Tuesday 5 July 2016

ब्रिटेन के फैसले का मतलब (डॉ. भरत झुनझुनवाला)

पिछले दिनों ब्रिटेन की जनता ने निर्णय दिया है कि वह यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं बने रहना चाहती है। यूरोपीय संघ की सदस्यता के चलते सभी सदस्य देशों के श्रमिकों को पूरे यूरोप में नौकरी करने की छूट थी। यह छूट यूरोपीय संघ के गरीब देश जैसे हंगरी के भी श्रमिकों को उपलब्ध थी। इंग्लैंड के लोगों ने पाया कि हंगरी के सस्ते श्रमिक उनके देश में अधिक संख्या में प्रवेश कर रहे थे। इसके कारण उनके वेतन दबाव में थे। इसलिए उन्होंने जनमत संग्रह में यूरोपीय यूनियन से अलग होने का निर्णय दिया है। ग्लोबलाइजेशन का पहला आयाम पूंजी के स्वतंत्र पलायन का है। हर कंपनी को छूट है कि वह दूसरे देश में निवेश करे। जैसे लीवर ब्रदर्स ने भारत में हंिदूुस्तान लीवर्स की फैक्ट्री लगाई और टाटा ने इंग्लैंड की जगुआर कंपनी को खरीद लिया। पूंजी के इस स्वतंत्र पलायन से उद्यमियों को पूरे विश्व में लाभ कमाने के अवसर उपलब्ध हो जाते हैं। इन्हें पेटेंट कानून का संरक्षण उपलब्ध है। जैसे किसी दवा कंपनी ने कैंसर के उपचार की नई दवा का आविष्कार किया। इस दवा को यह कंपनी 10,000 रुपये प्रति माह की दर से पूरे विश्व में बेच रही है। इसी दवा को भारत की दूसरी कंपनी 200 रुपये प्रतिमाह में उपलब्ध कराने को तैयार है। लेकिन भारतीय कंपनी को छूट नहीं है कि वह इस सस्ती दवा को बनाकर बाजार में बेच सके, क्योंकि यह दवा पेटेंट द्वारा संरक्षित है। इस प्रकार ग्लोबलाइजेशन पूंजी के लिए सर्वथा लाभकारी है।
ग्लोबलाइजेशन का दूसरा आयाम माल के स्वतंत्र प्रवेश का है। सभी देशों द्वारा आरोपित किए जाने वाले आयात कर की अधिकतम सीमा तय कर दी गई है। जैसे चीन में बनी टार्च पर भारत सरकार चाहे तो भी अधिक आयात कर आरोपित नहीं कर सकती है। अपने देश में चीन में बना सस्ता माल जैसे बल्ब, टार्च, फुटबाल आदि प्रवेश कर रहे हैं। माल का यह स्वतंत्र पलायन अप्रत्यक्ष रूप से श्रम का ही पलायन होता है। जैसे वियतनाम के श्रमिक ने कम वेतन पर काम करके सस्ती फुटबाल का उत्पादन किया। इस फुटबाल का भारत को निर्यात हुआ। भारत में ऐसी फुटबाल की उत्पादन लागत ज्यादा आती है, क्योंकि वियतनाम की तुलना में भारत में वेतन ऊंचे हैं। फलस्वरूप भारत की फुटबाल कंपनी बंद हो गई।
श्रम के इस पलायन से विश्व के गरीबतम देशों के श्रमिकों को लाभ हुआ है। शेष सभी को नुकसान हुआ है। मान लीजिए विश्व में न्यूनतम वेतन वियतनाम में है। वियतनाम की सस्ती फुटबाल पूरे विश्व में बिकने लगीं। वियतनाम में रोजगार उत्पन्न हुए। श्रमिकों को लाभ हुआ। परंतु भारत, केन्या, ब्राजील आदि तमाम देशों में फुटबाल का उत्पादन बंद हो गया, क्योंकि वहां वेतन अधिक थे। यानी ग्लोबलाइजेशन के कारण पूरे विश्व के श्रमिकों के वेतन न्यूनतम स्तर की ओर अग्रसर हो रहे हैं। ब्रिटेन के लोगों ने इस कटु सत्य का अनुभव किया। उन्होंने पाया कि हंगरी के श्रमिक तथा वियतनाम की फुटबाल के प्रवेश से उनके रोजगार नष्ट हो रहे हैं और वे ग्लोबलाइजेशन से पीछे हट गए