Thursday 12 May 2016

सबसे पहले अनुशासित भारत जरूरी (यशवंत सिन्हा )

अमेरिका मेंमैंने हाल ही में तीन सप्ताह गुजारे हैं। मुझे मिशिगन स्थित रॉस स्कूल ऑफ बिज़नेस ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया था। शेष वक्त मैंने बोस्टन में बिताया। अमेरिका निवास के दौरान मुझ पर कई बातों का प्रभाव पड़ा और उन पर विचार करते हुए मैं भारत लौटा। मैं चाहूंगा कि अपने पाठकों से उन बातों को साझा करूं।
अमेरिका विरोधाभासों की भूमि है। वहां राष्ट्रपति का चुनाव नवंबर 2016 में होना तय है। किंतु चूंकि निर्वाचन प्रक्रिया बहुत जटिल है, रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक, दोनों पार्टियां इसकी प्रक्रिया में कम से कम सालभर से लगी हुई हैं। अमेरिका का राष्ट्रीय मीडिया, खासतौर पर प्रमुख टेलीविजन चैनल, जो अमेरिकी जनता की जरूरतों के अनुसार प्रसारण करते हैं, सिर्फ चुनाव की खबरों से ही भरे पड़े हैं। टेलीविजन के टॉक शो में गंभीर बहस के दौरान विभिन्न प्रत्याशियों के अवसरों पर बात की जाती है। टेलीविजन के इन कार्यक्रमों पर सिर्फ दृष्टिपात करने से ही किसी को भी इस बात पर यकीन हो जाएगा कि अमेरिकी जनता की रुचि सिर्फ चुनाव संबंधी खबरों में ही है और अन्य खबरों में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं है। यह भी उतना ही साफ हो जाता है कि उन्हें शेष विश्व की खबरों में कोई रुचि नहीं है। शायद हम सभी मुख्य रूप से अपने आप में ही दिलचस्पी रखते हैं। इसके बावजूद यह कहना होगा कि शायद औसत अमेरिकी की तुलना में औसत भारतीय, शेष दुनिया के बारे में बेहतर जानकारी रखता है।
आइए, अमेरिकियों के इस अज्ञान के परिणामों पर विचार करें। आज की दुनिया में अमेरिका एकमात्र महाशक्ति है। इसके हाथ दूर-दूर तक फैले हुए हैं। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में इसके सैनिक किसी किसी शत्रु से संघर्ष कर रहे हैं। यह लड़ाई दिन-प्रतिदिन के आधार पर चल रही है। ये लड़ाइयां ही दुनियाभर की घटनाओं की दिशा तय करती हैं। इसके बावजूद दुनिया के शेष हम लोगों के बारे में अमेरिकी लोगों का ज्ञान बहुत ही कम है। जिन लोगों को अच्छी तरह सूचना संपन्न माना जाता है उन अमेरिकियों से बातचीत में मैंने उनमें भी उसी स्तर का अज्ञान देखा। मेरा ख्याल है कि अमेरिकी लोगों को और शिक्षित होने की सख्त जरूरत है। ऐसे लोगों के हाथों में दुनिया की नियति सुरक्षित नहीं है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका ने 'वैश्विक पुलिस' की भूमिका निभाते हुए और दुनिया में स्वतंत्रता लोकतंत्र के एकमात्र रक्षक के रूप में विश्व स्तर पर जो भी गलतियां की हैं, वे इतिहास और इन घटनाओं को आकार देने वाली ताकतों के बारे में उसके अज्ञान से निकली हैं।
अमेरिका का सकारात्मक पहलू यह है कि वह अपनी जनता का बहुत अच्छा ख्याल रखता है। देश में खाद्य पदार्थ प्रचुर मात्रा में और वाजिब कीमत पर उपलब्ध है। उनकी खुली अर्थव्यवस्था से यह सुनिश्चित होता है कि जनता को उपभोग के लिए दुनिया के सारे हिस्सों से सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता की चीजें मिलती रहें। उन खाद्य पदार्थों के मौसम में और मौसम होने पर भी उनकी आपूर्ति होती रहे ताकि वे अच्छी गुणवत्ता की चीजें प्राप्त करते रहें। यहां तक कि पका हुआ और आंशिक रूप से पका हुआ खाना भी बहुत ही आसानी से उपलब्ध है और वह भी अच्छी गुणवत्ता वाला। इसी प्रकार उन्होंने ऐसी व्यवस्था कायम की है कि उन्हें दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाशाली लोग मिल जाते हैं। पहली श्रेणी के लोग, जिन्हें अमेरिका में रहना और काम करना बहुत पसंद है।
