Monday 4 July 2016

आतंकवाद की पहचान (तुफैल अहमद)

ऑरलैंडो के नाइटक्लब में 12 जून को हुई गोलीबारी के बाद एक बहस चल पड़ी है कि क्या ऐसे हमलों को इस्लामिक आतंकवाद कहा जाना चाहिए? इस घटना पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और उपराष्ट्रपति जो बिडेन की ओर से जारी बयान में इस्लाम या हमलावर अफगानी मूल के अमेरिकी नागरिक उमर मतीन के धर्म का कहीं कोई जिक्र नहीं किया गया था। दरअसल वाम विचारधारा से प्रभावित वक्ता, लेखक, राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार नहीं चाहते हैं कि ऐसे आतंकी घटनाओं को किसी धर्म से जोड़ा जाए। उनका यह दृष्टिकोण इस तथ्य के बावजूद है कि ऑरलैंडो में गोलीबारी के दौरान उमर मतीन ने आपातकालीन नंबर 911 पर फोन कर बाकायदा इस बात की घोषणा थी कि वह जिहादी आतंकवादी समूह इस्लामिक स्टेट अथवा आइएसआइएस पर भरोसा रखता है। गोलीबारी के बाद ओबामा सरकार ने उमर मतीन की 911 टेलीफोन नंबर पर हुई बातचीत का ब्यौरा जारी किया, लेकिन उसमें से इस्लाम या आइएसआइएस से जुड़े संदर्भो को निकाल दिया। इससे अमेरिका में राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। अब सरकार पर दबाव डाला जा रहा है कि वह बातचीत का पूरा ब्यौरा बिना काट-छांट के जारी करे। आपातकालीन नंबर पर किए टेलीफोन में उसने अरबी भाषा में कहा है कि मेरी अबु बक्र अल बगदादी में गहरी निष्ठा है, अल्लाह उसकी रक्षा करे।19/11 के बाद के वर्षो में इस खास तरह के आतंकवाद की व्याख्या करने के लिए विभिन्न तरह के शब्द उभर कर सामने आए हैं। जैसे-इस्लामिक आतंकवाद, जिहादी आतंकवाद, कट्टर इस्लाम, राजनीतिक इस्लाम, अतिवादी इस्लाम आदि। इन शब्दों के अपने उद्देश्य भी हैं। दरअसल ये शब्द पश्चिमी नेताओं को इस्लाम का उल्लेख करने से परहेज करने में मदद करते हैं, ताकि वे मुस्लिम समुदायों की कड़ी प्रतिक्रिया से बचे रहें। वैसे आलोचकों का यह तर्क गौर करने लायक है कि यदि कोई कैंसर से पीड़ित है और डॉक्टर बीमारी को असली नाम से नहीं बुलाना चाहता है तो वह उस बीमारी का ठीक तरह से इलाज भी नहीं कर सकता। आलोचकों का कहना है कि इस तरह का आतंकवाद इस्लामिक शिक्षाओं से संबंधित है और इस प्रकार इस्लाम में शीघ्र सुधार की आवश्कता है। फिलहाल इस्लाम में सुधार की जरूरत पर पूरी दुनिया में बहस चल रही है, लिहाजा इस एक महत्वपूर्ण प्रश्न पर चर्चा की जानी चाहिए कि मुस्लिमों द्वारा अंजाम दिए जाने वाले इस तरह के आतंकवाद को क्या इस्लामिक आतंकवाद या जिहादी आतंकवाद या कुछ और नाम दिया जाना चाहिए? इस बहस से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं। पहला, इस्लामिक या जिहादी आतंकवाद जैसे शब्द का प्रयोग तालिबान, अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी समूहों द्वारा स्वयं अपनी गतिविधियों की व्याख्या करने के लिए किया जाता है। दूसरा, ये जिहादी संगठन यह नहीं कहते हैं कि जमात ए इस्लामी के संस्थापक मौलाना मौदूदी, पूर्व पाकिस्तानी सैनिक शासक जनरल जियाउल हक या मिस्न के धर्मशास्त्री सईद कुतब ने जिहाद की शुरुआत की। सच यह है कि ये आतंकी समूह अपनी गतिविधियों को सही साबित करने के लिए कुरान और हदीस की आयतों का हवाला देते हैं। तीसरा, ये संगठन लोकतंत्र को अस्वीकार करते हैं और गैर मुस्लिम देशों में शरिया को लागू करने की मांग करते हैं। इस प्रकार उन्हें जिहादी, इस्लामिस्ट