Thursday 19 May 2016

पाक के बौखलाने की वजह नहीं (लेफ्टि. जन.(रिटा.) सैयद अता हसनैन)

मानचित्रों काविषय जरा अलग-सा है और सुरक्षा भू-राजनीति के संबंध में इसका महत्व गहराई से समझना आसान नहीं है। पृष्ठभूमि के लिए इतना जानना काफी है कि आधुनिक टेक्नोलॉजी आसमान में मौजूद 'विभिन्न आंखों' से धरती के बारीक से बारीक ब्योरे देखे जा सकते हैं। कैटोग्राफी (मानचित्र विज्ञान) की दुनिया में क्रांति हुई है। आबादी, भौगोलिक ब्योरे और अन्य मानव निर्मित चीजों को अचूकता से पेश करना संभव हुआ है। रणनीतिक दृष्टि से ये सब खुफिया जानकारी है। इसके पहले दूसरों के कब्जे के क्षेत्र की ऐसी जानकारी पाने के लिए जासूस भेजने पड़ते थे।
सीमाओं के पार हमले करने वाले आतंकवाद के साथ आतंकी गुटों के लिए इंटरनेट से जानकारी पाना संभव हुआ। वेब पर कॉर्टोग्राफिक नेविगेशन उपकरणों से जुटाई अचूक जानकारी उपलब्ध है और आतंकी इनका दुरुपयोग हमलों की साजिश में करते हैं। मुंबई और हाल के पठानकोट हमले में यही किया गया था। जियोस्पेशियल इन्फॉर्मेशन का मतलब है उपग्रहों, विमान, बलून मानव रहित यानों से प्राप्त जानकारी। जियोस्पेशियल इन्फॉर्मेशन रेग्यूलेशन बिल, 2016 के मसौदे में ऊपर बताई टेक्नोलॉजी से प्राप्त जानकारी का दुरुपयोग रोकने के लिए व्यापक दिशानिर्देश दिए गए हैं और इनके उल्लंघन पर कड़ी सजा जुर्माने का प्रावधान है। इन प्रावधानों के दो पहलू हैं। एक तो यह कि भारतीय भू-भाग के भीतर भू-स्थलीय जानकारी में कोई जानकारी जोड़ना या निर्मित करना हो तो सरकार से या इस मामले में सिक्योरिटी वेटिंग अथॉरिटी से इजाजत लेनी होगी। कानून के मसौदे में साफ कहा गया है, 'कोई भी व्यक्ति इंटरनेट प्लेटफॉर्म्स या ऑनलाइन सर्विस के जरिये भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाअों सहित भौगोलिक स्थिति के बारे में गलत या झूठी जानकारी प्रदर्शित, प्रसारित, प्रकाशित या वितरीत नहीं करेगा।' दूसरे शब्दों में यह टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर पाबंदी नहीं, बल्कि उसका नियमन है।
अब पाकिस्तान की बात करंे कि उसे किस बात पर आपत्ति है? उसने संयुक्त राष्ट्र में शिकायत की है कि भारत अपने नक्शों पर जम्मू-कश्मीर के विवादित क्षेत्र दिखाने के लिए मजबूर कर रहा है। इसकी पृष्ठभूमि समझनी होगी। जम्मू-कश्मीर का जो क्षेत्र वर्तमान में तीन देशों के कब्जे में है, वह हमेशा से ही अधिकृत रूप से भारतीय क्षेत्र रहा है। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को जिस विलय-पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, वह स्पष्ट रूप से जम्मू-कश्मीर के पूरे भू-भाग पर भारत का अधिकार स्थापित करता है। अभी अक्साई चिन अवैध रूप से चीन के पास है। अधिकृत कश्मीर गिलगित-बाल्टीस्तान अवैध रूप से पाकिस्तान के पास है और लद्‌दाख, कश्मीर घाटी और जम्मू हमारे पास हैं। पाकिस्तान तर्क देता है कि भारत ने क्षेत्र में जनमत संग्रह के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का पालन नहीं किया, इसलिए वह भाग इसके अवैध नियंत्रण में है। भारत का रुख एकदम स्पष्ट है, जिसे भारत के ताजा बिल को लेकर पाकिस्तान की आपत्ति की रोशनी में समझने की जरूरत है। एक, जनमत संग्रह जम्मू-कश्मीर से हमलावर सैन्य बलों को वापस लेने के बाद किया जाना था। विलय-पत्र पर 26 अक्टूबर 1947 को हस्ताक्षर हुए थे और भारतीय टुकड़ियां उसके बाद ही 27 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर में आई थीं। इस तरह चूंकि यह भारत का क्षेत्र हो चुका था, इसलिए इसे आक्रमण नहीं कहा जा सकता। जाहिर है हमलावर पाकिस्तान था और उसे