Monday 4 July 2016

कैसे भी रहे हों हाल भारतीय सेना ने कायम की मिसाल (आदिति फडणीस)

पिछले महीने पाकिस्तान के जियो टीवी को दिए साक्षात्कार में पाकिस्तान की पूर्व विदेश मंत्री हीना रब्बानी खार ने कहा कि भारत के साथ पाकिस्तान की समस्याएं युद्घ के जरिये नहीं सुलझाई जा सकतीं। वर्ष 2011 से 2013 के दरमियान पाकिस्तान की विदेश मंत्री रहीं खार ने कहा, 'मेरा मानना है कि पाकिस्तान युद्घ के जरिये कश्मीर को हासिल नहीं कर सकता और अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो केवल बातचीत का विकल्प ही शेष रह जाता है और बातचीत केवल उसी साझेदार के साथ हो सकती है, जिससे हमारे संबंध सहज हों और उनमें परस्पर विश्वास का भाव हो।'

उनकी हैसियत केवल पूर्व विदेश मंत्री की है तो स्वाभाविक है कि उनकी बातों का शायद ही कोई मोल हो। इस बीच कश्मीर में दो फिदायीन हमले हुए। इनमें एक तो श्रीनगर में पुलिस स्टेशन के काफी नजदीक हुआ, जो शहर में तीन सालों में पहली बार हुआ कोई हमला था। दूसरा पंपोर में हुआ, जिसमें सीआरपीएफ के आठ जवान शहीद हो गए। इन हमलों को देखते हुए तो नहीं लगता कि कश्मीर में किसी भी लिहाज से लड़ाई थम गई है।
एक हालिया खुफिया समीक्षा के अनुसार अभी तक 73 आतंकियों को निपटा दिया गया है, जबकि पिछले साल इसी अवधि में 34 आतंकी भेंट चढ़े थे। गृह मंत्री राजनाथ सिंह और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर शहादतों और भारत की एक-एक इंच जमीन को लेकर बड़ी-बड़ी बातें भी कर चुके हैं। ये बातें हमें कहां ले जाती हैं...क्या दे जाती हैं?
भारतीय सेना और उसकी अदम्य इच्छाशक्ति तक।
कर्नल (सेवानिवृत्त) आर के जगोटा की हाल में आई किताब 'मेमोयर्स ऑफ ए सोल्जर' इस भावना का ताजा उदाहरण है। कर्नल जगोटा ने गोरखा राइफल्स रेजिमेंट में सेवाएं दी हैं और दोनों ने 2/5 बटालियन में इतिहास बनाया और साझा किया, जिनके नाम पर तीन विक्टोरिया क्रॉस मेडल दर्ज हैं, जो पूर्ववर्ती ब्रिटिश साम्राज्य के क्षेत्रों और राष्टï्रमंडल के सदस्यों में दुश्मन को मात देने के मामले में सर्वोच्च सैन्य पदक माना जाता था।
दुनिया भर में ऐसे केवल 1,358 विक्टोरिया क्रॉस ही मौजूद हैं। तीन में से दो तमगे जीवित सैनिकों को मिले और एक को मरणोपरांत मिला। इनमें कर्नल के के शर्मा का नाम भी शामिल है, जो भारतीय सेना में अब तक के सबसे ज्यादा तमगे पाने वाले सैनिक रहे, जिन्हें दो बार सेना पदक और असाधारण बहादुरी के लिए शौर्य चक्र भी मिल चुका है। उनका संबंध भी गोरखा राइफल्स से ही रहा।
सभी गोरखा यूनिटों का युद्घ घोष (वार क्राइ) नारा 'आयो गोरखाली' से दुनिया तब रूबरू हुई, जब कर्नल एम एन राय की चिता के पास बिलख रही उनकी 11 साल की बेटी अलका राय अपने आंसुओं को पोंछते हुए अपनी लड़कपन वाली आवाज में जोर से चिल्लाई, 'हो कि होई ना' जिसका मततब यही था कि कि क्या वह सबसे बहादुर थे? थे या नहीं? यूनिट (कर्नल राय 9 गोरखा राइफल्स के थे और उनकी शहादत 2014 में हुई, जब वह कश्मीर में तलाशी अभियान में जुटे थे और हिजबुल मुजाहिदीन के निशाने पर आ गए) का जवाब यही मिला-हो, हो, हो यानी हां वह सबसे बहादुर थे। कर्नल जगोटा ने 2/5 जीआर की रस्मों का जिक्र किया है और यह समझना मुश्किल नहीं कि आखिर वह कौनसा पहलू है जो सेना को जोड़कर रखता है। उनकी लिखावट में जरा भी बनावट या चालाकी नहीं है और उन्होंने दुश्मनों के साथ भारतीय सैनिकों की कुछ भीषण भिडं़तों का जीवंत चित्रण पेश किया है, जिन्हें पढ़कर आप दंग रह सकते हैं।
किताब में सबसे दिलचस्प दास्तान सिक्किम से जुड़ी हुई है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत का भाग बनने से पहले सिक्किम भारत का संरक्षित राज्य था और चोग्याल की सुरक्षा का जिम्मा सिक्किम गाड्र्स पर था। इसमें भारतीय सेना और सिक्किम के अधिकारी और सैनिक हुआ करते थे। खुद चोग्याल के पास मेजर जनरल की पदवी थी। हालांकि सेना की कुछ अन्य पलटनें भारत-सिक्किम सीमा से कुछ दूरी पर तैनात रहा करती थीं। वर्ष 1974 में भारतीय संघ में शामिल होने से साल भर पहले कर्नल जगोटा की तैनाती सिक्किम गाड्र्स में हुई और वह चोग्याल और लेप्चा-भूटिया जैसे अभिजात्य वर्गों के खिलाफ नेपाली क्रांति के प्रत्यक्षदर्शी बने। उससे कुछ किलोमीटर दूर ही भारतीय सेना की 16 जाट रेजिमेंट तैनात थी, जिसमें जगोटा के छोटे भाई हरीश जगोटा मौजूद थे। सिक्किम गार्ड का काम चोग्याल की सुरक्षा करना था, भले ही इसके लिए भारतीय सेना पर ही गोली क्यों न चलानी पड़े। वहीं अगर सिक्किम गाड्र्स की ओर से कोई खतरे का संकेत मिलता तो भारतीय सेना को भी उनसे निपटने का अधिकार मिला हुआ था। किताब के लोकार्पण के अवसर पर इस दुविधा को बयां करने में मेजर हरीश जगोटा की आंखों से आंसू छलक बैठे कि उनके सामने उनके पिता समान बड़े भाई थे, जिन पर उन्हें गोली चलानी पड़ती और उनके पीछे उनका दूसरा परिवार यानी भारतीय सेना थी। सौभाग्य से सेना मुख्यालय ने दखल दिया और आदेश दिया कि किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई न की जाए। सीनियर जगोटा लिखते हैं कि भारतीय सेना के इतिहास में ऐसे हालात फिर कभी नहीं बने।
कुल मिलाकर यह किताब यही बताती है कि नेता, आतंकी और टेलीविजन चैनलों की बातों से भारतीय सेना की भावनाएं प्रभावित नहीं होतीं और चाहे कश्मीर हो या देश का कोई और इलाका, चाहे युद्घ का माहौल हो या शांति की बात, वेतन आयोग हो या वेतन आयोग न हो, चीजों की किल्लत हो या नहीं भारतीय सेना हमेशा देश को एकजुट रखने के लिए मुस्तैद रहेगी। (Business Standard )

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