या इस्लामिक समूह कहा जाता है। चौथा, सभी मुस्लिम लड़ाके जिहादी नहीं कहे जाते हैं। उदाहरण के लिए स्वयं पाकिस्तान में, ढेरों मुस्लिम विद्रोही बलूचिस्तान को पाकिस्तान से आजादी के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन उन्हें इस्लामिस्ट, इस्लामिक या जिहादी समूह नहीं कहा जाता है, क्योंकि वे शरिया कानून लागू करने की मांग नहीं करते हैं। इसके विपरीत तालिबान और अलकायदा जिहादी या इस्लामिक समूह कहे जाते हैं, क्योंकि वे पाकिस्तान में शरिया कानून लागू करना चाहते हैं। पांचवां, उत्तरी आयरलैंड में प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक समूहों को ईसाई आतंकवादी नहीं कहा जाता था, क्योंकि वे ईसाई कानून को थोपने के लिए लड़ाई नहीं लड़ रहे थे। अमेरिका में मानसिक रूप से विक्षिप्त लोग कभी-कभी स्कूलों पर हमला कर देते हैं, लेकिन उन्हें ईसाई आतंकवादी नहीं कहा जाता है, क्योंकि वे ईसाई शासन की स्थापना के लिए हत्याएं नहीं करते हैं। छठा, श्रीलंका में एलटीटीई के लड़ाकों को हिन्दू आतंकवादी नहीं कहा जाता था, क्योंकि वे तमिल नागरिकों की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे, न कि हिन्दू शासन की मांग के लिए। सातवां, स्वयं भारत में सभी लड़ाके हिन्दूआतंकवादी के रूप में नहीं जाने जाते हैं। उदाहरण के लिए नक्सली जो कि अधिकांश हिन्दू हैं, सत्तर साल से अधिक समय से लड़ रहे हैं, लेकिन वे हिन्दू आतंकवादी नहीं कहे जाते हैं, क्योंकि उनकी लड़ाई हिन्दू शासन थोपने को लेकर नहीं है। इसके विपरीत अभिनव भारत जैसे संगठनों के कुछ सदस्यों को हिन्दू या भगवा आतंकवादी कहा गया, क्योंकि वे हिन्दू धर्म का शासन लागू करना चाहते थे।
एक आतंकवादी की प्रेरणा को उसके नाम और प्रकृति की व्याख्या करनी चाहिए। बीमारी की पहचान उसके सही नाम के साथ करने से उसके सही इलाज में मदद मिलती है। इसे उदाहरण के जरिये समझते हैं। अमेरिका जानता है कि पाक की आइएसआइ द्वारा अफगानिस्तान में आतंक फैलाया जाता है, लेकिन बीते पंद्रह वर्षो से अमेरिकी सरकार इस मर्ज की दवा पाकिस्तान में ढूंढ़ने के बजाय अफगानिस्तान में खोज रही है। परिणाम स्वरूप अफगानिस्तान में आतंकवाद लगातार फल-फूल रहा है। समलैंगिकों के नाइटक्लब पर हमला करने के लिए उमर मतीन को इस्लाम से प्रेरणा मिली थी और आइएसआइएस की तरह ही उसका मानना था कि ट्रांसजेंडरों को मारना उसका विशेषाधिकार है। ईरान की सरकार भी कुछ इसी तरह सोचती है। सऊदी अरब और यमन में समलैंगिकों को तब तक पत्थर मारा जाता है जब तक कि उनकी मौत न हो जाए। मतीन की तरह ही कई मुस्लिम समलैंगिकों की हत्या करते हैं। 22 मई को एक ट्रांसजेंडर आयशा की पेशावर में हत्या कर दी गई थी। दिसंबर 2013 में पाक टेलीविजन की रिपोर्टर उज्मा ताहिर ने आधी रात के बाद समलैंगिक समुदाय के सदस्यों के घरों पर छापा मारा। ताहिर ने कहा कि अल्लाह न करे, लेकिन यदि ऐसे बच्चे आपके परिवार में पैदा होते हैं तो आप क्या करेंगे? उसके प्रोग्राम में पाक के एक तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी ने उमर मतीन की तरह ही अपने विचार रखे और ट्रांसजेंडरों के घरों पर चढ़ाई करने के लिए उज्मा ताहिर को बधाई दी। 1(लेखक वाशिंगटन स्थित मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट में निदेशक हैं)(DJ)

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