हैं। विकसित देशों की अर्थव्यवस्था का दूसरा हिस्सा पेटेंटीकृत उच्च तकनीकों का है, जैसे माइक्रोसाफ्ट द्वारा विंडोज साफ्टवेयर तथा सिस्को सिस्टम द्वारा राउटर के उत्पादन का। इस क्षेत्र में वेतन में गिरावट की प्रवृति पैदा नहीं होती है, क्योंकि दूसरे देशों द्वारा ये माल उत्पादित नहीं किए जाते हैं। इन क्षेत्रों में विकसित देशों द्वारा ऊंचे वेतन दिए जा रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनी दवा का उत्पादन 100 रुपये प्रति माह में कर रही है और इस दवा को 10,000 रुपये प्रतिमाह में बेच रही है। इस भारी कमाई के एक अंश से वह अपने श्रमिकों को ऊंचे वेतन दे रही है। ये ऊंचे वेतन तब तक ही टिकेंगे जब तक इन कंपनियों के पास नए पेटेंटीकृत आविष्कार उपलब्ध हैं। ये ऊंचे वेतन स्थाई नहीं हैं। इंग्लैंड के बाशिंदों को यह बात समझ में आ गई है।
ग्लोबलाइजेशन से अमीर देशों की बड़ी कंपनियों तथा गरीबतम देशों के श्रमिकों को लाभ है। शेष सभी को नुकसान है। भारत की स्थिति मूलरूप से विश्व के उन शेष देशों जैसी है जो ग्लोबलाइजेशन से आहत हैं, परंतु एक अंतर है। हमारे यहां साफ्टवेयर उद्योग को ग्लोबलाइजेशन से लाभ हुआ है। 10-20 वर्षो में चीन तथा फिलीपींस भी साफ्टवेयर में महारत हासिल कर लेंगे। तब वेतन में गिरावट की मूल दिशा यहां भी प्रकट हो जाएगी। फिलहाल इस क्षेत्र में हमें लाभ हो रहा है। परंतु देश की शेष जनता ग्लोबलाइजेशन से आहत है। चीन के सस्ते माल एवं नेपाल तथा बांग्लादेश से सस्ते श्रमिकों के आयात से भारतीयों को नुकसान हो रहा है यद्यपि रतन टाटा को लाभ ही लाभ है। आगे का रास्ता कठिन है। पूरे विश्व में श्रमिकों के वेतन को एक विशाल समुद्र के जल स्तर की तरह देखें। इस विशाल समुद्र में हमें अपने श्रमिकों को ऊंचे वेतन उपलब्ध कराना है। उनके जीवन स्तर में सुधार लाना है। अपने देश में समुद्र का जलस्तर ऊंचा करना है। उपाय है कि हम अपने को बाल्टी सरीखा बना लें। समुद्र के बीच बाल्टी की दीवारें ऊंची कर दें तो बाल्टी में पानी का स्तर शेष समुद्र से ऊंचा हो सकता है। बाल्टी की ये दीवारें ऊंचे आयात कर हैं। अथवा विश्व अर्थव्यवस्था को बरसात के मौसम में धान के खेत सरीखा समङों। अपने खेत में पानी एकत्रित करना हो तो मेड़ ऊंची बनानी पड़ती है। वियतनाम में बनी सस्ती फुटबाल पर ऊंचे आयात कर लगा दें तो भारतीय बाजार में फुटबाल के दाम कुछ बढ़ जाएंगे। तदानुसार फुटबाल निर्माता के लिए संभव होगा कि वह अपने श्रमिकों को वियतनाम की तुलना मे ऊंचे वेतन दे सके।
ब्रिटेन द्वारा यूरोपीय यूनियन से बाहर आना ग्लोबलाइजेशन की इस मूल विसंगति को दर्शाता है। इसमें पेटेंट धारक बड़ी कंपनियों को महान लाभ है। गरीबतम देशों के श्रमिकों को मामूली लाभ है। बीच के सभी देशों के लिए ग्लोबलाइजेशन पूरी तरह हानि का सौदा है। सरकार को इन दुष्प्रभावों से बचने के उपायों पर नए सिरे से विचार करना चाहिए।
(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं और आइआइएम बेंगलूर में प्रोफेसर रह चुके हैं)(DJ)

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