Friday 29 July 2016

भूकंप का पूर्वानुमान और बचाव (अभिषेक कुमार)

भारत सरकार का मत है कि देश में ही नहीं, दुनिया में कहीं भी भूकंप की भविष्यवाणी के लिए किसी तकनीक या प्रौद्योगिकी का विकास नहीं हुआ है। पिछले वर्ष लोकसभा में अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और प्रधानमंत्री कार्यालय में रायमंत्री जितेंद्र सिंह ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि भूकंप की भविष्यवाणी के लिए दुनिया भर में काम जरूर चल रहा है, पर कोई तकनीक अभी विकसित नहीं हो पाई है। पर इस घोषणा से उलट हाल में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लैमॉन्ट डॉहर्टी अर्थ ऑब्जरवेटरी के वैज्ञानिकों ने अपने आकलन के आधार पर बांग्लादेश में भारी भूकंप की चेतावनी दी है। उनके अनुसार बांग्लादेश की सतह के नीचे मौजूद टेक्टॉनिक प्लेटों में भारी हलचल हो रही है, जिससे बांग्लादेश के बाहर यानी भारत के पूवरेत्तर इलाकों में भी तेज भूकंप आ सकता है। यह एक ऐसी चेतावनी है जिसे नजरअंदाज करना मुश्किल है। पर सवाल है कि जिन फॉमरूलों और तौर-तरीकों के बल पर दुनिया के कुछ देशों के वैज्ञानिक भूकंप की भविष्यवाणी को मुमकिन बनाने का दावा कर रहे हैं, क्या उनका कोई आधार है। यदि हां, तो क्या वैसा ही सिस्टम भारत में नहीं बनाया जा सकता ताकि सैकड़ों-हजारों जानों और आर्थिक संपत्ति के नुकसान से बचा जा सके। कोलंबियाई साइंटिस्टों का आकलन है कि बांग्लादेश की सतह के नीचे टेक्टोनिक प्लेटों में हुई हलचल से पूवरेत्तर का 24 हजार वर्ग मील इलाका भूकंप की सर्वाधिक आशंका वाले क्षेत्र में बदल गया है। जमीन के अंदर बढ़ रहे दबाव से उस इलाके में 9 तक की तीव्रता वाला भूकंप कभी भी आ सकता है। इसके असर से नदियां अपना रास्ता बदल सकती हैं और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से बांग्लादेश के अलावा भारत के सिक्किम, मेघालय, असम, मिजोरम आदि रायों के करीब 14 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं। हालांकि इस चेतावनी के साथ कोई पुख्ता तारीख नहीं दी गई है, लेकिन पिछले साल अप्रैल में नेपाल में आए भूकंप से जितना नुकसान हुआ था, उसे देखते हुए जरूरी हो गया है कि भूकंप के पूर्वानुमान के बारे में एक सटीक सिस्टम अपने देश में भी बने और चेतावनियों को गंभीरता से लेते हुए भूकंप से होने वाली क्षतियों को न्यूनतम करने का प्रयास किया जाए।
भूकंप की पूर्व सूचना के मामले यह नहीं कहा जा सकता कि इस मामले में देसी-विदेशी वैज्ञानिक हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। असल में वे कई विधियों से धरती के अंदर चल रही हलचलों की टोह लेने की कोशिश करते हैं। सीस्मोलॉजिस्ट यानी भूकंपवेत्ता धरती की भीतरी चट्टानों की चाल, अंदरूनी फाल्ट लाइनों की बढ़वार और वालामुखियों से निकल रही गैसों के दबाव पर नजर रखकर पूर्वानुमान लगाने का प्रयास कर रहे हैं। जापान और कैलिफोर्निया में जमीन के अंदर चट्टानों में ऐसे सेंसर लगाए गए है जो बड़ा भूकंप आने से 30 सेकेंड पहले इसकी चेतावनी जारी कर देते हैं। दावा है कि मौसमी उपग्रहों से मिले चित्रों के आधार पर पिछले साल की शुरुआत में नेपाल के बड़े भूभाग से रेडॉन गैसों की बड़ी मात्र निकलने की बात कही गई थी, पर इन सूचनाओं का विश्लेषण कर भूकंप की चेतावनी जारी नहीं की जा सकी। इससे साबित होता है कि दैवीय आपदाओं का समय पर पता लगाकर उनकी सूचनाएं लोगों तक पहुंचाने और उन्हें सतर्क करने वाले सिस्टम दोषपूर्ण हैं। आमतौर पर भूकंप का अंदाजा लगाने के लिए अभी जो आकलन किए जाते हैं, उनमें तापमान में बढ़ोत्तरी, हवा में नमी की मात्र, पानी की लहरों में बदलाव को देखकर होते हैं। हमारे पूर्वज भी जिस तरह जानवरों (चूहे, सांप, कुत्ते और बंदरों) के