Friday 29 July 2016

भारतीय धरोहरों की वैश्विक पहचान (डॉ. मोनिका शर्मा)

अपनी अतुलनीय धरोहर के लिए भारत के तीन ऐतिहासिक स्थलों को वल्र्ड हेरिटेज साइट्स में स्थान मिला है। विश्व धरोहर सूची में एक साथ तीन भारतीय स्थलों का शामिल किया जाना वाकई एक सुखद समाचार है। गौरतलब है कि यूनेस्को ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष को वल्र्ड हेरिटेज साइट में शामिल कर लिया। साथ ही चंडीगढ़ और सिक्किम के राष्ट्रीय पाकोर्ं को अपने विश्व विरासत स्थलों में शामिल कर इस साल भारत से जुड़े तीनों नामांकनों को मंजूरी दी है। इस्तांबुल में विश्व विरासत समिति के 40वें सत्र में बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय के पुरातात्विक स्थल, चंडीगढ़ के पीटोल कांप्लेक्स और सिक्किम के कंचनजंघा पार्क को इस फेहरिस्त में शामिल किया गया है। ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी देश के तीन स्थलों को समिति की बैठक के एक ही सत्र में विश्व विरासत सूची में जगह दी गई हो। गौरतलब है कि यूनेस्को हर साल विश्व धरोहरों की अपनी सूची में नई जगहों को शामिल करता है। इस सूची का उद्देश्य दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों की ओर ध्यान आकर्षित कर उन्हें अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाश में लाना होता है। नि:संदेह यह किसी भी राष्ट्र के लिए गौरव की बात है कि उसके ऐतिहासिक स्थल इस फेहरिस्त में स्थान पायें।
भारत में ऐसे ऐतिहासिक धरोहरों की भरमार है, जिन्होंने हमारी प्राचीन संस्कृति और परंपरा को जीवतंता प्रदान की है। वैसे भी भारत की पहचान उसकी सांस्कृतिक धरोहरों व विरासतों से ही रही है। यहां के सांस्कृतिक प्रतीकों को समङो बिना कोई भारत को समझ नहीं सकता है। ऐसे में विश्व विरासत सूची में तीन और जगहों के नाम जुड़ने से निश्चित रूप से भारत की सांस्कृतिक पहचान को एक नई उड़ान मिलेगी।
पर्यटन के अलावा हमारे देश की ये धरोहर मानवीय और सामाजिक जीवन में आये बदलावों का अध्ययन करने का आधार भी रही है। यही वजह है कि इस अनमोल विरासत के लिए वैश्विक स्तर पर भारत एक विशिष्ट पहचान रखता है। ऐसे में यूनेस्को द्वारा भारत के तीन स्थलों को वैश्विक विरासत के तौर पर स्वीकार करना, हर भारतीय के लिए गर्व करने वाली बात है। इतना ही नहीं ऐसी नई साइट्स का यूनेस्को की सूची में जगह पाना और कई तरह से सकारात्मक ही है। इससे ना केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि सांस्कृतिकधरोहरों और स्मारकों के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर आमजन को प्रोत्साहन भी मिलेगा। भारत के समृद्ध इतिहास को जानने की इछा रखने वाले देशी -विदेशी पर्यटकों के लिए यह विरासत अनमोल खजाने के समान है। ऐसे में वल्र्ड हेरिटेज की सूची में जगह बनाना तो गौरव की बात तो है ही, यह पर्यटन के लिए भी संजीवनी बूटी है। यूं भी किसी देश में पर्यटकों का आना ना केवल वहां की सांस्कृतिक-ऐतिहासिक धरोहर का मान बढ़ाता है बल्कि आय का भी बड़ा स्नोत होता है।
वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की ट्रेवल एंड ट्यूरिम कम्पैटिटिव रिपोर्ट के मुताबिक 140 देशों की सूची में भारत 65वें स्थान पर है। पर्यटन के क्षेत्र में हमारा देश काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। जिसके चलते अनगिनत लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं। भारत जैसे विकासशील देश में जहां बेरोजगारी भी एक बड़ी समस्या है कुल रोजगार में 7.78 फीसदी पर्यटन क्षेत्र की भागीदारी बहुत मायने रखती है। हमारा देश आज विश्व के उन देशों में से एक है जो अपनी अनूठी वास्तुकला के चलते हर साल देश दुनिया के लाखों पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। हर साल