Friday 29 July 2016

परमाणु बिजली का बढ़ता दायरा (अमृतेश श्रीवास्तव)

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय , भारत सरकार, तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व ए ई आर बी के दिशा निर्देशों और विभिन्न प्रकार के मानदंडों पर खरा उतरने के बाद, 10 जुलाई 2016 की शाम 8 बजकर 56 मिनट एक ऐसे ऐतिहसिक पल का गवाह बना, जिस पल के इंतजार में हम भारतीय काफी समय से पलक बिछाए तैयार खड़ी थी। आखिर वो घड़ी आ गयी जिसका हर किसी को बेसब्री से इंतेजार था। मौका था भारत के विशालतम कुडनकुलम परमाणु बिजली घर की दूसरी इकाई के प्रथम बार क्रिटिकल होने का..(एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें पहली बार परमाणु बिजली घर में न्यूक्लियर फिजन की चेन रिएक्शन शुरू होती है..) जी हां ये वही अदभुत पल था जिस पर संपूर्ण विश्व की भी निगाहें लगी हुई थी। भारत के मित्र राष्ट्र रूस के सौजन्य से निर्मित 1000 मेगावाट की दूसरी इकाई को विभिन्न प्रकार के जांचों से गुजरने के बाद क्रिटिकल किया गया..। इस ऐतिहासिक मौके पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परियोजना से जुड़े अभियंताओं और वैज्ञानिकों के साथ-साथ रशियन अधिकारियों को भी अपनी शुभकामनायें भेजीं, जिनके अनवरत प्रयासों से ये मुमकिन हो सका। हाल में ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों के बीच प्रगाढ़ संबंधों और परमाणु एवं अन्य मुद्दों से जुड़े कई महत्वपूर्ण मसलों पर बनते नये समीकरणों के बीच कुडनकुलम परमाणु बिजली घर की दूसरी इकाई के क्रिटिकल होने से एक नयी ऊर्जा का संचार हुआ है।
एईआरबी द्वारा विभिन्न प्रकार के मानदंडों पर खरा उतरने के पश्चात, दक्षिणी ग्रिड से जोड़ कर इसकी क्षमता को चरणबद्ध तरीके से धीरे-धीरे 50, 75, 90 और 100 प्रतिशत बढ़ाकर 1000 मेगावाट कर दिया जाएगा और लगभग 4 से 6 महीने के भीतर इसका व्यावसायिक परिचालन शुरू हो जाएगा। कुडनकुलम परमाणु बिजली घर की दूसरी इकाई के शुरू हो जाने के साथ ही भारत में परमाणु बिजली घरों की संख्या बढ़कर 22 हो गयी है और कुल उत्पादन भी 5780 मेगावाट से बढ़कर शीघ्र ही 6780 मेगावाट तक पहुंच जाएगा और आगामी वर्ष 2023 तक 13000 मेगावाट विद्युत उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। भारत में बढ़ती बिजली समस्या के चलते कुडनकुलम परमाणु बिजली घर की दूसरी इकाई का भी बन के तैयार हो जाना और जल्द ही बिजली उत्पादन में योगदान देना, कई मायनों में उभरते भारत के लिए एक नयी जगमगाहट की तरह है। रूस के सहयोग से निर्मित ये भारत का यह दूसरा लाइट वॉटर रिएक्टर होगा जिस से बिजली का निर्माण किया जाएगा। सुरक्षा की दृष्टि से बेहतरीन व बेमिसाल खूबियों से युक्त जेनरेशन - 3 प्लस के इस रिएक्टर की संरक्षा संबंधी कई खूबियां इसे अपने तरीके का एक सर्वश्रेष्ठ रिएक्टर बनाती हैं। इस विश्व स्तरीय रिएक्टर में हाइड्रोजन री-कॉंबाइनर्स, कोर केचर, पैसीव हीट रिमूवल सिस्टम, हाइड्रो एक्यूमुल एटर्स इत्यादि ऐसे कई खूबियां हैं, जो इसे जनता और पर्यावरण दोनो को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करने में मददगार साबित होंगे। अगले कुछ समय के दौरान लगभग 39500 करोड़ के लागत से 1000 मेगावाट की क्षमता वाली तीसरी और चौथी इकाइयों में भी निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा जिससे आने वाले वर्षो में यादा से यादा बिजली का निर्माण किया जा सकेगा और बड़े पैमाने पर दक्षिण समेत देश के कई रायों को बिजली मिल सकेगी और लोगों को इसका फायदा मिलेगा। विदित हो कि अभी 4 रुपये की दर से, 1000 मेगावाट बिजली में से 562.5 