Friday 8 July 2016

संभावनाएं सौर ऊर्जा क्षेत्र में (उमेश चतुर्वेदी)

मौजूदा सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान एक डिग्री सेल्सियस से यादा न बढ़ने देने के लिए प्रतिबद्ध दुनिया के लिए निश्चित तौर पर सबसे यादा जरूरी नवीकरण ऊर्जा पर जोर देना है। लेकिन हकीकत यही है कि अब भी दुनिया में सबसे यादा बिजली तापीय तरीके से ही उत्पादित की जा रही है। हालांकि दुनिया के विकसित देशों के साथ ही विश्व बैंक भी अब दुनिया के तमाम देशों में नवीकरण ऊर्जा को बढ़ावा देने पर जोर दे रहा है। यही वजह है कि विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम की हालिया भारत यात्र और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात को खासा महत्व दिया जा रहा है। वैसे किम की यात्र से पहले विश्व बैंक ने खुद ही कहा था कि उसके प्रमुख की यात्र का मकसद भारत की नवीकरणीय ऊर्जा और पोषण के संबंध में सरकारी परियोजनाओं की समीक्षा करना तो है ही, उन्हें समझना भी है।
प्रधानमंत्री मोदी से किम की मुलाकात का पूरा ब्यौरा तो सामने नहीं आया है। अलबत्ता दोनों तरफ से जारी विज्ञप्ति और ट्वीट से मुलाकात की तस्वीर जरूर साफ हुई है। जिसके मुताबिक विश्व बैंक प्रमुख मोदी के आर्थिक सुधार कार्यक्रमों से बेहद प्रभावित बताए जा रहे हैं। विश्व बैंक प्रमुख किम की तरफ से जारी बयान के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से वृद्धि दर्ज करने वाली अर्थव्यवस्था है और यहां विश्व की करीब 26 फीसद बेहद गरीब आबादी है। विश्व बैंक प्रमुख के मुताबिक भारत में गरीबी घटाने और 2030 तक अत्यधिक गरीबी खत्म करने में विश्व की मदद करने की अपार संभावना है। विश्व बैंक प्रमुख की उम्मीदों का यह उफान ही है कि उन्होंने अपनी यात्र से पहले कहा था कि वे यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि विश्व बैंक कैसे मोदी सरकार की प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने एवं आर्थिक सहयोग में मदद कर सकता है।
वैसे दुनिया की जानी-मानी हस्तियां जिस तरह मोदी सरकार के सुधार कार्यक्रमों और विदेश नीति की प्रशंसा कर रही हैं, उसमें विश्व बैंक प्रमुख का शामिल होना मोदी सरकार की कामयाबियों के विस्तार की ही एक कड़ी है। चूंकि मौजूदा आर्थिक व्यवस्था में विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ही नव आर्थिक विस्तार के सहयोगी बन गए हैं, इसलिए कम से कम हर विकासशील देश उनसे सहयोग की उम्मीद में उनकी बाट जोहता रहता है। भारत बेशक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। लेकिन अब भी अपनी गरीब आबादी के चलते वह विकासशील की ही श्रेणी में माना जा रहा है। जाहिर है कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए भारत को भी तमाम तरह के आर्थिक सहयोग की जरूरत है। चूंकि मोदी सरकार के सुधार कार्यक्रमों से विश्व बैंक प्रमुख किम खुश हैं, लिहाजा उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही वे भारत में बाल पोषण और नवीकरण ऊर्जा को लेकर अपनी तरफ से कोई पहल जरूर करेंगे।
विश्व बैंक प्रमुख से सहयोग की उम्मीद के बीच हमें भारत की बिजली जरूरत और उसमें नवीकरण ऊर्जा की हिस्सेदारी पर ध्यान देना जरूरी है। भारत में इस समय करीब एक लाख 70 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। उसमें करीब साठ प्रतिशत बिजली तापीय तरीके से बनाई जा रही है। वैसे देश में अब भी करीब दो लाख मेगावाट बिजली की जरूरत है। बहरहाल मौजूदा एक लाख 71 हजार मेगावाट बिजली में सौर और पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी केवल 29 हजार मेगावॉट की है। इसमें भी पवन ऊर्जा करीब 24 हजार मेगावॉट है, जबकि सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी सिर्फ 5 हजार मेगावॉट ही है। मोदी सरकार ने शपथ लेते ही 2022 तक सौर और पवन ऊर्जा को मिलाकर एक लाख 75 हजार मेगावॉट बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा था। चूंकि प्रधानमंत्री मोदी ने 2022 तक देश के हर गांव-हर घर को चौबीस घंटे बिजली देने का वादा किया है। एक अनुमान के मुताबिक इस वादा को पूरा करने के लिए करीब पौने दो लाख मेगावाट अतिरिक्त बिजली की जरूरत होगी। जिसे सौर और पवन ऊर्जा से ही हासिल किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। इसका मतलब यह है कि भारत को करीब छह साल में करीब सवा छह गुना की छलांग लगानी है। