Friday 29 July 2016

आतंक के नए हथियार की पृष्ठभूमि (जसन बर्क, ब्रिटिश पत्रकार)

फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने नीस शहर में बास्तील दिवस के मौके पर हो रही आतिशबाजी देख रहे 84 लोगों की हत्या को आतंकवादी कार्रवाई करार दिया है। हालांकि जब उन्होंने यह बयान दिया, तब तक न तो हमलावर की पहचान पता चल सकी थी और न ही इस बर्बर हमले के पीछे का मकसद साफ हो सका था। यह भी जल्द ही पता चल जाएगा, अलबत्ता पहला शक इस्लामिक स्टेट (आईएस) या अल-कायदा पर ही है, भले ही इनमें से कोई संगठन इस घटना में परोक्ष रूप से शामिल हो या अपरोक्ष रूप से। इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा से जुड़े आतंकवादियों ने हाल के वर्षों में फ्रांस पर बार-बार हमले किए हैं। लेकिन नई चीज यह है कि इस बार की वारदात में एक ट्रक को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया।
सितंबर, 2014 में इस्लामिक स्टेट के मुख्य प्रवक्ता अबू मोहम्मद अल-अदनानी ने अपने एक भाषण में पश्चिमी देशों में रह रहे इस्लामिक स्टेट के समर्थकों से यह अपील की थी कि वे अब अपने तईं हमले करें। अल-अदनानी ने दुनिया भर के दुश्मनों की जो फेहरिस्त दी थी, उसमें फ्रांस का नाम मुख्य रूप से था। वह भाषण तब आया था, जब अमेरिका के नेतृत्व में फ्रांस समेत कई देशों की सेनाओं ने इस्लामिक स्टेट पर हमले शुरू किए थे। हालांकि अब हम यह भी जानते हैं कि इस सैनिक अभियान के शुरू होने से काफी पहले ही इस्लामिक स्टेट ने यूरोप और अमेरिका में बड़े पैमाने पर हत्या करने की योजना बनानी शुरू कर दी थी।
अदनानी ने अपने भाषण में यह भी कहा था कि जो कोई भी हथियार उनके हाथ आए, वे उसी से हमला बोल दें। उसने कहा था, 'अगर तुम्हें बम या कारतूस नहीं मिलते, तो उनके सिर को पत्थर से फोड़ दो, या उन्हें छुरा घोंप दो, या उन पर अपनी कार चढ़ा दो, या उन्हें किसी ऊंची जगह से फेंक दो, उनका गला घोंट दो, या उन्हें जहर दे दो ...अगर तुम यह भी नहीं कर पा रहे हो, तो उनके घर, उनकी कार, उनके कारोबार को राख कर दो, उनकी फसलें तबाह कर दो। और कुछ नहीं, तो उनके चेहरे पर थूक दो।'
पिछले डेढ़ दशक से दुनिया में आतंकवादी हिंसा का जो चक्र चल रहा है, उसमें इन आतंकवादियों का पसंदीदा हथियार वही रहा है, जो उन्हें आसानी से उपलब्ध हो जाए। पिछले महीने अमेरिका के ऑरलैंडो के समलैंगिक नाइट क्लब में इस्लामिक स्टेट के आतंकवादी ने जब 49 लोगों की हत्या की, तब उसके पास असॉल्ट राइफल थी। यूरोप में ऐसे हथियार हासिल करना असंभव नहीं है, लेकिन काफी मुश्किल जरूर है। पिछले साल नवंबर में जब पेरिस में 130 लोगों की हत्या की गई या इसके पहले गरमियों में जब फ्रांस में ही हाईस्पीड ट्रेन पर हमला हुआ, तो इन सभी आतंकवादियों ने हथियार बेल्जियम से हासिल किए थे। बेल्जियम गैर-कानूनी हथियारों का बहुत बड़ा बाजार है। शायद यह अदनानी की अपील का ही नतीजा था कि क्यूबेक में एक आतंकवादी ने दो कनाडाई सैनिकों पर अपनी कार चढ़ा दी थी।
लेकिन पैदल चलने वालों पर कार या कोई वाहन चढ़ा देने की वारदात यूरोप में बहुत कम ही हुई है। करीब नौ साल पहले ग्लासगो में निराश हो चुके हमलावरों ने अपनी कार एयरपोर्ट की इमारत में ठोक दी थी। फ्रांस में ऐसी दो घटनाएं हुई हैं। एक, दिसंबर 2014 में मध्य फ्रांस के शहर दिजोन में हुई थी और दूसरी, पश्चिमी फ्रांस के ननटेस में, लेकिन उन घटनाओं के पीछे मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों का हाथ था, अधिकारी उन्हें आतंकवादी वारदात नहीं मानते। हालांकि हाल ही में कुछ दूसरी जगहों पर इस तरह के हमले हुए हैं, खासकर इजरायल के कब्जे वाले इलाके में, जहां फलस्तीनी अतिवादियों ने यहूदी ठिकानों पर कारों से भयानक हमले किए हैं।
वहां वाहन को हथियार की तरह इस्तेमाल करने का काफी महिमा मंडन भी हुआ है, उस पर गाने और कार्टून तक बनाए गए हैं। मुमकिन है कि इन सबका प्रसार पश्चिम एशिया के बाहर भी हुआ हो। ऐसी वारदात को लेकर कई तरह की आशंकाएं रहती हैं- यह भी हो सकता है कि ऐसे हमले की जिम्मेदारी किसी को दे दी जाए और यह भी हो सकता है कि इंटरनेट के जरिये आतंकवादियों की विचारधारा से प्रभावित होकर कोई स्थानीय दहशतगर्द ऐसी वारदात को अंजाम दे डाले। नीस के हमलावार के बारे में अभी तक जो जानकारी मिली है, उसके हिसाब से हमलावर ट्यूनीशियाई मूल का फ्रेंच नागरिक था।
31 साल के इस शख्स के बारे में पुलिस को तो पता था, लेकिन यह खुफिया विभाग के रिकॉर्ड में नहीं था। दुनिया भर के पुलिस अधिकारियों की तरह ही फ्रांस के अधिकारी भी अभी तक इतना ही जान पाए हैं कि उनके देश में अभी तक जितनी भी भयानक आतंकवादी वारदात हुई हैं, उनको ऐसे लोगों ने अंजाम दिया है, जिनके संबंध बाहरी संगठनों से जुड़़े हुए थे। साल 2012 में अंधाधुंध गोली चलाकर 12 लोगों की हत्या करने वाले मोहम्मद मेराह के बारे में शुरू में यह कहा गया था कि वह 'लोन वुल्फ' है, लेकिन बाद में पता चला कि वह अल-कायदा से अलग हुए एक संगठन से जुड़ा था। पिछले साल जिन लोगों ने शार्ली एब्दो पर हमला किया था, उनके यमन में अल-कायदा से सबंध थे। हाल-फिलहाल में जो हमले हुए हैं, उनमें इस्लामिक स्टेट से जुड़ाव के पक्के सबूत मिले हैं। नीस के ताजा मामले में भी फ्रांस ही नहीं, पूरे यूरोप की जांच एजेंसियां पता लगाने में जुट गई हैं कि हत्यारे की पृष्ठभूमि क्या थी?
लेकिन नीस के हमले में दहशत में डालने वाली सबसे बड़ी बात है, हथियार के रूप में एक ट्रक का इस्तेमाल। ऐसे हजारों ट्रक फ्रांस की सड़कों पर हर रोज दौड़ते रहते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि कोई नहीं जानता कि अगला खतरा कहां से आएगा?
साभार- द गार्जियन(हिंदुस्तान )

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