राजनीतिक विश्लेषण का एक अंतरनिहित खतरा यह होता है कि कभी-कभी हम यह सोचने लगते हैं कि हमारे अंतरमन में जो है वही हकीकत बन जाएगी। हम सभी कभी न कभी स्थिति को गलत पढ़ने के दोषी रहे हैं। जरूरी नहीं कि ऐसा वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण ही हो। पिछले सप्ताह सभी अनुमानों के विपरीत उत्साही अरबपति व्यवसायी डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सभी शेष रिपब्लिकन प्रतिद्वंदियों को धूल चटा दी और इस तरह वह इस साल नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए व्यावहारिक अर्थ में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उभरे। कई महीने पहले जब वह मुकाबले में उतरे थे तो तमाम विशेषज्ञों ने यह कहा था कि उनके प्राइमरी चुनावों से सफलतापूर्वक उबरने की केवल दो प्रतिशत संभावना है। उन्होंने सारे राजनीतिक पांडित्य को गलत साबित कर दिया। अगले कुछ सप्ताह में अगर रिपब्लिकन पार्टी की ओर से अंतिम समय कुछ अधिक ‘सम्मानित’ उम्मीदवार लाने की कोशिश की जाती है तो उस पहल का असफल होना तय है। 1ट्रंप के नामांकन ने यह विश्वास पैदा किया था कि नवंबर में हिलेरी क्लिंटन को आसान जीत मिलेगी, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। हिलेरी अभी भी अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में सामने आ सकती हैं, लेकिन ट्रंप के खिलाफ उनकी जीत किसी भी तरह सुनिश्चित नहीं कही जा सकती। ट्रंप को एक लापरवाह व्यक्ति के रूप में चित्रित किया जा सकता है। यह मान्यता है कि ऐसा व्यक्ति कुछ दूर तो जा सकता है, लेकिन बहुत दूर नहीं। यह मान्यता पिछले कुछ महीनों में ट्रंप के मामले में गलत साबित हो रही है। यह साफ है कि ट्रंप की अटपटी राजनीति तमाम अमेरिकियों के मन में जगह बना रही है। हमारे लिए उन आधारों की पहचान करना कहीं अधिक महत्वपूर्ण है जिनके कारण उनकी अपील बढ़ रही है। जिस तरह अपने देश में राजनीति दिल्ली में समाचार चैनलों के स्टूडियो में लेफ्ट-लिबरल जुगलबंदी से निर्धारित नहीं होती, उसी तरह अमेरिका में भी लोगों का रुझान विश्वविद्यालय परिसरों के इको चैंबरों अथवा वित्तीय गतिविधियों पर नियंत्रण रखने वाले लोगों से ही हमेशा तय नहीं होता। नि:संदेह इन लोगों की राय महत्वपूर्ण होती है, लेकिन उन्हीं के आधार पर पूरी कहानी नहीं बनती। मेरे विचार से जिस चीज ने ट्रंप के अभियान को दमदार बना दिया है वह है लोगों की नाराजगी को अपने पक्ष में मोड़ने की उनकी क्षमता। जब यह नाराजगी भय के साथ मिल जाती है तो जो मिश्रण बनता है वह बहुत विस्फोटक होता है। नाराजगी से भरे एजेंडे में शीर्ष पर है यह विश्वास कि अमेरिका ईश्वरीय वरदान से मिले दुनिया के सबसे प्रमुख देश के रुतबे से फिसल गया है। ट्रंप के समर्थक सोचते हैं कि एक समय अत्यंत शक्तिशाली रहे अमेरिका को एक तरफ इस्लामिक आतंकवादियों से मार खानी पड़ रही है और दूसरी ओर चीन भी उस पर भारी पड़ रहा है। इससे भी अधिक, उदार आव्रजन नीति ने जनसांख्यिकीय दृष्टि से ऐसा परिवर्तन पैदा किया है जिसके चलते एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की हो गई है जो अमेरिका की बुनियादी सोच से अलग हैं। इनमें से ज्यादा विश्वास अनोखे नहीं हैं। पिछले दो दशकों में अमेरिकी सोच को थिंक टैंकों ने भी प्रभावित किया है। 1990 के दशक में पैट बकानन ने बहुपक्षीय व्यापार प्रणालियों के खिलाफ लोगों के असंतोष को हवा दी थी, जबकि हार्वर्ड के विद्वान सैमुअल हटिंगटन (जिन्होंने सभ्यताओं के टकराव की मशहूर थ्योरी दी थी) ने प्रभावशाली ढंग से यह लिखा था कि किस तरह आव्रजन अमेरिका के बुनियादी सिद्धांतों को प्रभावित कर रहा है। 1ट्रंप की उपलब्धि यह है कि वह असंतोष और नाराजगी की इन तमाम धाराओं को एक जगह एकत्र करने में सफल रहे हैं। उनका अब तक का अभियान मुख्य रूप से खुद जुटाए गए धन पर आधारित रहा है। यह अभियान चुनाव विशेषज्ञों, भाषण लिखने वालों और शोधकर्ताओं की फौज के बिना चल रहा है। इस लिहाज से उनकी उपलब्धि छोटी-मोटी नहीं है। एक चतुर व्यवसायी के रूप में ट्रंप ने उन मौकों की पहचान कर ली जिनमें वह अपनी राजनीति चमका सकते थे और वह इन मौकों को हथियाने के लिए तेजी से लपके। उनके रिपब्लिकन प्रतिद्वंदियों ने प्राइमरी चुनावों में अपने ईसाई गुणों-क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि ट्रंप की अपील ज्यादा व्यापक थी। सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ ट्रंप के तीखे अभियान को कमतर नहीं आंका जाना चाहिए। ट्रंप अर्थव्यवस्था पर निओ-कंजरवेटिव विश्वासों और मान्यताओं को स्वीकार न करके भी प्रभावित कर रहे हैं। शिक्षित, अश्वेत और हिस्पैनिक समुदाय के हिलेरी क्लिंटन के महागठबंधन के मुकाबले ट्रंप ने श्वेत अमेरिकियों का एक गठबंधन बना लिया है। उनकी एकमात्र कमी यह है कि उन्होंने अपनी कुछ मूर्खतापूर्ण टिप्पणियों के कारण महिलाओं को अपने से दूर दिया है। मेरा विश्वास है कि जब तक ट्रंप एक के बाद एक आत्मघाती गोल न करें या उम्मीदवार बनने के बाद हिलेरी क्लिंटन खुद को नए रूप में अमेरिकियों के समक्ष न लाएं तब तक हमारे सामने एक दिलचस्प और नजदीकी मुकाबला है। यह ऐसा मुकाबला है जिसका परिणाम पहले से निर्धारित नहीं है। भारत के नीति-निर्माताओं को अमेरिका के घटनाक्रमों पर खुले मस्तिष्क से निगाह रखनी चाहिए। 1(लेखक प्रख्यात स्तंभकार और राज्यसभा के सदस्य हैं) Danik jagran