दुनिया के कोने-कोने से यहां पर्यटक आते हैं जो यहां की सुंदरता और विविधता को सहेजे इस धरोहर को देखने और इसके जरिये भारत के समृद्ध इतिहास को समझने का प्रयास करते हैं। यही वजह है कि हमारे यहां के विशिष्ट स्थलों को वैश्विक स्तर पर मान और पहचान मिलने से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कई तरह के लाभ हमारे हिस्से आते हैं। इनमें स्थानीय लोगों को रोजगार मिलने से लेकर इन धरोहरों के संरक्षण के प्रति जन-जागरूकता लाने तक सभी कुछ शामिल है। यूनेस्को द्वारा किसी स्थल का चयन खास भी मायने रखता है क्योंकि विश्व विरासत स्थल समिति द्वारा चयनित इन सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों और स्थलों की यही समिति यूनेस्को के तत्वाधान में देख रेख भी करती है। गौरतलब है कि यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित किए गए सांस्कृतिक और प्राकृतिक स्थलों की सूची में कई भारतीय स्थान मान्य हैं। इन स्थानों में 9 स्थान पिछले पांच वर्ष में ही शामिल किये गए हैं। इन मानित स्थलों में खजुराहों के मंदिर,कोणार्क का सूर्य मंदिर, आगरा का ताजमहल, अजंता एलोरा की गुफाएं, सांची के स्तूप, दिल्ली का कुतुब मीनार, बोधगया का महाबोधि मंदिर आदि सम्मिलित हैं। इन स्थलों में से ताजमहल की गितनी तो विश्व के सात अजूबों में होती है। गुजरात के पाटण में स्थित रानी की वाव को वर्ष 2014 में इस सूची में शामिल किया गया है। देश के सबसे बड़े क्षेत्रफल वाले राय राजस्थान के छह किले आमेर, चित्ताैड़गढ़, कुंबलगढ़, रणथम्भौर, गागरौन और जैसलमेर का किला वर्ष 2013 में यूनेस्को की सूची में शामिल किए जा चुके हैं। इतना ही नहीं भारत में ऐसे कई और स्थान हैं जिनकी मज़बूत दावेदारी पेश की जाए तो वे यूनेस्को की सूची का हिस्सा बन सकते हैं। वैसे यह भी सच है कि भारत की सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक धरोहर, दुनिया में किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। पर उनके संरक्षण के प्रति उपेक्षा का जो भाव आमजन और प्रशासनिक मशीनरी में देखने को मिलता है वह वाकई दुखद है। यही वजह है कि यूनेस्को जैसी अन्तरराष्ट्रीय संस्था द्वारा इनके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इन्हें वैश्विक विरासत का दर्जा मिल पाया है। वैसे जब इन स्थानों को यूनेस्कों की सूची में शामिल कर लिया गया है उम्मीद की जानी चाहिए कि अब इनका संरक्षण बेहतर तरीके से हो पायेगा।
यह वाकई सुखद और गौरवान्वित करने वाली बात है कि संयुक्त राष्ट्र के शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने महाबोधि मंदिर के बाद बिहार के दूसरे स्थल नालंदा के खंडहर को विश्व धरोहर में शामिल किया है। विश्व धरोहर में शामिल होने वाला यह भारत का 33वां धरोहर है। भारत से अब तक विश्व विरासत स्थल सूची में दर्ज धरोहरों में 25 सांस्कृतिक, जबकि 7 प्राकृतिक श्रेणी के स्थान शामिल हैं। हमारा देश एक समृद्ध विरासत को अपनी आंगन में समेटे हुए हैं। जिसे सहेजा जाना जरूरी है। इन ऐतिहासिक स्थलों को सहेजने का काम हर स्तर पर किया जाना आवश्यक है। हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान देश भर में फैले ऐतिहासिक धरोहरों के खजाने को संभालने और सहेजने की कोशिश कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ यह भी सत्य है कि अगर इन्हें सहेजने में यूनेस्को जैसी विश्व संस्थाओं की मदद मिल जाए तो इन्हें आसानी से सहेजा जा सकता है। इन धरोहरों को वैश्विक मान्यता मिलने से पर्यटन उद्योग में सकारात्मक बढोतरी तो होना ही है, साथ ही भारत की सांस्कृतिक पहचान का वैश्विक फलक भी विस्तारित होगा।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)(DJ)

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