुंच गई। वर्ष 2015 के बाद से यह अपने उच्च स्तर पर है।
रूस का आक्रामक और खतरनाक व्यवहार जितना हवाई मार्ग में है, उतना ही समुद्र में भी है। 29 अप्रैल को बाल्टिक सागर के ऊपर उड़ान भर रहे अमेरिकी लड़ाकू विमान से 100 फीट ऊपर रूसी लड़ाकू विमान गया था। उसकी इस कार्रवाई को आपत्तिजनक माना गया था। इसके दो सप्ताह पहले बाल्टिक में ही अमेरिकी युद्धपोत के ऊपर से दो रूसी विमानों ने 11 बार उड़ान भरी थी। इस तरह की चुनौतियां अमेरिका को प्रत्यक्ष रूप से देखनी पड़ रही हैं। अमेरिकी सेना वहां प्रशिक्षण के लिए गई थी, लेकिन ऐसे वक्त में सीधे दूसरे विमानों के आने से तुरंत खतरा पैदा हो जाता है और फिर किसी के लिए संयम रखना संभव नहीं हो पाता है।
रूस के संबंध में पूर्वी यूरोप के नाटो देशों में चिंता का माहौल बनने के बाद तय किया गया है कि 1000 सैनिकों वाली चार कॉम्बेट बटालियन पोलैंड, लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया में तैनात की जाए। इसमें दो बटालियन अमेरिका, एक जर्मन और एक ब्रिटिश हो सकती है। पिछले सप्ताह रोमानिया में एक बेस तैयार किया गया और पोलैंड में बेस बनाने की शुरुआत की गई। पुतिन लंबे समय से नाटो का गलत मतलब निकालते आए हैं, जबकि शीतयुद्ध के बाद से ही उसने खतरे के तौर पर अपनी सैन्य क्षमताओं में कमी की है। नाटो के 28 सदस्य अब जुलाई में पोलैंड की राजधानी वारसा में मुलाकात करेंगे, यह अच्छा समय है चीजों को सुलझाने का। हो सकता है कि यूक्रेन पर आक्रमण के चलते रूस पर जो प्रतिबंध लगाए गए थे, वे हटा लिए जाएं। नाटो सदस्य ऐसा रास्ता भी खोज सकते हैं, जिससे रूस के साथ वार्ता शुरू हो सके। यहां पुतिन को देखना होगा कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि सुधारने के लिए क्या कदम उठाते हैं। (दैनिक भास्कर )
जमीनी तौर पर देखें तो दोनों देशों ने गृहयुद्ध से जूझ रहे सीरिया में मानवीय सहायता के नाम पर एक-दूसरे का सहयोग करने का विश्वास हासिल किया है। एक बार फिर यहां रूसी राष्ट्रपति का दोहरा चरित्र नजर आता है। सीरिया में भी और दूसरी जगहों पर भी। सीरिया में असद सत्ता में बने हुए हैं तो रूसी राष्ट्रपति की सैन्य सहायता की बदौलत। पुतिन के मामले में यह विश्वास करना कठिन है। अगर पुतिन चाहेंगे, तो असद क्यों जमीनी सहायता के लिए तैयार नहीं होंगे। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी लगातार इन कोशिशों में जुटे हैं कि कैसे भी करके सीरिया में गृहयुद्ध खत्म हो जाए, जहां अब तक 4 लाख 70 हजार लोग मारे जा चुके हैं। इसके विपरीत पुतिन सीरियाई शासक असद को नागरिकों पर बम गिराने से रोकने में अक्षम दिखाई दे रहे हैं। खबरों के अनुसार यह भी सच है कि रूसी सेना भी सीरिया में बम गिरा रही है। पुतिन के लिए सीरिया मात्र रणभूमि है, जहां वे अस्थिरता बढ़ाकर रूस को पुन: शक्तिशाली दिखाना चाहते हैं। उनकी कथनी और करनी में अंतर देखने के लिए हाल की बड़ी घटना समझ लेनी जरूरी है। वर्ष 2014 में उन्होंने यूक्रेन पर कब्जा करने के लिए वहां टैंकों से गोलीबारी की। लगभग युद्ध जैसे हालात वहां पैदा हो गए थे। आखिरकार क्रीमिया को उन्होंने अपने पूर्ण कब्जे में कर लिया। फिर भी संघर्ष जारी रहा तो मिन्स्क में समझौता किया, जिसमें लड़ाई बंद करने की बात शामिल थी। उसके बाद से ही यूक्रेन और रूस समर्थक अलगाववादी समूहों के बीच हिंसा चरम पर पहुंच गई। वर्ष 2015 के बाद से यह अपने उच्च स्तर पर है।
रूस का आक्रामक और खतरनाक व्यवहार जितना हवाई मार्ग में है, उतना ही समुद्र में भी है। 29 अप्रैल को बाल्टिक सागर के ऊपर उड़ान भर रहे अमेरिकी लड़ाकू विमान से 100 फीट ऊपर रूसी लड़ाकू विमान गया था। उसकी इस कार्रवाई को आपत्तिजनक माना गया था। इसके दो सप्ताह पहले बाल्टिक में ही अमेरिकी युद्धपोत के ऊपर से दो रूसी विमानों ने 11 बार उड़ान भरी थी। इस तरह की चुनौतियां अमेरिका को प्रत्यक्ष रूप से देखनी पड़ रही हैं। अमेरिकी सेना वहां प्रशिक्षण के लिए गई थी, लेकिन ऐसे वक्त में सीधे दूसरे विमानों के आने से तुरंत खतरा पैदा हो जाता है और फिर किसी के लिए संयम रखना संभव नहीं हो पाता है।
रूस के संबंध में पूर्वी यूरोप के नाटो देशों में चिंता का माहौल बनने के बाद तय किया गया है कि 1000 सैनिकों वाली चार कॉम्बेट बटालियन पोलैंड, लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया में तैनात की जाए। इसमें दो बटालियन अमेरिका, एक जर्मन और एक ब्रिटिश हो सकती है। पिछले सप्ताह रोमानिया में एक बेस तैयार किया गया और पोलैंड में बेस बनाने की शुरुआत की गई। पुतिन लंबे समय से नाटो का गलत मतलब निकालते आए हैं, जबकि शीतयुद्ध के बाद से ही उसने खतरे के तौर पर अपनी सैन्य क्षमताओं में कमी की है। नाटो के 28 सदस्य अब जुलाई में पोलैंड की राजधानी वारसा में मुलाकात करेंगे, यह अच्छा समय है चीजों को सुलझाने का। हो सकता है कि यूक्रेन पर आक्रमण के चलते रूस पर जो प्रतिबंध लगाए गए थे, वे हटा लिए जाएं। नाटो सदस्य ऐसा रास्ता भी खोज सकते हैं, जिससे रूस के साथ वार्ता शुरू हो सके। यहां पुतिन को देखना होगा कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि सुधारने के लिए क्या कदम उठाते हैं। (दैनिक भास्कर )
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