Friday 29 July 2016

आइएस का बढ़ता खतरा (प्रकाश सिंह)

आजकल आतंकी घटनाएं जिस निरंतरता से हो रही हैं वह हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए। यह मानकर चलना कि हमारे देश में युवाओं का कोई वर्ग ऐसा नहीं है जो इस्लामिक स्टेट यानी आइएस के जेहादी दर्शन की ओर आकर्षित हो रहा है, बहुत खतरनाक होगा। गृह मंत्रलय बार-बार कहता है कि इस्लामिक स्टेट की पैठ भारत में बहुत सीमित है। यह तथ्य भले अपनी जगह सही हो, लेकिन जैसा कि अमेरिका ने आतंकवाद पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट में लिखा है, भारत में जिस प्रकार आइएस का ऑनलाइन प्रचार चल रहा है, उससे उसे बहुत खतरा है। हाल में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिनसे ऐसा लगने लगा है कि आइएस के आतंकी भारत की सीमाओं पर न केवल दस्तक दे रहे हैं, बल्कि घुसपैठ भी कर चुके हैं। ढाका के एक रेस्त्रं में आतंकी हमले ने बताया कि बांग्लादेश की पुलिस ऐसी घटना से निपटने के लिए तैयार नहीं थी। वहां जब फौज को भेजा गया तब जाकर स्थिति नियंत्रण में आई। इस घटना के बाद आतंकियों ने ढाका के निकट ईद के दिन फिर हमला किया, जिसमें दो पुलिस कर्मी समेत तीन लोग मारे गए और करीब एक दर्जन घायल हुए। ढाका में जिन आतंकियों की पहचान हुई उनमें तीन समृद्ध एवं पढ़े-लिखे परिवारों से हैं। पुरानी सोच यह थी कि आतंकी गरीब घरों से ही आते हैं। भारत में जिस तरह इंटरनेट और मोबाइल फोन का प्रसार बढ़ रहा है, पढ़े-लिखे युवाओं का आतंकवाद की तरफ आकर्षित होना देश की सुरक्षा-व्यवस्था के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
अभी हाल में नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी-एनआइए ने हैदराबाद में आइएस के एक मॉड्यूल के 11 युवाओं को गिरफ्तार किया। कहा जाता है कि ये युवा चारमीनार के निकट भाग्यलक्ष्मी मंदिर में गोमांस रखकर सांप्रदायिक दंगा कराना चाहते थे। विशिष्ट व्यक्तियों पर हमला करने की भी उनकी योजना थी। इसके बाद यह खबर आई कि केरल के एक दर्जन से ज्यादा युवा लापता हैं और अंदेशा है कि वे आइएस से जा मिले हैं। आइएस ने पिछले वर्ष अपने घोषणापत्र में लिखा था कि उसे भारत तक अपने युद्धक्षेत्र का विस्तार करना है। आइएस के अतिरिक्त अलकायदा ने भी खुलेआम कह रखा है कि भारत में उसे जेहाद का झंडा लहराना है। हाल में उसके नेतृत्व ने मुसलमानों को लोन वुल्फ की तरह जगह-जगह हमला करने का आह्वान किया है। उसने प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों पर भी हमले करने के निर्देश दिए हैं। लश्कर सरगना हाफिज सईद भी समय-समय पर भारत विरोधी जहर उगलता रहता है। उसके लड़ाके जब तब कश्मीर में आतंकी घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं।
कुल मिलाकर एक भयावह परिदृश्य बन रहा है। 1यदि हमारी आंतरिक सुरक्षा सदृढ़ होती तो हमें चिंता करने का कोई कारण नहीं था। हम किसी भी स्थिति से निपट लेते, परंतु दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है। आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था न केवल लचर है, बल्कि उसको सुदृढ़ बनाने की दिशा में उदासीनता भी है। इसके लिए राज्य सरकारें तो जिम्मेदार हैं ही, केंद्र सरकार भी दोषी है। 26/11 के बाद आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए गए थे। जैसे नेशनल सिक्योरिटी गार्ड का विकेंद्रीकरण, आतंकवाद निरोधक प्रशिक्षण देने वाले केंद्रों की स्थापना, एनआइए का गठन और तटीय सुरक्षा योजना तैयार करना। धीरे-धीरे आंतरिक सुरक्षा के सुदृढ़ीकरण का दौर थम-सा गया। नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर की योजना तो लगता है दफना ही दी गई। पुलिस सुधार भी ठंडे बस्ते में पड़ा हुए हैं और नेटग्रिड की योजना भी मंथर गति से आगे बढ़ रही है। क्या हम आतंकवाद के बढ़ते हुए खतरे और विशेष तौर से आइएस की चुनौती स्वीकार करने के लिए तैयार हैं? इस सवाल का जवाब हां में देना बड़ा मुश्किल है। जाकिर नाइक प्रकरण से जो तथ्य उभरकर आ रहे हैं उनसे ऐसा प्रतीत होता है कि हम अपने बीच जहरीले सांपों को पाल रहे हैं। सरकार को ऐसे तत्वों की जानकारी रहती है, परंतु जब पानी सिर से ऊपर आ जाता है तभी वह उनके विरुद्ध कार्रवाई की बात करती है।
भारत सरकार ने कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। विदेश नीति के क्षेत्र में खासतौर से देश का मान-सम्मान बढ़ाया है। सेना, नौसेना और वायुसेना सभी को आधुनिक हथियारों से लैस किया जा रहा है। आर्थिक क्षेत्र में भी प्रगति हो रही है। विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, दोनों ने हमारी आर्थिक नीतियों को सराहा है, परंतु दुर्भाग्य से आंतरिक सुरक्षा का ढांचा आज भी जर्जर है और उसे सुधारने के लिए जो कदम आवश्यक हैं वे नहीं उठाए जा रहे हैं। हम बालू के ढेर पर एक सुंदर महल सा खड़ा कर रहे हैं। बेहतर शांति व्यवस्था किसी भी देश की आर्थिक प्रगति का आधार बनती है। हमारा आर्थिक ताना-बाना तो सुंदर हो रहा है, परंतु उसकी नींव बड़ी कमजोर है। यदि हम अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी दस्तावेज पढ़ें तो उसमें साफ लिखा मिलता है कि सुदृढ़ आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था देश की प्रगति और विदेशों में सफलता का आधार है। यह सबक हमारे नेता दुर्भाग्य से अभी तक नहीं सीख पाए हैं। पुलिस व्यवस्था से उनके राजनीतिक लक्ष्यों की सिद्धि होती रहे, यह उनके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। बजाय इसके कि एक सशक्त पुलिस बनाकर देश को स्थायी रूप से सही दिशा दी जाए। आतंकवाद के थपेड़ों से हमारी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था ध्वस्त हो सकती है। केंद्र एवं राज्य सरकारें यह जितनी जल्दी समझ लें, उनके लिए हितकर होगा, अन्यथा देश की जनता को बड़ी भारी कीमत चुकानी होगी।1(उप्र एवं असम पुलिस के प्रमुख और बीएसएफ के महानिदेशक रहे लेखक सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं)(DJ)

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