Friday 29 July 2016

अहम् है दक्षिणी चीन सागर का क्षेत्र (अरविंद जयतिलक)

दक्षिण चीन सागर पर हेग अदालत का फैसला आने के बाद जिस तरह चीन अपने आक्रामक रुख के जरिए फैसले को मानने से इंकार कर रहा है उससे दक्षिण चीन सागर में सैन्य तनाव का अंदेशा बढ़ गया है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने धमकी भरे अंदाज में कहा है उनका देश किसी भी सूरत में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले को स्वीकार नहीं करेगा। गौर करें तो चीन के इस पैंतरेबाजी को उसी समय भांप लिया गया जब उसने न्यायाधिकरण की सुनवाई में हिस्सा लेने से मना किया। चीन ने 1940 के जिस मानचित्र को पेश किया, जिसमें कि यू शेप पर नौ काल्पनिक लाइनें दिखायी गयी हैं और जिसके बरक्श वह 90 फीसदी इलाके पर अपना दावा जताता है, उसमें कोई दम नहीं था। इस तरह के नक्शे अन्य सागरीय देशों के पास भी हैं। इन सभी तथ्यों के आलोक में ही पांच सदस्यीय अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने सागर पर उसके दावे का खारिज किया और उसे दोषी ठहराते हुए यह भी कहा कि उसने इस इलाके में निर्माण करके नियमों का उलंघन किया है और फिलीपींस को समुद्र से तेल निकालने से रोका है। उल्लेखनीय है कि 2013 में ही फिलीपींस ने हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में चीन के दावे के खिलाफ मुकदमा किया और यह भी दावा किया कि स्पार्टलेज आइलैंड उसकी समुद्री सीमा में आते हैं लिहाजा इस क्षेत्र पर उसका अधिकार होना चाहिए। लेकिन चीन इसे मानने को तैयार नहीं था। अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में स्पष्ट कह दिया है कि उसे कोई ऐसा ऐतिहासिक तथ्य नहीं मिला है जो दक्षिण चीन सागर पर पहले कभी चीन के अधिकार को रेखांकित करता हो। फिलहाल न्यायाधिकरण का यह फैसला चीन के लिए बाध्यकारी है। इसलिए और भी कि चीन और फिलीपींस दोनों ही देश अन्य देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत गठित इस न्यायालय के जरिए विवाद सुलझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। लेकिन फैसले से नाराज चीन की बौखलाहट से टकराव बढ़ गया है। गौर करें तो दक्षिण चीन सागर प्रशांत महासागर का हिस्सा है जिसके 35 लाख वर्ग किलोमीटर के इलाके में कई छोटे-बड़े द्वीप हैं। यह दुनिया का सबसे व्यस्ततम समुद्री व्यापारिक मार्ग है और यहां भारत, अमेरिका तथा जापान समेत कई अन्य देशों के सामरिक व आर्थिक हित दांव पर हैं। चीन की मंशा खरबों रुपये मूल्य की वस्तुओं के इस व्यापारिक मार्ग पर अपना प्रभाव बढ़ाकर भारत, अमेरिका और जापान के हितों को प्रभावित करना है। इसी उद्देश्य से 2014 से अब तक इस क्षेत्र में वह सात कृत्रिम टापू बना चुका है। 2015 के सैटलाइट इमेज से पता चलता है वह वहां हवाई पट्टी भी बना चुका है। उसकी योजना समंदर के अंदर एक लैब बनाने की भी है। कहने को तो इस लैब का काम खनिजों का पता लगाना होगा लेकिन असल सचाई यह है कि वह इसके जरिए अपनी सैन्य ताकत को मजबूती देना चाहता है। इस समुद्री इलाके में अपना दावा मजबूत करने के लिए ही उसने यहां दो लाइटहाउस बनाए जिसका अमेरिका, फिलीपींस और भारत ने कड़ा विरोध किया। प्रतिक्रिया स्वरुप चीन ने भी अमेरिका पर आरोप लगाया कि वह फिलीपींस के साथ वाइंट पेट्रोलिंग कर इस इलाके की शांति भंग कर रहा है। गौर करें तो दक्षिणी चीन सागर के आइलैंड पैरासेल्स के अलावा स्पार्टलेस को लेकर भी विवाद है। इन दोनों क्षेत्रों पर सभी सागरीय देश दावा करते हैं और चीन उनका विरोध करता है। कारण यह क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण हैं। इसकी कोख प्राकृतिक संपदाओं से परिपूर्ण है और इस रास्ते से हर साल तकरीबन पांच टिलियन डॉलर का व्यापार होता है। यह पूरी दुनिया के कारोबार का एक तिहाई हिस्सा है। यह इलाका मछली भंडार के दसवां हिस्से के तौर पर भी जाना जाता है। चूंकि मौजुदा समय में सीफूड का कारोबार बढ़ रहा है इस लिहाज से चीन की दृष्टि गड़ी हुई है। चीन और फिलीपींस के बीच एक अन्य आइलैंड स्कारबरो शोआल को लेकर भी तनातनी है। यह आइलैंड जिसे चीन में हुआंयान भी कहते हैं, फिलीपींस से तकरीबन 165 किलोमीटर दूर है। 2012 में दोनों देशों की सेनाएं यहां घुसपैठ रोकने के लिए आमने-सामने आ चुकी हैं। वियतनाम का कहना है कि ऐतिहासिक रुप से इस क्षेत्र पर उसका दावा है। गौरतलब है कि 1947 में चीन ने पैरासेल्स को वियतनाम से छिन लिया और इसे बचाने में तकरीबन 6 दर्जन वियतनामी सैनिक शहीद हो गए। अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण का फैसला आने के बाद भी वह अपनी दबंगई से दुनिया को डराना चाहता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)(DJ)

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