Thursday 12 May 2016

परखनली में जीवन रचना (मुकुल व्यास )

वैज्ञानिकों ने परखनली में मानव भ्रूण को लंबे समय तक जीवित रखने का एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। वैज्ञानिकों ने 1969 में पहली बार एक परखनली में भ्रूण को निषेचित किया था। तब से अभी तक किसी को भी नौ दिन से ज्यादा भ्रूण को जीवित रखने में सफलता नहीं मिली थी। वैसे सामान्य तौर पर भ्रूण को सात दिन तक ही परखनली में रखा जाता है। अब ब्रिटेन में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और अमेरिका में रॉकफेलर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मानव भ्रूण को 13 दिन तक जीवित रखने का प्रयोग किया है। अभी भ्रूण को परखनली में जीवित रखने की कानूनी सीमा 14 दिन है। जीवन की उत्पत्ति केसबसे रहस्यपूर्ण चरण में भ्रूण को देख सकना एक बड़ी उपलब्धि है और इससे आनुवंशिक बीमारियों और शारीरिक दुर्बलताओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि इससे परखनली में विकसित भ्रूण के गर्भाशय में सफल प्रत्यारोपण की मौजूदा दर को और सुधारा जा सकता है और गर्भपात के कारणों को भी समझा जा सकता है। चिकित्सा जगत की सबसे बड़ी उम्मीद स्टेम कोशिकाएं हैं। भ्रूण विकास की विस्तृत जानकारी उपलब्ध होने पर स्टेम कोशिका आधारित अंग पुनर्निर्माण चिकित्सा के विकास में तेजी आएगी। गौरतलब है कि स्टेम कोशिकाओं में शरीर की अंग-विशेष कोशिकाओं में परिवर्तित होने की क्षमता होती है। डॉक्टरों का मानना है कि एक दिन अल्जाइमर और हृदय रोग जैसी अनेक बीमारियों का इलाज स्टेम कोशिका चिकित्सा से किया जा सकेगा। 1इस सफलता के बाद परखनली में भ्रूण को विकसित करने की कानूनी सीमा बढ़ाए जाने की मांग उठ रही है। कैम्ब्रिज की प्रमुख रिसर्चर मैग्डलेना जेमिका गेट्ज का कहना है कि भ्रूण विकास पर 13 दिन तक निगरानी रखने के कई लाभ हैं। 1980 में हमने 14 दिन की समय सीमा चुनी थी, क्योंकि इस बिंदु पर बड़े-बड़े जैविक परिवर्तन होते हैं। इसी बिंदु पर जीव अपनी एक अलग पहचान हासिल करता है। इस अवस्था के बाद जुड़वां विकसित नहीं होते। उन्होंने कहा कि अब हम भ्रूण के प्रत्यारोपण के समय मानव विकास केसबसे नाजुक चरण का बारीकी से अध्ययन कर सकते हैं। भ्रूण का गर्भाशय में प्रत्यारोपण मानव विकास के लिहाज से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इसी अवस्था से भ्रूण अपना आकार लेने लगता है और शरीर का संपूर्ण नक्शा तय होता है। जेमिका गेट्ज का मानना है कि परखनली में भ्रूण को अधिक समय तक विकसित करने से बुनियादी मानव जीव विज्ञान के बारे में हमें महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है। इससे आइवीएफ की सफलता की दर सुधर सकती है। साथ ही स्टेम कोशिकाओं की विशिष्ट कोशिकाओं में विकसित होने की प्रक्रिया को भी सुधारा जा सकता है। 1उन्होंने इस आशंका को खारिज कर दिया कि इससे आगे चल कर वैज्ञानिक प्रयोगशाला में ही मानव जीवन का सृजन करने लगेंगे। यह महज एक साइंस फिक्शन है। गर्भाशय के बाहर जीव विकसित करना वैज्ञानिक दृष्टि से असंभव है। ब्रिटेन की शेफील्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एलन पेसी ने जेमिका गेट्ज के विचारों से सहमति जाहिर करते हुए कहा कि इससे मनुष्य की बीमारियों और दुर्बलताओं को समझने के नए अवसर मिलेंगे। ब्रिटेन के प्रमुख वैज्ञानिक प्रो. रोबिन लोवेल बेज का कहना है कि परखनली में विकास की वर्तमान 14 दिन की सीमा पर सार्वजनिक बहस होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसे मौजूदा सीमा से कुछ दिन और बढ़ाना वैज्ञानिकों के लिए उपयोगी हो सकता है। इससे भ्रूण विकास की एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया को समझने में मदद मिल सकती है। 1(लेखक विज्ञान विषय के जानकार हैं)(दैनिक जागरण )

No comments:

Post a Comment