मेगावाट बिजली तमिलनाडु राज्य के लिए, 221 मेगावाट बिजली कर्नाटक के लिए, 50 मेगावाट बिजली आंध्र प्रदेश के लिए, 133 मेगावाट बिजली केरल और 33.5 मेगावाट बिजली पुडुचेरी के लिए सुनिश्चित की जा रही है। एक तरफ जहां भारत में विभिन्न ऊर्जा के स्नोतों से बिजली का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है, जिसमें लगभग 68 प्रतिशत बिजली थर्मल से, 15 प्रतिशत हाइड्रो से, 14 प्रतिशत अन्य स्नोतों से जिनमें (बायो मास, सोलर और विंड प्रमुख हैं) वहीं परमाणु ऊर्जा से महज 3 प्रतिशत ही बिजली का उत्पादन होता है। आज संपूर्ण विश्व में थर्मल पावर से निर्मित बिजली ग्लोबल वॉरमिंग और वातावरण में उत्सर्जित होने वाली कई हानिकारक गैसों के चलते एक गहन चिंता का विषय बनी हुई है, जबकि वहीं दूसरी तरफ परमाणु ऊर्जा एक स्वछ और हरित ऊर्जा का किफायती विकल्प साबित हो रही है। अगर आज हम संपूर्ण विश्व की बात करें तो फ्रांस जैसे देश में परमाणु ऊर्जा से लगभग 74 प्रतिशत बिजली का निर्माण किया जाता है। न केवल फ्रांस बल्कि बेल्जियम, स्वीडेन, हंगरी, जर्मनी, स्विट्जरलैंड,अमेरिका, रूस, इत्यादि कई ऐसे विकसित देश हैं जहां पर लगभग 20-50 प्रतिशत बिजली परमाणु ऊर्जा से ही निर्मित होती है और आज इन देशों की संपन्नता और समृद्धि किसी से छिपी नही है। इसके विपरीत हमारे देश में वर्तमान में जहां एक ओर कुल 3 लाख मेगावाट बिजली का ही उत्पादन हो रहा है जिसमें से महज 5780 मेगावाट ही न्यूक्लियर पावर से बनाई जाती है, ऐसे में जरा सोचिए कि परमाणु ऊर्जा में अभी कितनी क्षमता है? कोयले के भंडार सीमित हैं, हाइड्रो को हमने पूरी तरह से लगभग दोहन कर लिया है, और सोलर और विंड की उत्पादन क्षमता, यादा जगह, धूप और हवा के प्रवाह की समुचित उपलब्धता पर निर्भर होने के साथ-साथ कम किफायती और अल्प विकसित तकनीक पर आधारित हैं। इससे ये साफ दिखाई देता है की परमाणु ऊर्जा से बिजली निर्माण की संभावना को हम कतई नकार नहीं सकते। आज हंिदूुस्तान में सभी परमाणु बिजली घर सुरक्षित प्रचालन के गौरव के साथ पिछले 47 वर्षो से अनवरत कार्यशील हैं, और जिनसे लगभग 5780 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। आज तक हमारे देश में कोई ऐसी दुर्घटना नहीं हुई है, जिसमें लोगों को रेडीयेशन की निर्धारित मात्र से यादा डोज लगी हो। यहां तक की भुज में आए भूकंप और तमिलनाडु में सुनामी के आने के बावजूद हमारे देश के परमाणु बिजली घर सुरक्षित रहे, जो इस बात का सबूत है की विषम से विषम परिस्थितियों में भी परमाणु बिजली घर सुरक्षा की दृष्टिकोण से सर्वश्रेष्ठ हैं। विश्व के तमाम विकसित राष्ट्रों ने इसे खुले दिल से अपनाया है और आज वो किस मुकाम पर हैं शायद ये बताने की मुङो आवश्यकता नही है। मगर उसके लिए हमें इसकी बारीकियों को समझना होगा और इसके विरोध में लगे लोगों को समझाना होगा कि अगर हम त्रि-चरणीय परमाणु कार्यक्रम को क्रमवार तरीके से लागू कर पाने में सफल रहे और देश में प्रचुर मात्र में मौजूद थॉरियम से बिजली बनाने की तकनीक को विकसित कर, सही तरह से उपयोग में ला सके तो शायद आने वाली कई पीढ़ियों को सैकड़ों साल तक बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी।
इस सफलता को विज्ञान के क्षेत्र में भारत की बढ़ती ताकत के रूप में भी देखा जाना चाहिए। विकास पथ पर अग्रसर भारत के लिए बिजली की बहुत जरूरत है। ऐसे में कुडनकुलम परमाणु विद्युत संयंत्र -2 की सफलता हमारी विद्युत जरूरतों को पूरा करने की दिशा में बहुत ही अहम पड़ाव है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)(DJ)

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