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार ने पौने दो लाख मेगावॉट में से एक लाख मेगावॉट सौर ऊर्जा से हासिल करने के लक्ष्य रखा है। चूंकि सौर ऊर्जा उत्पादन की तकनीक अभी महंगी है, लिहाजा पचीस गुना ऊंची इस छलांग को लगाने के लिए भारी मात्र में निवेश और आर्थिक मदद की जरूरत होगी। विश्व बैंक प्रमुख की भारत यात्र और मोदी सरकार को लेकर उनकी सोच को इन संदर्भों में देखते हैं तो किम की यात्र की अहमियत ठीक से समझ आती है।
नरेंद्र मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते जिस तरह सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने की कामयाब कोशिश की, उससे यह उम्मीद बढ़ती है कि भारत सरकार नवीकरण ऊर्जा उत्पादित करने का अपना निर्धारित लक्ष्य कमोबेश हासिल कर सकेगी, बशतेर्ं कि उसे जरूरी सहूलियतें हासिल हो सकें। घरेलू मोर्चे पर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सरकार पहले से ही कई योजनाएं शुरू कर चुकी है। इसी कड़ी में स्थापित जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन की तरफ से सौर ऊर्जा पीवी प्रणाली तथा विद्युत संयंत्रों की स्थापना के लिए 30 प्रतिशत तक पूंजीगत सब्सिडी दी जा रही है। इसके तहत विशेष श्रेणी के रायों मसलन पूवरेत्तर भारत के सात रायों और सिक्किम, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्त राखंड, लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार द्वीप के लिए नवीकरण ऊर्जा मंत्रलय की तरफ से सरकारी संगठनों को 90 प्रतिशत तक पूंजीगत सब्सिडी दी जा रही है। सौर ऊर्जा की तरफ मोदी के झुकाव को इस बात से ही समझा जा सकता है कि उन्होंने 2015 में हुए पेरिस जलवायु सम्मेलन में सौर ऊर्जा उत्पादन करने वाले देशों के लिए भारत के नेतृत्व में सूर्य पुत्र नाम दिया और उनके सहयोग से इंटरनेशनल एजेंसी फॉर सोलर टेक्नोलॉजीज़ एंड एप्लीकेशन्स की घोषणा की, जिसके सदस्य देशों की संख्या 100 है।
भारत में जैसे-जैसे विद्युतीकरण और विकास गतिविधियां तेज हो रही हैं, वैसे-वैसे बिजली की खपत भी बढ़ती जा रही है। इतनी बड़ी खपत के लिए जाहिर है कि बिजली की भी जरूरत लगातार बढ़ रही है। विश्व बैंक इस जरूरत को पूरा करने में मददगार हो सकता है। किम से मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मोदी के ट्वीट को देखा जाना चाहिए। इसमें उन्होंने कहा कि विश्व बैंक प्रमुख ने उन्हें आश्वस्त किया है कि विश्व बैंक भारत के जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर कामों और योजनाओं को सक्रिय और पूर्ण समर्थन देने का भरोसा दिया है। यहां यह बता देना जरूरी है कि मोदी की महत्वाकांक्षी योजना स्मार्ट सिटी, गंगा कायाकल्प, कौशल विकास और स्वछ भारत अभियान को विश्वबैंक पहले से ही खासा सहयोग दे रहा है। ऐसे में नवीकरण ऊर्जा की संस्थापना में विश्व बैंक अगर सहयोग करने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा रहा है तो इसका स्वागत किया ही जाना चाहिए। निश्चित तौर पर इसका फायदा आगे जाकर देश के अंधेरे कोनों में पर्यावरण अनुकूल बिजली की रौशनी फैलाने के रूप में सामने आएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)(DJ)

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