Thursday 26 May 2016

अर्थव्यवस्था के साथ रुतबा भी बढ़ा (वेंकैया नायडू )

घोटालों सेदागदार दशकभर के शासन के बाद भारत अब चहुंमुखी बदलाव देख रहा है। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में रौनक लौटी है और जैसे-जैसे देश सब के लिए बेहतर जीवन के आश्वासन के साथ सकारात्मक बदलाव की दिशा में प्रधानमंत्री के विज़न और मिशन को अमल में लाने के लिए आगे बढ़ रहा है, इन क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ी हैं। अब जब एनडीए सरकार आज सत्ता में दो साल पूरे कर रही है तो समय गया है कि इसके कार्यकाल का आकलन किया जाए।
दुर्भाग्य से नीतिगत पंगुता के लिए रेखांकित किए गए यूपीए के कमजोर शासन के लंबे दौर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को चोट पहुंचाई। जहां भ्रष्टाचार अपने चरम पर था, विभिन्न संस्थाओं की साख घटाई गई और उनका महत्व इतना कम कर दिया गया कि स्थिति उलटना कठिन हो गया। अर्थव्यवस्था की हालत खराब थी और बहुत बड़ा वित्तीय, राजस्व, चालू खाते का घाटा और व्यापार घाटा मुंह बाये खड़ा था। सबसे खराब बात तो यह थी कि विश्वास का भी बहुत बड़ा अभाव था। इन परिस्थितियों में जनता ने एनडीए को भारी बहुमत के साथ सत्ता सौंपी। यूपीए की विरासत के दुष्कर बोझ के बावजूद एनडीए सरकार सत्ता के सूत्र संभालते ही सुशासन और विकास पर ध्यान केंद्रित कर अपने काम में लग गई।
आगे बढ़ने के पहले मैं यह ध्यान दिलाना चाहूंगा कि संघीय गणराज्य में केंद्र सरकार नीतियां बनाती है पैसा जारी करती है, जबकि राज्य सरकारें और स्थानीय स्वशासन संस्थाएं इन्हें जमीनी स्तर पर लागू करती हैं। जब से एनडीए सरकार सत्ता में आई है, हमने असहयोगात्मक रवैया रखने वाली कांग्रेस के कारण मौजूद सीमाओं के बावजूद सुधारों को आगे बढ़ाने और गुणात्मक परिवर्तन के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास किए, जबकि कांग्रेस ने बार-बार राज्यसभा में अहम विधेयक रोककर रखे। जाहिर है कि कांग्रेस अब भी जनादेश स्वीकार नहीं कर पाई है और लगातार मोदीजी, उनके विज़न और उनकी उपलब्धियों के प्रति असहिष्णु बनी हुई है।
विपक्ष द्वारा पैदा की गई बाधाओं से अविचलित रहकर दृढ़ प्रतिज्ञ प्रधानमंत्री कई आउट-ऑफ-बॉक्स आइडिया लाए और वे ही कई अन्य कदमों के साथ स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, (जिसका उद्‌देश्य लैंगिक संतुलन स्थापित करना है), मुद्रा बैंक, वित्तीय समावेश और सामाजिक सुरक्षा के उपायों के पीछे की संचालन शक्ति रहे हैं। अलग हटकर विचार लाने का ही एक उदाहरण मिट्‌टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए शत-प्रतिशत नीम वाले यूरिया का उत्पादन और गैर-कृषि कार्यों में इसके उपयोग को रोकना है। 2015-16 में यूरिया का अब तक का सर्वाधिक 245 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ है। एनडीए का एकमात्र मंत्र है 'विकास..विकास और विकास' तथा आगे भी यही रहेगा। 'स्किल इंडिया' यानी हुनरमंद युवाओं के भारत के उनके विज़न के हिस्से के रूप में कौशल विकास उद्यमिता मंत्रालय गठित किया गया है।
दुनिया की अर्थव्यवस्था जहां सुस्त पड़ रही थी, भारतीय अर्थव्यवस्था में पुनर्जीवन लौटने लगा। आर्थिक स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 2016 2017 में क्रमश: 7.3 7.5 फीसदी रहने की बात कही गई है, जबकि इस दौरान चीन की दर क्रमश: 6.4 6.5 फीसदी रहेगी। इससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था को कितनी दक्षता से संभाला जा रहा है। भारत का रुतबा बढ़ा है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 48 फीसदी से बढ़ा है। जून 2014 में मैन्युफेक्चरिंग 1.7 फीसदी से बढ़ रही थी, जबकि 2016 में यह दर 12.6 फीसदी हो गई है। महंगाई काबू में आई है और भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के रिकॉर्ड 363.12 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। 