Thursday 19 May 2016

सूखे का समाधान (भरत डोगरा )

इस समय देश में सूखे के संकट की व्यापकता और गंभीरता के बारे में व्यापक सहमति दिख रही है। इसके साथ ही यह भी सच है कि स्थिति की गंभीरता के लिहाज से तैयारी अभी अधूरी है। केंद्रीय सरकार ने मनरेगा के लिए हाल में जो धनराशि जारी की है उससे पिछले वित्तीय वर्ष की बकाया मजदूरी का तो भुगतान हो सकेगा, पर उचित समय पर मजदूरी मिलने वाले कामों की कमी अभी बनी रहेगी। इस स्थिति में जहां मनरेगा कानून का बेहतर क्रियान्वयन जरूरी है वहीं इस बारे में भी नीतिगत निर्णय लेने में अब और देर नहीं करनी चाहिए कि इसके साथ सूखा राहत कार्यो को भी आरंभ किया जाए। मनरेगा के अपने नियम हैं और हो सकता है कि इसमें मजदूरी का भुगतान उतनी जल्दी न हो सके जितना कि सूखा प्रभावित लोगों की दृष्टि से जरूरी है। अत: अलग से विशेष सूखा राहत कार्यो की जरूरत अपनी जगह बनी हुई है। यदि मनरेगा और सूखा राहत कार्य ठीक से साथ-साथ चलें और एक-दूसरे के पूरक बनें तो लोगों को वास्तव में राहत मिलेगी।1साथ में हमें यह याद रखना होगा कि इस समय सबसे बड़ी जरूरत तो पेयजल की व्यवस्था की है और इसे उच्चतम प्राथमिकता बनाकर कार्य करना होगा। तभी स्थिति संभल सकेगी अन्यथा इस समय तो कुछ स्थानों पर स्थिति इतनी नाजुक हो चुकी है कि केवल भूख से नहीं प्यास से भी मौतें हो सकती हैं। जहां तक गाय, बैल और किसानों के अन्य पशुओं का सवाल है तो पहले ही बड़ी संख्या में इनकी मौत हो चुकी है और अभी और भी विकट स्थिति सामने है। इस संकट की घड़ी में बड़े पैमाने पर भूसे और चारे की व्यवस्था के लिए सरकार के साथ विभिन्न जन संगठन भी आगे आएं।1वैसे भी सूखे के संकट का सामना करने में विभिन्न नागरिक संगठनों का सहयोग सभी स्तरों पर प्राप्त होना चाहिए। किसी भी गंभीर आपदा का सामना करने के लिए सरकार और जन संगठनों का आपसी सहयोग बहुत उपयोगी हो सकता है। इस संदर्भ में यदि प्रशासन की कुछ आलोचना होती है या भ्रष्टाचार के कुछ मामले सामने आते हैं तो इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि प्रशासन और जन संगठनों के सहयोग में कोई दरार आए अपितु लोकतांत्रिक भावना के अनुकूल यह सहयोग तो बना रहना चाहिए।1इस समय की राहत से आगे एक बड़ा सरोकार सूखे के संकट के समाधान का है। सामान्यत: किसी भी क्षेत्र का ऐसा नियोजन संभव है जिससे सूखे से जुड़ी समस्याओं को बहुत हद तक कम किया जा सके। यह वाटरशेड के पर्यावरण के सुधार, जल संरक्षण के विभिन्न उपायों, जल स्नोतों की रक्षा, वनों की रक्षा, मेढ़बंदी, खेतों में छोटे तालाब बनाने के कार्य हैं जिन्हंे स्थानीय लोगों के सहयोग से क्रियान्वित करना चाहिए। इस संदर्भ में एक गलती प्राय: यह हो रही है कि वाटरशेड के एक-दो मॉडल को ही आदर्श मानकर विभिन्न स्थानों पर उन्हें लगभग जबरन लागू किया जा रहा है, जबकि जरूरत तो इस बात की है कि स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर गांववासियों के नजदीकी सहयोग से जो नियोजन हो उसे ही स्वीकृति मिले।1जल संरक्षण भी तभी सफल होगा यदि साथ में अत्यधिक जल दोहन पर रोक लगे। फसल चक्र इस तरह का होना चाहिए कि स्थानीय जल उपलब्धि के अनुकूल हो और उसके कारण जल-स्तर में कोई गिरावट न आए। किसी पंचायत में या उसके नजदीक ऐसे किसी भी कार्य की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए जिससे जल-स्तर पर प्रतिकूल असर हो। यह प्रशासनिक स्तर पर तभी संभव है जब सरकार इस बारे में स्पष्ट निर्देश जारी करे कि जल संरक्षण को उच्चतम प्राथमिकता मिलनी चाहिए।1(लेखक पर्यावरणविद हैं)(दैनिक जागरण )

No comments:

Post a Comment