Thursday 12 May 2016

उज्जवल भविष्य की उज्ज्वला (उमेश चतुर्वेदी)

लोकतांत्रिक राजनीति में सत्ताधारी शख्सियत का विरोध होना अस्वाभाविक नहीं है। लेकिन व्यापक जनसमुदाय के हित में सत्ता अगर कोई कदम उठाती है तो उसका स्वागत होना ही चाहिए। निकट अतीत में कट्टर विरोधी सत्ता के ऐसे कदमों का विरोध करने से बचते रहे। बहरहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कम से कम दो योजनाएं गिव इट अप और उवला ऐसी हैं, जिन पर उंगली नहीं उठाई जा सकती। 28 मार्च 2015 को जब पीएम मोदी ने हैसियतदार मध्यवर्ग से गैस सब्सिडी छोड़ने की अपील की थी, तब विपक्ष के कई कोनों से उपहास और विरोध के सुर उठे थे। लेकिन हैरत होती है कि महज एक साल में ही सब्सिडी छोड़ने वालों का आंकड़ा एक करोड़ की संख्या को पार कर गया है। प्रधानमंत्री की अपील और उसके बाद तेल कंपनियों के प्रचार के बाद महंगाई से जूझ रहे मध्यवर्ग के अगर एक करोड़ परिवारों ने अपने खर्च में थोड़ी ही सही बढ़ोतरी कर ली है तो उसका स्वागत होना ही चाहिए। चूंकि प्रधानमंत्री की अपील पर ही ऐसा हुआ, तो उन्होंने ट्वीटर के जरिए इसका स्वागत किया भी है। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह तो मध्य वर्ग के इन लोगों को राष्ट्रनिर्माता कह कर आभार जताया है।
तेल और प्राकृतिक गैस मंत्रलय का अनुमान है कि सब्सिडी छोड़ने की इस प्रक्रिया से सालाना 2000 करोड़ रुपये की सरकारी खाते में बचत होगी। इस पैसे के इस्तेमाल का भी सरकार ने सोच रखा है। गिव इट अप से बचे इन रुपयों का इस्तेमाल उज्ज्वला योजना के जरिए गरीबी रेखा से नीचे गुजारा कर रहे परिवारों को गैस कनेक्शन दिए जाएंगे। जिसकी शुरुआत आगामी मई महीने से खुद प्रधानमंत्री ही करने जा रहे हैं। सरकार का पहले साल डेढ़ करोड़ ऐसे परिवारों को गैस कनेक्शन देने का लक्ष्य है। गांव और शहरों में गरीबी रेखा से नीचे गुजारा कर रहे परिवारों को जिन्होंने देखा है, उन्हें पता है कि उनकी महिलाओं को अन्न जुटाने से लेकर खाना बनाने तक के लिए धूल, धुआं और जंगल-पहाड़-खेत से कितना जूझना पड़ता है। दिल्ली-भोपाल में भी लकड़ी तलाशते और उसे गट्ठर बनाकर अपने सिर पर ढोते दीन-हीन महिलाएं दिख जाएंगी। इन महिलाओं की जिंदगी सुबह और शाम को अपने फेफड़े को लोहार की धौंकनी की तरह इस्तेमाल करते, आग और धुआं में आंखों से आंसू बहाए देखा जा सकता है। इस प्रक्रिया का दोहरा नुकसान है। महिलाओं के स्वास्थ्य पर जहां इसका नकारात्मक असर पड़ रहा है, वहीं रसोई के लिए जलाई आग से उठते धुएं से पर्यावरण को भी चोट पहुंच रही है। अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्रसंघ की पहल पर पेरिस में 175 देशों ने एक साथ पर्यावरण रक्षा की दिशा में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर लगाम रखने और मौजूदा सदी में पृथ्वी के तापमान में हो रही बढ़ोत्तरी को दो डिग्री सेल्सियस तक रखने के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। सोचिए अगर भारत जैसे देश में गरीबी रेखा से नीचे गुजारा कर रहे पांच करोड़ परिवारों को रसोई के लिए गैस मिल गई तो पांच करोड़ चूल्हों से निकलने वाले कितने कार्बन पर काबू पाया जा सकेगा। फिर ऐसी महिलाओं के स्वास्थ्य में भी सकारात्मक सुधार नजर आ सकता है। जिसका निश्चित तौर पर आर्थिक रूप से कमजोर तबके की महिलाओं की उत्पादकता भी बढ़ेगी। अपनी ऊर्जा का वे इस्तेमाल दूसरे आर्थिक और सामाजिक कार्यों में लगा सकेंगी। जिसका निश्चित तौर पर फायदा होगा।