व्यवहार को देखकर भूकंप का अनुमान लगाते थे, हमारे देश में कुछ जगहों पर, जैसे कि जम्मू-कश्मीर और उड़ीसा में उसका इस्तेमाल किया गया है। पर जापान समेत कई देशों ने भूकंप को पहले से भांपकर नुकसान को कम करने की कला सीखी है जो हमारे लिए एक सबक हो सकती है। जैसे एक उदाहरण पांच साल पहले 11 मार्च 2011 का है। उस दिन जापान में जबर्दस्त भूकंप आया था। भूकंप से टोक्यो का रेल नेटवर्क थोड़ा-मोड़ा जरूर डैमेज हुआ, हफ्ते भर में रेल नेटवर्क पूरी तरह पटरी पर आ गया। भूकंप के वक्त प्रभावित इलाके के पास से 5 शिंकानसेन ट्रेनें (बुलेट ट्रेन) 270 किमी घंटे स्पीड से भाग रही थीं, लेकिन एक भी ट्रेन पटरी से नहीं उतरी। ऐसा इसलिए मुमकिन हुआ भूकंप को भांप लेने वाली टेक्नॉलजी की बदौलत। धरती हिलने का अंदेशा होते ही ट्रेनें जहां-तहां रोक दी गईं। इसके अलावा जापान में भूकंप के वक्त परमाणु संयंत्रों का संचालन भी स्वचालित तरीके से रुक जाता है। भूकंप के पूर्वानुमान के संबंध में जापान की तैयारियां ऐसी हैं कि वहां कुछ सेकेंड पहले इसके बारे में जानकारी मिल जाती है लेकिन इसकी सार्वजनिक मुनादी नहीं की जाती, ताकि इससे कोई भय न फैले। भूकंप के केंद्र में तो नहीं, लेकिन उसके दायरे में आने वाले इलाकों में कुछ सेकेंड पहले वैज्ञानिक तौर पर अलर्ट कर दिया जाता है कि वहां भूकंप आने वाला है। इससे जानमाल के नुकसान को कम किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि किसी इलाके में जब कोई भूकंप आता है तो दो तरह की तरंगें (वेव्स) धरती से निकलती हैं। एक प्रकार की तरंगों को प्राइमरी और दूसरे प्रकार की तरंगों को सेकेंडरी या सीयर्स वेव्स कहा जाता है प्राइमरी वेव औसतन 6 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से चलती है जबकि सेकेंडरी वेव औसतन 4 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से। इस अंतर के चलते प्रत्येक 100 किलोमीटर में 8 सेकेंड का अंतर हो जाता है। यही कारण है कि भूकंप के किसी केंद्र से 100 किलोमीटर दूरी पर 8 सेकेंड पहले पता चल सकता है कि भूकंप आने वाला है। भूकंप का पहले से पता लगाने की एक नई तकनीक जर्मनी में भी विकसित की गई है। जर्मनी की एक कंपनी सेक्टी इलेक्ट्रॉनिक्स जीएमबीएच ने जर्मन जीईओ रिसर्च सेंटर पोस्टडैम की मदद से सेक्टी लाइफ पैटर्न नामक एक ऐसा अर्ली अर्थक्वेक एंड वॉनिर्ंग सिस्टम बनाया है कि जो भूकंप के केंद्र के 40 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों को 8 से 12 सेकेंड पहले पूरी कामयाबी से इसकी चेतावनी जारी कर देता है। इसका अर्थ यह है कि अगर कोई इमारत भूकंप के केंद्र के एकदम नजदीक नहीं है, तो उसमें रहने वाले लोगों को भागकर अपनी जान बचाने का पर्याप्त समय मिल जाएगा। कुछ देशों में इस तकनीक का इस्तेमाल भी शुरू हो गया है, जैसे स्विटजरलैंड में गैस वितरण कंपनी बेसेल ने इस सिस्टम को अपना कर भूकंप की स्थिति में पूरे शहर की गैस सप्लाई को तुरंत रोकने का इंतजाम कर दिया है।
बेशक, भूकंप की कई दिन या महीने भर पहले ऐसी सटीक भविष्यवाणी संभव नहीं हो पा रही है कि तारीख और वक्त पूरी तरह सही ढंग से बताया जा सके, लेकिन आठ-दस सेकेंड पहले भूकंप की मिलने वाली जानकारी भी जानमाल की क्षति कम कर सकती है, बल्कि ऐसी चेतावनी को सुनने और उस पर तुरंत एक्शन लेने वाला तंत्र चौबीसों घंटे सक्रिय हो। यह समझने की जरूरत है कि भूकंप से चंद सेकेंड पहले क्या किया जाए और आपदा के असर को न्यूनतम कैसे किया जाए। ऐसे उपायों से इस प्राकृतिक आपदा के प्रभाव को सीमित किया जा सकता है और भूकंप को इंसानी पराक्रम के आगे थोड़ा बौना किया जा सकता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)(DJ)

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