Monday 4 July 2016

शहरों को सिंगापुर बनाने की परिकल्पना (आरके सिन्हा)

अगर हम अपने ही देश में 100 सिंगापुर विकसित कर लें तो कैसा रहे। क्यों यह मुमकिन है? हां, परंतु, इसके लिये यह भी जरूरी है कि हम अब कमर कस लें। शुरूआत तो हो ही चुकी है। दरअसल देश में 100 स्मार्ट सिटीज का निर्माण करने की तैयारियां चालू हो गईं हैं। पहले हम अपने सपने छोटे रखते हैं। यानी 100 शहर ही सिंगापुर जैसे बना लेते हैं। बाद में सारे भारत को भी सिंगापुर की तर्ज पर विकसित करने के संबंध में भी सोच लिया जायेगा। 55 लाख की आबादी वाला यह शहर या देश, आप जो भी चाहे कहें, इस वक्त सारी दुनिया में बेजोड़ है। कौन-सा होता है, बेजोड़ शहर? दरअसल बेहतर शहर होने के दो मापदंड माने जाते हैं। पहला, उस शहर में इनफ्रास्ट्रक्चर किस स्तर का है। दूसरा, वहां पर रोजगार के अवसर कितने उपलब्ध है? इन दोनों ही मोर्चो पर सिंगापुर 100 फीसद अंक लेता है। तो आखिरकार यह हम क्यों नहीं कर सकते?
भारत में भी ‘मेक योर सिटी स्मार्ट’ योजना चालू की गई है। इसका मकसद सड़कों, जंक्शन और पार्को की डिजाइन तय करने में नागरिकों को शामिल करना है। केंद्र में मोदी सरकार के सत्तासीन होने का बाद शहरों के कायाकल्प करने के बारे में सोचा गया। इस लिहाज से 100 शहरों का चयन हुआ। इनमें विश्वस्तरीय यातायात व्यवस्था, 24 घंटे बिजली-पानी की आपूर्ति, सरकारी कामों के लिए एकल खिड़की व्यवस्था, एक जगह से दूसरे जगह तक 45 मिनट में जाने की व्यवस्था, बेहतर शिक्षा, सुरक्षा, पर्यावरण और मनोरंजन की सुविधा का उपलब्ध रहने का मानदंड बनाया गया है।
आपको याद होगा कि स्मार्ट सिटी बनाने के लिए सबसे पहले मोदी सरकार के पहले बजट में घोषणा की गई थी। बजट में 7060 करोड़ रुपये की राशि भी आवंटित की गयी थी। लेकिन, 100 शहरों को सिंगापुर बनाने के सपने को साकार करने के लिये हमें भी सुधरना होगा। क्या हम अपनी नदियों में कूड़ा-करकट नहीं डालेंगे? सिंगापुर शहर से गुजरने वाली नदी सिंगपुरा नदी में गंदगी फैलाने वाले पर 15 हजार डॉलर का जुर्माना लगता है। क्या हम भी इस तरह के कठोर दंड की व्यवस्था करनी चाहिए? सिंगापुर शहर में बहने वाली नदी की सफाई में सरकार को दस साल लगे। अब वहां के पानी को आप पी सकते हैं। उसके आसपास सैकड़ों रेस्तरां खोले गये हैं। वहां पर बैठकर पर्यटक मजा करते हैं। वहां का मंजर अद्भुत होता है। यही पर्यटक सिंगापुर को मोटी विदेशी मुद्रा कमा कर देते हैं जिस पर सिंगापुर की पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था ही टिकी हुई है।
लेकिन, हमने अपनी नदियों का क्या हाल किया हुआ है? पता नहीं कब से विजय दशमी, गणोशोत्सव एवं काली पूजा के समय हजारों-लाखों प्रतिमाएं नदियों व समुद्र में विसर्जित की जाती रही है। देखिए, दोनों बातें तो एक साथ नहीं चल सकती। एक तरफ हम नदियों को साफ करने का संकल्प लें, दूसरी ओर इन्हें किसी न किसी बहाने भिन्न-भिन्न तरीकों से गंदा करते रहें। एक बात समझ लेनी चाहिए कि नदियों को साफ करना सिर्फ सरकारों का ही दायित्व नहीं हो सकता।
मैं मानता हूं कि जहां से गंगा और दूसरी नदियां गुजरती हैं, वहां पर पर्यटन और मनोरंजन उद्योग को भी बढ़ावा दिया जाए। लंदन में टेम्स नदी और काहिरा में नाइल नदी के आसपास और टापू देश सिंगापुर में सिंगपुरा नदी के तट पर सुंदर पर्यटन स्थल विकसित किए गए हैं। यह सब हम क्यों नहीं कर सकते?
यह सही है कि स्मार्ट सिटिज में शानदार सड़कें, शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं, साइबर-कनेक्टिवीटी और ई-गवर्नेंस की सुविधाएं, हाइटेक ट्रांसपोर्ट नेटवर्क के साथ-साथ कचरा निबटान का 100 फीसदी इंतजाम की व्यवस्था होगी। पर, क्या कोई शहर इन्हीं सुविधाओं के दम पर स्मार्ट सिटी होने का दावा कर सकता है? बेहतर होगा कि इन शहरों में उन लाखों लोगों के लिए भी जगह हो जो कम दामों में अपनी छत का सपना देख रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि देश के हाऊसिंग सेक्टर में अभी सस्ते घर बनाने की तरफ ठोस पहल नहीं हो रही है। हां, बातें जरूर हो रही हैं। केंद्र और राय सरकारों को सिंगापुर की तर्ज पर हाऊसिंग क्षेत्र पर खास फोकस देना होगा। हाऊसिंग सेक्टर में फैली अव्यवस्थाओं को दूर करने के साथ ये भी सुनिश्चित करना होगा कि स्मार्ट सिटी बसें, सस्ते घर भी बनें।