अमेरिकी बहुत मेहनत करते हैं। हफ्ते के पांच कार्यदिवस बहुत तेजी से गुजर जाते हैं। कामकाजी पुरुषों और महिलाओं को सुबह दफ्तर में 8 बजे या ज्यादा से ज्यादा 9 बजे तक तो पहुंचना ही पड़ता है। जब वे शाम को लौटते हैं तो बुरी तरह थके हुए होते हैं। केवल सप्ताहांत में ही वे किसी अन्य काम की ओर ध्यान दे पाते हैं। अपने व्यक्तिगत काम भी वे तभी कर पाते हैं। सप्ताहांत यानी वीकेंड को बहुत मूल्यवान माना जाता है। इसी वजह से सारी छुटि्टयों और सालाना अवकाश का भी वहां बहुत महत्व है। वे बुत कर्मठतापूर्वक उन्हें सौंपा हुआ काम पूरा करते हैं। काम के दौरान उन पर बार-बार निगरानी रखने की जरूरत नहीं पड़ती। किसी के पास बेकार घूमने या मंडराने का वक्त नहीं है। जब हम बोस्टन में थे तो दो दिन तक भारी हिमपात हुआ। स्थानीय शासन के कर्मचारी सुगम यातायात के लिए रास्तों से बर्फ हटाने में जुट गए। लोगों को भी अपने घरों के सामने के रास्ते की बर्फ हटाने के लिए वक्त निकालना पड़ा। यह कानूनी बाध्यता है और इसमें कोई भी लापरवाही भारी जुर्माने या सजा का कारण बन सकती है।
सार्वजनिक परिवहन बहुत सुगम और कार्यक्षम है। यही वजह है कि ज्यादातर लोग सार्वजनिक परिवहन का ही उपयोग करते हैं। यातायात का प्रबंधन इतना अच्छा है कि सड़कों पर कोई जाम नहीं लगता। कई विकासशील देशों सहित अपनी सारी विदेश यात्राओं के दौरान उनके ट्रैफिक की व्यवस्था और भारत की यातायात व्यवस्था की तुलना मुझे सबसे ज्यादा कष्ट देती है। कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता, जब तक कि लोगों के मन में यातायात के नियमों के प्रति आदर हो।
स्वच्छता तो आस्था का विषय है। घर में जिस तरह से कचरा इकट्‌ठा किया जाता है, उसे ले जाने के लिए जिस तरह घरों के बाहर रखा जाता है- हर चरण स्पष्ट रूप से पहले से तय है। कचरा इकट्‌ठा करने की जिम्मेदारी तय है और वह तय समय पर पूरी की जाती है। फिर चाहे वे किसी इलाके के रहवासी हों या स्थानीय स्वशासन संस्था के कर्मचारी। यह एक चक्र है, जो कभी नहीं टूटता। सार्वजनिक स्तर पर लापरवाही से कचरा बिखेरने की तो सोची भी नहीं जा सकती। आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने वाले मेरे एक दोस्त ने बताया कि वहां आकर उसने सफाई का पहला सबक कैसे पाया। वह अपने दोस्त के साथ कार में जा रहा था और संतरा खा रहा था। एक टैफिक सिग्नल पर उसने चुपचाप संतरे के छिलके सड़क पर गिरा दिए। पीछे के ड्राइवर ने मेरे मित्र की हरकत देख ली। वह अपनी कार से बाहर आया, मेरे मित्र की कार तक आया और कड़ाई से उसे छिलके उठाने को कहा। मेरे मित्र को चुपचाप उसकी बात माननी पड़ी। जब यह सब हो रहा था तो ट्रैफिक रुका पड़ा था।
मेरी नज़र में अन्य किसी बात की बजाय अनुशासन ही किसी राष्ट्र को महान बनाता है। मेरी कामना है कि भारत में हम अनुशासन के उस स्तर को पिछले 69 वर्षों की तुलना में अधिक तेजी से अर्जित करें। स्वच्छ, स्वस्थ, कुशल, स्टार्टअप, स्टैंडअप, इनोवेटिव भारत के साथ, आइए अनुशासित भारत भी बनाएं।
पूर्ववित्त एवं विदेश मंत्री ysinha2005@hotmail.com(येलेखक के अपने विचार हैं।)(दैनिक भास्कर )

No comments:

Post a Comment