Friday 29 July 2016

दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागीरी (डॉ. गौरीशंकर राजहंस)

हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायाधीकरण ने फैसला दिया है कि दक्षिण चीन सागर के उस क्षेत्र में जहां फिलीपींस के द्वीप अवस्थित हैं वहां चीन का कोई अधिकार नहीं है। फिलीपींेस अपने अधिकारों को लेकर 2013 में हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायाधीकरण में गया था। इस टिब्यूनल ने सारे दस्तावेजों का गहन अध्ययन किया है और यह ऐतिहासिक फैसला दिया है कि चीन फिलीपींस के तट पर उसके द्वीपों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है और न फिलीपींस के तट पर उसके मछली पकड़ने के अधिकार छीन सकता है। यह एक ऐतिहासिक निर्णय है और अमेरिका तथा जापान सहित संसार के सभी देशों ने इसका स्वागत किया है तथा चीन से आग्रह किया है कि वह इस फैसले पर अमल करे।
वहीं दूसरी ओर चीन अपने दादागिरी पर अड़ा हुआ है। इस फैसले के आने के तुरंत बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सार्वजनिक रूप से कहा कि चीन किसी भी हालत में इस फैसले को स्वीकार नहीं करेगा। चीन शुरू से कहता आ रहा है कि ‘साउथ चाइना सी’ पर उसका एकाधिकार है और जो भी देश इस एकाधिकार को तोड़ने की कोशिश करेगा उसे चीन मुंहतोड़ जवाब देगा। यह ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार गांव-देहात में कोई बाहुबली किसी कमजोर आदमी की जमीन हथिया लेता है और कोर्ट के फैसले के बावजूद भी उसे वापस करने में हीला-हवाला करता है। हेग के अंतरराष्ट्रीय टिब्यूनल ने कहा कि ऐतिहासिक दस्तावेजों को देखने से यह पता चलता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले से ही इस क्षेत्र में पड़ने वाले देशों का उनके समीप वाले द्वीपों पर कब्जा है। इसी क्रम में फिलीपींस के पास पड़ने वाले द्वीपों पर फिलीपींस का हक जायज है। इस क्षेत्र में पड़ने वाले देश वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रूनई, फिलीपींस आदि बार-बार कह रहे हैं कि चीन अपनी दादागिरी से उन्हें परेशान कर रहा है और जो द्वीप द्वितीय विश्वयुद्व के पहले से ही उनके कब्जे में हैं उन पर वह जबरन अपना हक जता रहा है। अमेरिका और जापान ने भी चीन की इस दादागिरी की घोर निंदा की है।
चीन का कहना है कि जब इस क्षेत्र के नाम ‘साउथ चाइना सी’ है तब स्वाभाविक रूप से उसमें पड़ने वाले सभी द्वीपों का वही मालिक है। कोई अन्य देश इसमें दखल नहीं दे सकता है। संसार के आधे से अधिक व्यापारिक जहाज ‘साउथ चाइना सी’ से होकर गुजरते हैं। इसी कारण अमेरिका सहित दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों ने बार-बार कहा है कि ‘साउथ चाइना सी’ में जो देश स्थित हैं और जिनके समीप छोटे-छोटे द्वीप हैं जिनमें तेल और गैस की अपार संभावनाएं हैं उन द्वीपों के असली मालिक वे वर्षो से रहे हैं और न्याय का तकाजा है कि यह अधिकार वे चीन को नहीं दे सकते हैं। परंतु चीन उनकी बात मानने को तैयार नहीं है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि ‘साउथ चाइना सी’ संसार के सभी व्यापारिक जहाजों के लिये आवागमन के लिये खुला रहना चाहिये। किसी अन्य देश को यह हक नहीं है कि वह इसमें अड़ंगा डाले। परंतु चीन पर इन बातों का कोई असर नहीं पड़ रहा है।
