Tuesday 24 May 2016

डीटीएए में संशोधन : फर्जी निवेश पर नकेल (डॉ. भरत झुनझुनवाला )

अस्सी के दशक में भारत ने मॉरीशस के साथ डबल टैक्स एवॉयडेंस एग्रीमेंट (डीटीएए) यानी दोहरे कराधान से बचाव के लिए समझौता किया था। दरअसल भारत बड़ी मात्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करना चाहता था, लेकिन समस्या यह थी कि विदेशी निवेशक को एक ही आय पर दो बार इनकम टैक्स अदा करना पड़ता था। मान लीजिए किसी विदेशी निवेशक ने 1000 रुपये के शेयर मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में खरीदे। एक साल बाद इन्हें 1500 रुपये में बेच दिया। निवेशक को 500 रुपये का भारत में लाभ हुआ। इस लाभ को कैपिटल गेन्स कहा जाता है, क्योंकि निवेशित पूंजी के दाम में वृद्धि हुई थी। इस पर उसे भारत में इनकम टैक्स देना होता था, क्योंकि आय भारत में अर्जित की गई। अब यदि वह शेष रकम को मॉरीशस ले गया तो वहां इस आय पर उसे पुन: इनकम टैक्स अदा करना पड़ता था, क्योंकि वह निवेशक मॉरीशस में पंजीकृत था और उसका इनकम टैक्स असेसमेंट मॉरीशस में होता था। इस प्रकार एक ही आय पर दो बार इनकम टैक्स देना होता था। इससे भारत को विदेशी निवेश आकर्षित करने में कठिनाई हो रही थी। इस समस्या के समाधान के लिए भारत ने मॉरीशस के साथ एक समझौता किया, जिसके अंतर्गत मॉरीशस में पंजीकृत निवेशकों द्वारा भारत में अर्जित कैपिटल गेन्स पर भारत में इनकम टैक्स देय नहीं रह गया। उन्हें केवल मॉरीशस में इनकम टैक्स अदा करना पड़ा, क्योंकि उसका इनकम टैक्स असेसमेंट मॉरीशस में होता है, लेकिन मॉरीशस में कैपिटल गेन्स पर टैक्स वसूल ही नहीं किया जाता है। अत: मॉरीशस के निवेशक द्वारा भारत में अर्जित कैपिटल गेन्स पूरी तरह इनकम टैक्स से मुक्त हो गया। 1इस व्यवस्था का लाभ उठाकर तमाम भारतीयों ने अपनी पूंजी को मॉरीशस भेज दिया। वहां एक कंपनी पंजीकृत कराई। उस कंपनी से मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में निवेश किया। ऊपर बताई व्यवस्था के अनुसार यह निवेश इनकम टैक्स से मुक्त हो गया। मॉरीशस के साथ हुए समझौते के इस दुरुपयोग को रोकने के लिए भारत सरकार ने हाल में इसमें संशोधन किया है। अब व्यवस्था बनाई गई है कि मॉरीशस स्थित कंपनी को प्रमाणित करना होगा कि उसने पिछले साल में मॉरीशस में कम से कम 27 लाख रुपये का खर्च किया है। तब ही उसके द्वारा किए गए निवेश पर भारत में कैपिटल गेन्स टैक्स में छूट मिलेगी। यानी मॉरीशस का पता, दफ्तर और मॉरीशस में कुछ लेन-देन करना अनिवार्य हो जाएगा। इस संशोधन से फर्जी कंपनी बनाकर मॉरीशस के रास्ते अपनी पूंजी की घर वापसी करना कठिन हो जाएगा।