जम्मू-कश्मीर से अपने सैन्य बल वापस लेने थे। दो, अक्साई चिन पर चीन के कब्जे के बाद जम्मू-कश्मीर का मुद्‌दा बदल जाने से संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव निरर्थक हो गया। तीन, पाकिस्तान ने स्थिति को बदलने के लिए तीन बार सैन्य बल का प्रयोग किया, जिससे फिर संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रिया निष्प्रभावी हो जाती है। चार, 1972 के शिमला समझौते में द्विपक्षीय समाधान को मुख्य आधार माना गया और दोनों देशों के मामले में संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव कीजगह इस समझौते ने ले ली। पांच, पाकिस्तान ने 1989 में भारत के खिलाफ छद्‌म युद्ध शुरू किया, जो आज तक जारी हैै।
22 फरवरी 1994 को संसद के दोनों सदनों ने संयुक्त प्रस्ताव पारित कर महाराजा के अधीनस्थ रहे पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर रियासत के पूरे क्षेत्र को भारतीय क्षेत्र घोषित किया और कहा कि वह उन क्षेत्रों को वापस पाने के लिए प्रयास करेगा, जो फिलहाल उसके नियंत्रण में नहीं हैं। पाकिस्तान उस कानून का विरोध कर रहा है, जो भारत में किसी के लिए और विदेश में किसी भारतीय के लिए भारतीय भू-भाग की गलत प्रस्तुति अपराध हो जाएगी। पाकिस्तान कोे लगता है कि ऐसे कानून और भारत के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय प्रभाव के चलते कई एजेंसियां भारतीय दावे का विरोध नहीं करेंगी। मसलन, समझा जाता है कि फेसबुक ने भारत के नक्शे पर जम्मू-कश्मीर की सही सीमा नहीं दिखाने के लिए माफी मांगी है।
भारत के भीतर भारत की राष्ट्रीय सीमाओं की गलत प्रस्तुति के लिए कोई संवेदनशीलता नहीं है। मैं हाल ही में एक आयोजन में मौजूद था, जहां वक्ताओं द्वारा दिखाए पावर पॉइन्ट की स्लाइड्स में जम्मू-कश्मीर की सीमाओं को चारों तरफ से कटा-फटा दर्शाया गया था। एक विदेशी ने भी ऐसा नक्शा दिखाया। जब मैंने इस पर आपत्ति जताई तो वे माफी मांगने लगे और कहा कि उन्होंने यह जान-बूझकर नहीं किया। नया कानून उन लोगों को राहत देगा, जो नई टेक्नोलॉजी और उसके जरिये हमारी राष्ट्रीय सीमाओं की गलत प्रस्तुति से विचलित रहे हैं। यदि एक राष्ट्र के रूप में हम लगातार ऐसे नक्शे पेश करते रहे, जिसमें जम्मू-कश्मीर या अरुणाचल प्रदेश हमारे दावे के अनुरूप हो तो हम नैतिक आधार पर अपने दावे को ही कमजोर करते हैं। इस कानून से इस बारे में जागरूकता पैदा होगी कि हम नक्शे पर अपनी सीमाएं दर्शाने में सावधानी बरतें। आम जानकारी के लिए बात दूं कि अांख बंद करके इंटरनेट से नक्शे डाउनलोड करते वक्त यदि आप सतर्कता बरतें तो आप यह गलती कर देते हैं। कानून से हमारी सीमाओं को लेकर आम जागरूकता में भी वृद्धि होगी।
आखिरी बात, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर प्रदर्शित भू-स्थानीय जानकारी में आतंकियों के लिए उपयोगी जानकारी होने की पूरी आशंका होती है। यह भारत से संबंधित सूचनाओं पर भी लागू होता है। इस कानून से भारत में होने वाले ऐसे सारे प्रदर्शन जांच के घेरे में जाएंगे, जिससे हमारे अपने ही प्रदर्शन से हमारी सुरक्षा खतरे में पड़ जाए। अभी इस बात का पूरा विश्लेषण करना है कि नया कानून शत्रुतापूर्ण तत्वों तक सूचना की पहुंच पर कितनी लगाम लगा पाएगा। इसका प्रभाव नेविगेशन उपकरणों के वाणिज्यिक उपयोग पर भी असर होने की संभावना है जैसे ओला और उबर जैसी सार्वजनिक परिवहन की कंपनियां सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम का व्यापक उपयोग करती हैं। atahasnain@gmail.com(येलेखक के अपने विचार हैं।) (दैनिक भास्कर )

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