हाल में एक अमेरिकी सेटेलाइट ने यह रहस्योद्घाटन किया कि चीन ‘साउथ चाइना सी’ के छोटे द्वीपों पर तेजी से कब्जा करके उन्हें रेत, मिट्टी और मलबे से पाट रहा है। बड़े समुद्री जहाजों से रेत, मलबा और पत्थर ले जा जाया जा रहा है और छिछले पानी में जमीन तेजी से तैयार की जा रही है। यह काम दिन रात चल रहा है और हजारों मजदूर इसे बनाने में लगे हुए हैं। अमेरिकी सेटेलाइट ने यह भी रहस्योद्घाटन किया है कि चीन ने अपने भूभाग से 500 किलोमीटर दूर समुद्र में ‘द ग्रेट वाल ऑफ सेंड’ अर्थात् बालू की महान दीवार खड़ी कर दी है। उसने कई द्वीपों को मिलाकर तीन हजार मीटर लंबी हवाई पट्टी बना ली है। चीन तेजी से इन द्वीपों को बालू, रेत और पत्थरों से पाट कर सूखी जमीन तैयार कर रहा है जिस पर वह हवाई अड्डे बनाएगा। चीन चाहता है कि जो नई जमीन तैयार हो रही है उसमें चीन के जंगी जहाज लंगर डाल सकें। चीन यह दादागीरी इसलिये कर रहा है कि ‘साउथ चाइना सी’ में पड़ने वाले छोटे द्वीपों में तेल और गैस का विशाल भंडार है। वह दरअसल इन सभी दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के हक को मार रहा है जिनके कब्जे में ये द्वीप द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले से ही रहे हैं। अमेरिका के सुरक्षा मंत्री कार्टर ने दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागिरी पर कड़ी आपत्ति जाहिर की है। अमेरिका का ‘साउथ चाइना सी ‘ के रास्ते हर साल 1200 अरब डॉलर का व्यापार होता है। जापान के भी अनेकों व्यापारिक जहाज इस क्षेत्र से होकर गुजरते हैं। अत: उसे भी इस बात का पूरा डर है कि चीन की दादागिरी से उसे भारी नुकसान होगा।
‘साउथ चाइना सी’ के जिस क्षेत्र को चीन ने छोटे-छोटे द्वीपों को मिलाकर सूखी जमीन बना ली है वहां उसने एक हवाई अड्डा भी बना लिया है और हाल में एक जंगी हवाई जहाज इस क्षेत्र में उतारा गया। चीन का कहना है कि जो लोग इस हवाई जहाज से उतरे हैं वे पर्यटक हैं। चीन अपने पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देना चाहता है। परंतु अमेरिका ने अपने सेटेलाइट से यह पता लगाया है कि ये दरअसल चीन के सैनिक हैं जो युद्धाभ्यास के लिये उन टापुओं पर उतरे हैं। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि चीन अपनी दादागिरी से बाज नहीं आ रहा है। वह तो यहां तक कहता है कि जो पानी के जहाज या हवाई जहाज इस क्षेत्र से गुजरेंगे उन्हें पहले चीन की स्वीकृति लेनी होगी। यह सरासर दादागिरी है। पहले भी जब जापान के साथ चीन का झगड़ा हुआ था। उसमें जापान के कई द्वीपों पर जिनमें तेल और गैस की संभावनाएं थी, चीन ने अपना हक जताया था। परंतु जब अमेरिका ने उस क्षेत्र में अपने बमबरसक जंगी हवाई जहाजों को भेजना शुरू कर दिया तो चीन पीछे हट गया।
‘साउथ चाइना सी’ में स्थिति अत्यंत ही खतरनाक मोड़ पर है। वहां कभी भी स्थिति विस्फोटक हो सकती है और स्थानीय स्तर पर छोटा-मोटा युद्ध भी हो सकता है। चीन के सर्वमान्य नेता माउ-त्से-तुंग कहा करते थे कि यदि चीन की किसी देश के साथ लड़ाई होगी और उसमें यदि लाख-दो लाख चीनी फौजी मारे भी जाएंगे तो चीन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। क्योंकि चीन की आबादी इतनी अधिक है कि वह इस तरह के नुकसान को सहन कर लेगा।
आशा की किरण इसी बात में दिखती है कि चीन की अर्थव्यवस्था तेजी से बिगड़ रही है। वहां भयानक मंदी आ गई है। अब यदि संसार के वे सारे देश जो चीन के सताये हुए हैं चीन का सामान खरीदना बंद कर दें तो चीन की अर्थव्यवस्था देखते ही देखते चरमरा जाएगी और चीन रास्ते पर आ जाएगा। चीन को काबू में करने का यह एक अछा उपाय भी होगा। समय आ गया है जब संसार के सारे देशों को इस गंभीर खतरे का मुकाबला करने के लिये तैयार रहना चाहिये।
(लेखक पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत हैं)(DJ)

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