1इस फर्जीवाड़े को बंद करने का सीधा प्रभाव होगा कि भारत में अब सच्चा विदेशी निवेश ही आएगा। वर्ष 2015 की पहली छमाही में भारत ने 31 अरब अमेरिकी डॉलर का विदेशी निवेश हासिल किया था, जो कि अमेरिका एवं चीन द्वारा हासिल किए गए विदेशी निवेश से अधिक था, लेकिन इसमें अपनी पूंजी की घर वापसी का बड़ा हिस्सा था। मॉरीशस के साथ हुए समझौते के बाद अपनी पूंजी की घर वापसी कम होगी और विदेशी निवेश में भारी गिरावट आने की संभावना है। सच्चे विदेशी निवेश की आवक में भी पेंच है। पिछले वर्ष विश्व व्यापार में 14 प्रतिशत की गिरावट आई है। तमाम देश विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ने के स्थान पर अपने चारों ओर दीवारें खड़ी कर रहे हैं। सलाहकार कंपनी एटी कीयरनी ने कहा है कि विदेशी निवेश में वर्तमान में दिख रही गति के पीछे संरक्षणवाद का विस्तार है। तमाम देश विश्व व्यापार से पीछे हट रहे हैं। वे चाहते हैं कि अपने देश में ही माल का उत्पादन किया जाए जैसे भारत ने देश में बने सोलर पैनल को विशेष प्रोत्साहन दिया था। 1इस परिस्थिति में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए चीन में टेलीविजन आदि का उत्पादन करके दूसरे देशों को निर्यात करना कठिन हो रहा है। इसलिए वे भारत जैसे मेजबान देशों में टेलीविजन बनाने के कारखाने लगा रही हैं। यानी विदेशी निवेश की वृद्धि का अर्थ ग्लोबलाइजेशन का संकुचन है, न कि ग्लोबलाइजेशन का विस्तार। अमेरिका में इस वर्ष होने वाले चुनाव में राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की है कि वह रोजगार को वापस अमेरिका लाएंगे। पिछले डेढ़ साल में भारत के निर्यात लगातार फिसल रहे हैं। विदेशी निवेशक भी भारत में बिकवाली कर रहे हैं। ये तमाम संकेत बताते हैं कि ग्लोबलाइजेशन ढीला पड़ रहा है। 1इस परिस्थिति में ग्लोबलाइजेशन को अपनाकर हम भारी मात्र में विदेशी निवेश हासिल नहीं कर सकेंगे। पूर्व में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने चीन में निवेश किया था। वहां माल का उत्पादन किया था। फिर उस माल का अमेरिका और यूरोप को निर्यात किया। इसको हम नहीं अपना सकेंगे, क्योंकि ग्लोबलाइजेशन ढीला पड़ रहा है। आज विकसित देशों द्वारा माल का आयात कम किया जा रहा है। उनकी कंपनियां भारत में आज फैक्टियां स्थापित नहीं करेंगी, क्योंकि उनके देशों की अर्थव्यवस्था और आयात दबाव में हैं।1इन हालात में मॉरीशस के साथ हुए समझौते में संशोधन के दीर्घगामी प्रभाव होंगे। फिर भी मॉरीशस के साथ एग्रीमेंट में संशोधन सही दिशा में है। इससे हमें कुछ समय तक परेशानी होगी, जैसे कोई नशेबाज व्यक्ति दारू पीना बंद करे तो कुछ समय तक उसे सुस्ती रहती है। सरकार को चाहिए कि घरेलू पूंजी के निवेश को प्रोत्साहन दे। अध्ययन बताते हैं कि पूंजी के मुक्त पलायन को छूट देने से विकासशील देशों की पूंजी ज्यादा मात्र में बाहर गई है। तुलना में विदेशी निवेश कम आया है। अत: सरकार को अपनी पूंजी को विदेश भेजने की छूट भी समाप्त करनी चाहिए। बिना स्वयं मरे स्वर्ग प्राप्त नहीं होता है। इसी प्रकार बिना अपनी पूंजी का सदुपयोग किए हमारा आर्थिक विकास नहीं होगा। विदेशी निवेश, विदेशी कंपनियों और विदेशी तकनीकों का मोह छोड़कर अपनी पूंजी, अपने उद्यमियों और अपने वैज्ञानिकों को प्रोत्साहन देंगे तो देश आगे बढ़ेगा
।1(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं और आइआइएम बेंगलूरु में प्रोफेसर रह चुके हैं).......(दैनिक जागरण )

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