बीते 21 अप्रैल को जब गिव इट अप कार्यक्रम के तहत वालों की संख्या एक करोड़ को पार कर गई तो इसे लेकर प्रधानमंत्री के दफ्तर के साथ ही तेल और प्राकृतिक गैस मंत्रलय में भी खुशी का माहौल था। बीजेपी दफ्तर भी इसे अपनी सरकार की कामयाबी के तौर पर देख रहा है। अब जरा सब्सिडी छोड़ने वाले लोगों के आंकड़ों पर भी गौर कर लें। पेट्रोलियम मंत्रलय के अनुसार, अधिकतर मध्य वर्ग के लोगों ने सब्सिडी छोड़ी है। इसमें सबसे अधिक 40 प्रतिशत ग्राहक इंडियन ऑयल के हैं, जबकि भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम के कनेक्शनधारियों की संख्या तीस-तीस प्रतिशत है। पेट्रोलियम मंत्रलय के एक सर्वे के मुताबिक 10 लाख रुपये से अधिक आमदनी वाले सिर्फ तीन प्रतिशत ग्राहकों ने ही गिव इट अप के तहत सब्सिडी छोड़ी है। यानी अगर प्रचार और अपील अभियान जारी रहे तो इस क्षेत्र में भी काम की अभी बड़ी गुंजाइश है।
सब्सिडी छोड़ने से बचे पैसे से पहले साल जहां डेढ़ करोड़ कमजोर तबके के लोगों को गैस कनेक्शन दिए जाने हैं, वहीं अगले तीन साल में यह संख्या पांच करोड़ लोगों तक पहुंचाने का लक्ष्य है। यानी सरकार का मकसद 2019 के आम चुनावों के पहले तक अपना लक्ष्य हासिल कर लेना है। मोदी सरकार की जैसी कार्यशैली है, उससे इस योजना के पूरी होने पर संदेह कम ही है। अगर यह योजना पूरी हो गई तो जिन पांच करोड़ घरों में गैस के सिलिंडर जाएंगे, उनके करीब बीस करोड़ लोगों तक मोदी सरकार की पहुंच हो जाएगी। अगर प्रति परिवार दो भी वोटर हों तो करीब दस करोड़ मतदाताओं तक मोदी सरकार और भाजपा की पहुंच होगी। 2014 में भाजपा को 17 करोड़ 16 लाख 37 हजार 684 वोट हासिल हुए थे। सोचिए, अगर इस वोट बैंक में अगर दस करोड़ वोट और जुड़ जाएं तो मतदाताओं और राजनीतिक दलों के बिखराव की परंपरा वाले देश में भारतीय जनता पार्टी की ताकत कितनी बढ़ेगी। जाहिर है कि इसका फायदा सीधे-सीधे भारतीय जनता पार्टी को होगा। यही वह बिंदु है, जिससे विपक्ष घबराया हुआ है। हालांकि अभी तक उसने उवला योजना पर कोई बड़ा हमला नहीं बोला है। लेकिन यह तय है कि वोटों का यह गणित जैसे-जैसे वह समङोगा, सरकार पर हमले करने की कोशिश करेगा। गांव, गरीब का सही उत्थान गांधी-लोहिया और जयप्रकाश का ही सपना नहीं था, बल्कि भारतीय जनता पार्टी के पितृ पुरुष दीनदयाल उपाध्याय का भी था। जाति-पांति में बंटी भारतीय राजनीति की इस दीवार को भी तोड़ने में यह योजना एक हद तक कारगर हो सकेगी। क्योंकि गरीबी किसी एक जाति में नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग में है।
मोदी सरकार के लिए चुनौती इस योजना को जमीनी हकीकत बनाना है। क्योंकि निचले स्तर पर जिस तरह का भ्रष्टाचार गैस वितरकों की तरफ से होता है, उस पर अभी तक कारगर लगाम नहीं लगाई जा सकी है। फिर स्थानीय स्तर पर गैस वितरण स्थानीय दबंगों के हाथ है। इसलिए उनकी मनमानी को कमजोर तबका बर्दाश्त करता रहता है। इसलिए इस मनमानी पर रोक लगाने का भी कारगर मैकेनिम बनाया जाना चाहिए।
गैस सब्सिडी छोड़ने वालों की संख्या एक करोड़ पार करने के बाद पेट्रोलियम मंत्रलय ने महत्वपूर्ण ऐलान भी किया है। अगर भविष्य में गैस की कीमतें बढ़ती हैं तो सब्सिडी छोड़ चुके लोग फिर सब्सिडी की मांग कर सकेंगे और सरकार उन्हें देगी भी। बहरहाल उम्मीद की जानी चाहिए कि व्यापक जनहित की यह योजना सही मायने में लागू हो और सदियों से धूल-धुएं से मरती खपती रही भारतीय नारी की दुश्वारियां दूर हों।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

No comments:

Post a Comment