2015-16 के पहले 11 महीनों में ही 51.64 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश देश में आया। विदेश नीति के मोर्चे पर तो व्यापक बदलाव आया है और मोदीजी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे जैसे विश्व नेताओं से व्यक्तिगत तालमेल स्थापित किया है। साथ ही उन्होंने विदे में बसे भारतवंशियों से जुड़कर उन्हें देश के विकास में भागीदार बनने को प्रेरित किया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और परमाणु आपूर्ति समहू में प्रवेश के लिए बड़ी शक्तियों ने समर्थन दिया है। ऑस्ट्रेलिया-कनाडा भारत को यूरेनियम देने पर सहमत हुए हैं। जलवायु वार्ता में कॉर्बन उत्सर्जन घटाने का भारत का फॉर्मूला स्वीकार हुआ और प्रधानमंत्री ने सौर ऊर्जा से धनी 121 देशोंे के सोलर अलायंस के गठन की पहल की। केवी कामथ का ब्रिक देशों की बैंक का पहला प्रेसीडेंट बनना भी उपलब्धि है। प्रधानमंत्री की कूटनीतिक पहल से इराक, यमन, लीबिया और यूक्रेन में फंसे 18 हजार भारतीयों को निकाला गया। यूएन में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस और भारत-बांग्लादेश भू-हस्तांतरण संधि भी मील के पत्थर हैं।
कल्याणकारी कार्यों में पूर्व सैनिकों के लिए 'वन रैंक, वन पेंशन' योजना लागू होना भी उल्लेखनीय है। मार्च अंत तक 15.9 लाख पेंशनभोगियों को पहली किस्त मिल चुकी है। आधारभूत ढांचे की बात करें तो पूर्ववर्ती सरकार के दौरान फंसे 3.8 लाख करोड़ के रोड प्रोजेक्ट में से 3.5 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट शुरू हो चुके हैं। सड़क निर्माण 2014-15 के 8.5 किमी प्रतिदिन से बढ़कर 11.9 किमी प्रतिदिन हो गया है। गांवों में 35 हजार किमी सड़कें बनाई गई हैं, जो पहले से 11 हजार किमी ज्यादा है। कोयले की पारदर्शी नीलामी से राज्यों को 3.44 लाख करोड़ रुपए अधिक मिले हैं। इसी तरह स्पेक्ट्रम नीलामी मेें 1.10 लाख करोड़ मिले। यूपीए के दौरान 8000 करोड़ का घाटा दिखाने वाले बीएसएनएल ने 2014-15 में 672 करोड़ रुपए का फायदा दिखाया है। डिजिटल इंडिया के लिए 1,18,000 करोड़ के 175 निवेश प्रस्ताव मिले हैं। सहयोगात्मक संघवाद की दिशा में सरकार ने 14वें वित्त आयोग की यह सिफारिश मान ली है कि 42 फीसदी कर आमदनी राज्यों को हस्तांतरित की जाए। प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत 21.56 करोड़ बैंक खाते खुलना 35,600 करोड़ की राशि जमा होना, छोटे उद्यमों के लिए मुद्रा योजना, 1.13 करोड़ उपभोक्ताओं द्वारा एलपीजी सब्सिडी लेना बंद करना, पांच करोड़ बीपीएल परिवारों को मुफ्त एलपीजी की उज्ज्वला योजना अन्य मील के पत्थर हैं। यहां तक कि संसद की उत्पादकता में भी बढ़ोतरी हुई है। पिछले दो वर्षों में लोकसभा की 149 और राज्यसभा की 143 बैठकें हुई हैं। जहां लोकसभा ने 96 बिल पारित किए हैं तो राज्यसभा ने 83 विधेयकों को हरी झंडी दिखाई है। राज्यसभा में अब भी 44 बिल लंबित हैं। इस प्रकार औसतन हर वर्ष 48 बिल पारित हुए जबकि कांग्रेस सरकार का औसत 45.1 ही था।
साफ है कि प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में नीतिगत पंगुता का स्थान, निर्णय क्षमता ने लिया है। एनडीए सरकार विकास में राज्यों को 'टीम इंडिया' की भावना के तहत भागीदार बनाना चाहती है। सरकार ने जो दिशा ग्रहण की है, उससे जाहिर है कि देश एक अच्छे प्रशासक, सुधारक, काम करने वाले प्रदर्शक और रूपांतरण लाने वाले नेता के हाथों में महफूज़ है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।) (दैनिक भास्कर )

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