बेशक, व्यक्ति चाहे समाज के जिस समूह-वर्ग में पैदा हुआ हो, घर और शिक्षा हासिल करने के लिए कम से कम उसे अवसर दिया जाना, उसका मौलिक अधिकार है। बाकी चीजें उसके कौशल, उसके श्रम, उसकी दृढ़ता और कुछ हद तक उसकी नियति पर भी पर निर्भर करती हैं। एक आश्रय के रूप में एक सामान्य फ्लैट उसके लिए जरूरी है। सिंगापुर में लगभग 95 फीसद लोगों के अपने घर हैं। सरकार लोगों को घर उपलब्ध करवाने में सक्रिय सहयोग करती है। सस्ते लोन भी दिलवाती है।
कहने की जरूरत नहीं है कि हमारे यहां सस्ते घर को गति देने के लिए जितनी गंभीरता दिखाई जानी चाहिए थी, उसका घोर अभाव ही दिखा है। सरकार को हाऊसिंग सेक्टर में सस्ते घर की उपलब्धता पर विशेष ध्यान देना होगा। दुर्भाग्यवश उस इंसान के लिए जगह सिकुड़ती ही जा रही है,जिसकी आर्थिक हालत पतली है और जिसकी सबसे यादा जरुरत है। बेहतर तो यह होगा कि सरकार सभी स्मार्ट शहरों में वन बैड रूम वाले घरों का निर्माण करने वाली रीयल एस्टेट कंपनियों को सस्ती दरों पर जमीन उपलब्ध कराए। ताजा हालात यह है कि रीयल एस्टेट कंपनियों को ही इतनी महंगी जमीन मिल पाती है कि वे चाहकर भी सस्ते घर बेचने की हालत में नहीं रह पाती। यह बात बिल्कुल सही भी है क्योंकि, रीयल एस्टेट कंपनियों को सार्वजनिक बोली में महंगे दामों पर जमीन लेनी पड़ती है। बोली में पान मसाला बेचने वाले भी आ जातेहैं। सरकार को इस तरफ भी देखना-सोचना होगा।
स्मार्ट शहरों की बात करते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की अनदेखी नहीं ंकी जा सकती। अगर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की ही बात करें तो एक बात साफ है कि यहां से पचास किलोमीटर दूर भी घर लेने के लिए लोग तैयार नहीं होते। वजह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। बेहतर यातायात की सुविधा न होने के चलते लोग शहरों और महानगरों का रुख करते हैं। सिंगापुर में मुङो बताया गया कि उधर धनी-संपन्न लोग भी सार्वजनिक बसों का उपयोग करते हैं। वजह ये है कि बसें पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं। अछी आरामदायक वातानुकूलित बसें, सुबह साढ़े सात बजे से पहले दफ्तर जाने वालों से मेट्रो में किराया भी नहीं लिया जाता।
स्मार्ट शहरों का निर्माण करते वक्त महान आर्किटेक्ट लॉरी बेकर को नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने भारत में सस्ते घर बनाने की तकनीक दी। यूं तो वे मूलत: ब्रिटिश थे पर उन्होंने भारत को ही अपना कर्म क्षेत्र बना लिया था। वे करीब आधी शताब्दी से भी अधिक वक्त तक केरल में रहकर सस्ते घरों और दूसरी इमारतों की तकनीक को लोकप्रिय करने के अपने जीवन के मिशन पर जुझारू प्रतिबद्धता के साथ जुड़े रहे। बेकर ने हाऊसिंग सेक्टर को नई व्याकरण दी। वे मानते थे कि स्थानीय पर्यावरण के मुताबिक ही घर बनें। क्या स्मार्ट सिटीज का निर्माण करने से जुड़े लोग बेकर के काम से वाकिफ है? उनके डिजाइन किए घरों में लागत तो बहुत कम आती है, पर उपयोगिता के लिहाज से वे गजब के होते हैं। बेकर के डिजाइन से बने घरों की एक बड़ी विशेषता यह होती है कि सब घरों में सूर्य की रौशनी और ताजा हवा के झोंकें आते रहते हैं। उनका इस बात पर खास फोकस रहता था कि उनकी इमारतों में सनलाइट खूब आए। बिल्डिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट रुडकी ने भी इस क्षेत्र में बड़ा काम किया है। उस पर भी ध्यान देना चाहिए।
अब जब कि बेहद महत्वाकांक्षी योजना स्मार्ट सिटीज पर काम चालू हो गया है तो कायदे से नए सिरे से विकसित कि जाने वाले शहरों में सस्ते घरों को बनाने पर खास फोकस रखने की जरूरत है। चूंकि दुनिया उम्मीद पर कायम है तो माना जाना चाहिए कि आने वाले वर्षो में हमारे देश में भी 100 शहर सिंगापुर की तर्ज पर विकसित हो जायेंगे और प्रतिवर्ष करोड़ों कि संख्या में पर्यटकों का आगमन भारत को भी सिंगापुर की तरह आर्थिक रूप से मजबूत करेगा।
(लेखक रायसभा सदस्य हैं)(DJ)

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